Akanksha Gupta (Vedantika)

Tragedy Inspirational

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Akanksha Gupta (Vedantika)

Tragedy Inspirational

दायरे

दायरे

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तुम्हें इस बात का अंदाज़ा भी है कि तुम क्या करने जा रही हो?” वैभव ने पूछा तो नंदिनी बिफर पड़ी- “हाँ मैं अच्छी तरह जानती हूँ कि मैं तुम्हें हमेशा के लिए छोड़ कर जा रही हूँ और अब तुम्हारी ज़िंदगी से मेरा कोई भी वास्ता नहीं।” कहते हुए नंदिनी सूटकेस लेकर कमरे से बाहर निकल कर आ गई।


वैभव भी उसके पीछे-पीछे कमरे से बाहर आया और बोला- “यार नंदिनी, इतनी सी बात पर इतना बड़ा रिएक्शन मत दो......।”


“इतनी सी बात! तुम इसे इतनी सी बात कहते हो वैभव? अपनी पत्नी को किसी बिकाऊ सामान की तरह किसी और को सौंप देना तुम्हारे लिए छोटी सी बात है? तुम्हारे लिए मेरी इज्ज़त, मेरा सम्मान, हमारा रिश्ता सब कुछ एक छोटी सी बात है?” कहते हुए नंदिनी बाहर आ गई।


“यार, हाई सोसायटी में ये सब तो नॉर्मल है। इस दायरे में तो ये सब अब आम बात हो गई है।” वैभव ने नंदिनी को समझाने की कोशिश की।


“जहाँ पर विश्वास के दायरे छोटे पड़ जाते है न वैभव, वहाँ पर कोई भी बात कोई भी रिश्ता बेमानी हो जाता है और अच्छा होगा कि तुम भी इस बात को जितना जल्दी हो सके समझ लो।” यह कहकर नंदिनी ने तलाक के कागजात पर अपने दस्तख़त किए और उस रिश्ते का दायरा तोड़ कर नई ज़िंदगी की ओर चल पड़ी।


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