vijay laxmi Bhatt Sharma

Drama

2.8  

vijay laxmi Bhatt Sharma

Drama

डायरी बीसवाँ दिन

डायरी बीसवाँ दिन

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288


प्रिय डायरी आज लॉक्डाउन का बीसवाँ दिन है। धीरे धीरे ये वक्त बीत रहा है और यकीनन ये वक्त भी बीत ही जाएगा। हम निश्चित ही इस वैश्विक महामारी को पछाड़ कर इस पर विजय प्राप्त कर ही लेंगे। और हम लौट आएंगे अपनी अपनी दिनचर्या पर अपने अपने जीवन की गति पकड़ ही लेंगे पहले जैसे पर क्या इतना ही या इससे कुछ ज्यदा।

बीते दिनों हमने क्या खोया क्या पाया उस पर नजर डालती हूँ तो कई बार नींद नहीं आयी अपनो को खोने के डर से। कभी स्वप्न देखे सुनहरे कल के। कभी रातों को जाग चिंतन किया की अगर ऐसा होगा तो क्या होगा वैसा होगा तो क्या होगा आदि आदि। 

शायद हम सभी भी इन्ही दुविधाओं मे रहे होंगे। परन्तु इस सब मे एक अच्छी बात ये रही वक्त के पीछे भागते भागते हम वक्त का आनन्द लेना ही भूल गए थे वो वक्त हमे इन इक्कीस दिनो मिला। एक समय बाद सूरज को उगते देखा। चाँद को दिन दिन बड़ते देखा। चिड़ियों के झुण्ड.. खुली हवा के साथ गुनगुनाना.. मंद मंद मुस्कुराना ये सभी लौटाया इस वक्त ने।

अब कुछ पल अपने लिए भी चुरा लेती हूँ। आत्ममंथन करती हूँ। सोचती हूँ क्या इस वक्त से हम कुछ सीख ले पाएँगे। मन की कड़वाहटें कम कर पाएँगे। क्या इस वक्त में विनम्र और क्षमाशील हो आत्मशुद्धि कर पाएँगे। हर भेद भाव से ऊपर उठ, सभी रंजिशे मिटा प्रेम से रह पाएँगे। अगर इस लॉक्डाउन के समय मे हम अपने मन की गाँठों के ताले खोल पाए तो हम पहले से भी अच्छे वक्त मे लौट सकते हैं। संकट से कुछ सीख कर लौटेंगे प्रेम पूर्वक बिना भेद भाव, प्रतिस्पर्धा और वैमनस्य के साथ एकता का भाव मन मे लेकर चलेंगे तो पुरानी से बेहतर ज़िंदगी मे जिसे ज़िंदगी भाग दो कहूँगी मै इसमें सकारात्मक सोच और नई ऊर्जा के साथ पदार्पण करेंगे हम। एक नया राष्ट्र बनाएँगे जिसमे नफ़रत इस वायरस कोविड १९ के साथ ही भस्म हो जाएगी। नई फसल जब लहलहाएगी तो वो प्रेम और भाईचारे की होगी।

कहते हैं बुरा वक्त हमेशा कुछ सिखा कर जाता है ये वक्त भी कुछ ना कुछ नया जरूर सिखाएगा ऐसा मेरा विश्वास है। बहुत सी गाँठे खुल गयीं हैं जो वक़्त के अभाव मे परिवार के बीच पड़ी हुई थीं बहुत सी खुलनी बाकी हैं जो समाज मे। हमारे आस पास हैं। एक दिन सब गाँठे खुल जाएँगी और मुस्कुराएगा हिंदुस्तान। प्रिय डायरी आज इतना ही कल की नई सुबह के इन्तज़ार में इन पंक्तियों के साथ अपनी कलम को विराम दूँगी।

खुल जाएँगी अन्दर की गहरी गाँठे

धुल ही जाएगी अब मन की सब मैल

नए जीवन दो की सुनहरी किरणों में

झिल मिल जगमगाएगा हिंदुस्तान।


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