Husan Ara

Inspirational abstract drama

4.9  

Husan Ara

Inspirational abstract drama

डे केयर

डे केयर

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मिस्टर आनंद अकेले बैठे हुए, छत पर टकटकी लगाए, गहन चिंतन की मुद्रा में थे।

कुछ दिन पहले तक आनंद सर –आनंद सर कहने वाले जूनियर्स ने एक बहुत शानदार रिटायरमेंट पार्टी देते हुए उन्हें विदा किया था। हालांकि उस दिन उनका मन अपनी स्वर्गीय पत्नी को याद करके, बार बार भावुक हो रहा था, मगर वे सिनियर बॉस होने के नाते अपने भाव दबाए, पहले वाले रौबीले अंदाज़ में ही सबकी शुभकामनाएं स्वीकारते रहे।

मिसेस आनंद ने तो इस दिन के लिए कितने प्लान्स भी बनाए हुए थे, हमेशा कहती थी, बस आप रिटायर हो जाइए,अपनी सब ज़िम्मेदारियों से आज़ाद फिर पूरा देश घूम कर आएंगे।

मिस्टर आनंद उठ कर बाहर ड्राइंग रूम में आ गए, घर पूरी तरह सुसज्जित था, परंतु बिल्कुल खाली। ड्राइंग रूम में आकर वे मिसेस आनन्द की तस्वीर के आगे खड़े हो गए, जिसमे वे तीनो बेटों के साथ बहुत खुश नजर आ रहीं थी और सुंदरता से भरी मुस्कान आज भी कितनी सजीव मालूम होती थी।

तीनों बेटे आज अपने पिता की भांति ही उच्च पदों पर विराजमान थे और अपनी –अपनी गृहस्थी में खुश भी थे। अक्सर मिसेस आनंद ही अपने बेटों के सुखी जीवन की जानकारी मिस्टर आनन्द को दिया करती थीं क्योंकि स्वयं तो उन्हें इतना समय कभी मिलता ही नही था कि वे इधर ध्यान दे पाए। फिर ऑफिस के बाद कभी कुछ हमउम्र दोस्तों के साथ बातें होतीं तो कभी पत्नी के साथ पार्क का भ्रमण। अपने सगे संबंधियों की खुशी या ग़म में सदैव उनका हिस्सा अहम रहता।

अपने पुराने मित्रों के मुख से उनके स्वयं के परिवार जनों द्वारा तिरस्कृत होने तथा बोझ बन जाने की भावना वाली बातें मिस्टर आनंद के मन मस्तिष्क पर इतना अधिक हावी हो चुकी थीं कि वे बुुढ़ापे में बच्चो से  अलग रहने का फैसला अपनी पत्नी को सुनााया करते ।


. भला अपने बच्चों से अलग होकर रह पाउंगी मैं ? उसकी पत्नी ने समझाने के लिये कहा तो था मगर ये अलग घर भी वह खुद ही सजाकर गई थी। क्योंकि मिस्टर आनंद की कुछ बातें उन पर असर भी कर रहीं थी, जिन्हें उनकी पत्नी ने स्वयं पहली बहू लाने के बाद महसूस किया था।

मिस्टर आनंद हमेशा समझाते कि मैं ना लड़ने के लिए कहता हूं ना किसी को दुख पहुँचाने के लिए , ये सब कुछ मैं अपने और तुम्हारे आत्म सम्मान को बचाने की खातिर कहता हूँ। साथ रहकर एक दूसरे के दुखों का कारण बनते मैं कई परिवार देखता हूँ, उनकी बातें भी सुनता हूँ । 

तो आखिर वे अपना जीवन खुशी खुशी कुछ दूरी बनाकर , एक दूसरे को स्वतंत्रता प्रदान कर के क्यो नही जीते ? ...यही सोचता हूं अक्सर! आखिर क्यों जीवन के इस पड़ाव पर पहुच कर अपना जीवन अपनी दिनचर्या औरों के हिसाब से बदले। 

