डायरी
डायरी


प्रिय डायरी
लॉकडाउन दो का पाँचवाँ दिन है अब जब भी खबर देखती हूँ तब थोड़ा डर सी जाती हूँ आज दिल्ली की हालत पर चिंता हो रही है। एक के बाद एक कारोना पॉज़िटिव केस आ रहे हैं। हे ईश्वर सम्पूर्ण विश्व में फैली इस कारोना बनाम महामारी को समूल नष्ट कर इस धरा पर फिर से ख़ुशहाली लाओ।
प्रिय डायरी एक दिन सपनों की बात हो रही थी शायद इस बिगड़ी हुई घड़ी में सपने भी बहुत आते हैं कभी रंगीन तो कभी धुंधले कभी प्रकाशहीन पर सपने तो सपने हैं उन्हें तो आना ही है किसी भी रूप में। और जब वक्त ख़राब हो तब कोई अच्छा सपना भी बहुत अच्छा लगता है ऐसा ही एक सपना मुझे बहुत लम्बे समय तक आता रहा की बर्फ़ का शिवलिंग है उसके ऊपर अर्ध चन्द्रकार बर्फ़ से ही बना है। मै शिव और शक्ति दोनो की ही उपासक हूँ और यूँ रोज सपना आना मुझे परेशान करने लगा और एक दिन पतिदेव से कहकर मैने निलकंठ महादेव जाने की ठानी जो ऋषिकेश से थोड़ा ऊँचाई पर है और उन्होंने मेरी बात का मान रख मुझे अपनी ही गाड़ी से ले गए ऋषिकेश।
पूर्णमासी का दिन होने की वजह से बहुत भीड़ थी मन्दिर में परन्तु महादेव की इच्छा थी इसलिए इतनी भीड़ होने के बावजूद शिवलिंग को जलाभिषेक कर मैने अपने आराध्य की सेवा की कोई भूल हुई हो तो क्षमा माँगी और हम वापस आ गए ।
उसके बाद फिर कभी मुझे वो सपना नहीं आया ये और बात है की उसके कुछ समय बाद ही मै अमरनाथ जी की भी यात्रा कर आयी। तब लगता है की सभी सपने झूठे नहीं होते कभी कभी सपनो का भी कोई ना कोई अर्थ होता है।
प्रिय डायरी आज इस सपने की बात इसलिए क्यूँकि आजकल भी कुछ इसी तरह के सपने आ रहे हैं। कभी उत्तराखंड घूम रही होती हूँ। कभी तितलियों का पीछा कर रही होती हूँ।
कभी पहुँच जाती हूँ हरिद्वार.. कुलमिलाकर सपने उत्तराखंड के आसपास ही घूमते रहते हैं। हर की पौड़ी पर बैठी कभी माँ गंगा से सर्वसुख सर्व शान्ति की प्रार्थना करती हूँ तो कभी उनकी निर्मल ठण्डी जलधारा को महसूस कर अपने मन की अशान्ति को धो शान्त हो जाती हूँ।
प्रिय डायरी शायद ये इस महामारी का डर है। अपनो की असुरक्षा का डर है जिससे मन अशान्त हो किसी शान्ति की खोज में निकल जाता है और फिर पहुँच जाता है उत्तराखंड की ठण्डी वादियों में, धारों में। पंदेरों मे सुकून की तलाश सपनो में भी जारी रहती है इसीलिए शायद मै वहीं पहुँच जाती हूँ जहां ज्यदा शान्ति मिलती है मेरे बेचैन मन को। प्रिय डायरी आज इतना ही , अपनी इन पंक्तियों के साथ आज विराम लूँगी।
छँट ही जाएँगे ये अशान्ति के बादल जल्द ही
कोई सुबह लेकर आएगी शान्ति का पैग़ाम।