Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win
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vijay laxmi Bhatt Sharma

Drama

3.8  

vijay laxmi Bhatt Sharma

Drama

डायरी उन्नीसवाँ दिन

डायरी उन्नीसवाँ दिन

3 mins
297


प्रिय डायरी आज लाक्डाउन का उन्नीसवाँ दिन है। ज़िंदगी की रफ़्तार तो कम नहीं होती एक एक दिन गुजरने के साथ साथ हमारी उम्र का एक एक दिन खत्म होता जाता है अगर सकारात्मक सोचें तो एक एक दिन जीवन का सुख दे शान्ति से गुजर रहा है। साथ ही एक अनजाना भय भी अन्दर ही अन्दर पनप रहा है की आगे क्या होगा। ये वैश्विक महामारी कोविद 19 धीरे धीरे अपने पाँव पसारते पसारते तेज़ी की तरफ बड़ रही है। लगभग अठारह लाख के आसपास लोगों को अपना शिकार बना चुकी है और हज़ारों को अपना काल ग्रास बना चुकी है। ऐसे मे ना चाहते हुए भी चिंतित होना स्वाभाविक है। हज़ारों लोग बेरोज़गार हो गए और हज़ारों के पास खाने को अन्न का दाना भी नहीं। अर्थव्यवस्था अपने सबसे खराब दौर से गुजर रही है ऐसे मे कैसे चैन हो। देश के प्रति प्रेम हमे देश के प्रति सजग बनाता है और देश के मुखिया की चिंता हमारी चिंता बन जाती है। जरूरतमंदों की यथासंभव मदद करने के बाद भी मन को शान्ति ही नहीं। चिंता है तो बस कब ये हालात कब सामान्य होंगे। परन्तु इस समय किसी के पास इस सवाल का जवाब नहीं।

प्रिय डायरी एक दिन सपनो की बात कर रही थी मै जो इस मुश्किल समय मे असमय ही आ जाते हैं.. .. ये सपने हमे कभी कभी हमारे अतीत की गहराई मे गोते खाने पर मजबूर करते हैं तो कभी आशा की एक सुनहरी किरण दिखा हमे सकारात्मक सोच की तरफ ले जाते हैं। तो कभी कभी हमारी कल्पना की प्रकाष्ठा होते हैं। प्रिय डायरी ऐसे ही सपने मे मै तितलियों का पीछा करते करते उत्तराखंड मे अपने ननिहाल पहुँच गई थी जहां प्राचीन शिवलिंग है। पिछली बार जिस शिव मंदिर के विषय मे बताया था मैने क्यूँकि आजकल वहाँ छोटा सा मन्दिर बन गया है। पिछले साल गई थी तब देखा था। मैं सपने मे उस शिवलिंग के पास पहुँच जाती हूँ।

अचानक मै बाल रूप मे दिखने लगती हूँ फ़्राउक पहने हाथ जोड़े खड़ी हूँ त्रिकाल दर्शी भोले शंकर के समीप। यहाँ बता दूँ की बहुत छोटी उम्र यानी तक़रीबन दस साल की उम्र से मै शिवरात्रि का व्रत करती हूँ। भोले शंकर और माता पार्वती की विशेष अनुकम्पा रही है मुझपर इसीलिए शायद स्वप्न मे भी उन्ही संकट हरण शिव की शरण मे खड़ी हूँ। बहुत स्वप्न आते हैं मुझे इस जगह के । कभी खेलती रहती हूँ ऊँचे बरगद के पेड़ के समीप जिसकी छाया मे शिवलिंग विराजमान है कभी जोर से हँसती हूँ तो कभी दिया बत्ती करती नजर आती हूँ। आज हाथ जोड़े खड़ी हूँ बालरूप मे । कहते हैं बच्चों की प्रार्थना ईश्वर जल्दी सुनते हैं और फिर आप तो बहुत सरल हो भोले शंकर जी आज ये बालिका विश्व मे सुख शान्ति चाहती है। इस बीमारी से हमे आज़ाद करो प्रभु।

इस विष रूपी वाइरस को अपने कण्ठ मे धारण के एक बार फिर संसार का उद्धार करो। आज मै हँस नहीं रही थी मेरी आँखों मे अश्रुधार थी.. हाथ जुड़े और करुण पुकार थी। तुम पिघले और प्रकट हुए मेरे सर पर हाथ रखा सब अच्छा होगा। ये बुरा वक्त बीत जाएगा कह भावुक हो अन्तरध्यान हो गए। मै याचक हाथ जोड़े खड़ी रह गई। मेरी निद्रा टूटी तो सच मे आँखों मे पानी था।. प्रिय डायरी आज इतना ही कल की शुभ घड़ी की उम्मीद मे मेरी इन पंक्तियों के साथ अपनी कलम को विराम देती हूँ।

विषयुक्त है हो रहा विश्व सारा करता पुकार

पधारो शिव पी डालो बना हलाहल प्याला।


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