एक ही घर में रहते हुए ,एक दूसरे की अपेक्षाओं के जाल में सब इस प्रकार लिप्त हो जाते हैं कि न तो अपना जीवन जी पाते हैं ना दूसरे को जीने देते हैं। ...और यही तनावपूर्ण स्थिति आगे चलकर तिरस्कार और झगड़ो की जड़ बनती है। समाज नही समझ पा रहा न समझे, तुम तो मेरी अर्धांगिनी हो ,तुमसे ये उम्मीद तो कर सकता हूँ। ...अपनी बहू बेटो की छोटी बड़ी गलतियों पर अपना हक़ हम उस वक़्त जताएंगे यदि वो हमारे पास उस विषय मे मदद मांगने आए, वरना क्यों हर समय अपने ज़िन्दगी के पलों को बस क्रोध और दुख की अग्नि में झोंके? हमे अपनी परवरिश पर यकीन है और अपने बहु बेटो की योग्यता पर भरोसा भी।

हम हर सुख दुख के साथी रहेंगे मगर आपसी स्वतंत्रता के साथ।

हमारा ये बड़ा घर जो हम अलग बसाएंगे एक ऐसी जगह बनाएंगे, जहां हम उन लोगो के लिए उम्मीद की एक किरण भी बनेंगे जो उम्र के एक पड़ाव पर आकर खुद को अकेला और बेचारा महसूस करते हैं। बूढो का घर। जहां वे अपना पूरा दिन अपनी मर्ज़ी से गुज़ार सकें और फिर अपने बच्चो के पास भी चले जाएं।

इस घटना के बाद ही से दोनों पति पत्नी इस घर को वही रूप देने में लग चुके थे जो कल्पना उन्होंने की थी। और उम्मीद से ज़्यादा रजिस्ट्रेशन हुए पहले साल ! मिसेस आनंद ने इस जगह को नाम दिया था डे केयर... क्योंकि वे मानती थी कि उम्र के एक पड़ाव पर पहुँच कर इंसान फिर से बच्चा ही तो बन जाता है ! ये बात कहकर मिस्टर आनंद को देखते हुए ठहाका लगाते हुए हँसी थी वे।

सभी बूढ़े थे सम्पन्न परिवारों से, ऐसे परिवारों से जिनके पास पैसा तो बहुत था मगर उनको देखने का, बातें करने, बातें सुनने का समय नहीं।

उनके लिए ये डे केयर एक ऐसी अंधेरे में जलती लौ के समान बन चुका था, जो उन्हें फिर से जीने की लालसा उत्पन्न करता था। बाहर दूर तक गूंजते उनके ठहाके, पुराने खेल, कविता, किस्से, पुराने गाने गूंजने लगे थे। अपनी कला और हॉबी को सही रूप देने का काम भी वहां होता था।

तस्वीर देखते हुए वे पुरानी यादों में खोए रहे।

यादों की दुनिया से निकलकर मिस्टर आनंद घूमते घूमते लॉन में आ पहुँचे, जहां बहुत बड़ी जगह बागवानी के लिए थी, तरह तरह के पेड़, फूल, गमले, सब्ज़ियां सब कुछ था।

आज मिसेस आंनद की बरसी थी, तो आज पहली बार इस डे केयर पर हॉलिडे का बोर्ड लटकाया गया था ! आज का पूरा दिन मिस्टर आनंद अपनी पत्नी की यादों के साथ गुज़ारना चाहते थे ! वरना जिस दिन वे स्वर्ग भी सिधारी उस दिन से अकेलेपन की घुटन के डर से मिस्टर आनंद ने उसे बंद नही किया था। 

उनकी पत्नी ने भी अपने अंतिम क्षणों में उनका हाथ पकड़कर यही समझाया था कि तुम सही थे, देखो इस डे केयर को इसी प्रकार चलाते रहना।

मिस्टर आनंद सोचों में गुम इधर उधर घूम ही रहे थे कि बाहर गूंजते हॉर्न पर उनका ध्यान गया। गार्ड गेट खोल चुका था। उनके बेटे, बहुएं ,पोता ,पोती सब आए थे। बच्चों ने आते ही दादाजी को घेर लिया था, बेटे उनके पैर छू कर पूजा की तैयारी में लग गए। बहुओं ने आते ही सफाई और किचन का काम सम्हाला। और मिस्टर आनंद लॉन में बैठे थे बच्चो के बीच उनकी सुनते अपनी सुनाते। मिसेस आनंद की मुस्कुराती हुई तस्वीर ड्राइंग रूम में लगी, लॉन से साफ नजर आ रही थी।


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