डॉ दिलीप बच्चानी

Tragedy

5.0  

डॉ दिलीप बच्चानी

Tragedy

दाँव पर द्रोपदी

दाँव पर द्रोपदी

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बिना किसी पूर्वसूचना के सुरभि का यूँ अचानक मायके आ जाना प्रोफेसर गुप्ता और उनकी पत्नी दोनों को ही अजीब लग रहा था।

राकेश (सुरभि के पति) से भी सम्पर्क करने का प्रयास किया पर सफलता नहीं मिली।

उदास गुमसुम सुरभि भी कुछ कहने को तैयार न थी।

शाम को चाय के बाद प्रोफेसर साहब ने बड़े प्यार से सुरभि के सर पर हाथ फेरते हुए कहा- ऐसी क्या बात है बेटा जो तुम इतनी परेशान हो और अपने मम्मी पापा को भी नहीं बता रही।

दो मिनट आँखे बंद करने के बाद गहरी साँस लेते हुए- पापा आप तो जानते हैं, इन्हें क्रिकेट का कितना शौक है।

हाँ जनता हूँ वो तो क्रिकेट का दीवाना है।

बस वही शौक हमारी बर्बादी का कारण बन गया।

सुरभि का गला रुंध गया तो माँ ने पानी पिलाया।

आई पी एल के मैचों में सट्टा लगा लगा कर सब बर्बाद कर दिया।

पुरखो की जमी जमाई दुकान मकान सब गिरवी हो गए। मेरे सारे जेवर सब बिक गए पर मैंने कभी आपको कुछ नहीं बताया।

एक उम्मीद थी शायद ठोकर खाकर सुधर जाएंगे।

पर उस दिन के के आर और सी एस के वाले मैच में उन्हें बहुत बड़ा घाटा हुआ और वो नशे में बेसुध कमरे में पड़े थे।

तभी रात में क्रिकेट पर सट्टा लगाने वाला बुकी (दलाल) घर आया और मुझसे ....

सुरभि जार जार रोये जा रही थी।

माँ ने ढाढस बंधाया पानी पिलाया।

मैं खुद को दाँव पर नहीं लगाना चाहती थी इसलिए भागकर यहाँ चली आई।


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