उपयोगिता(लघुकथा)
उपयोगिता(लघुकथा)
सेकेंड क्लास स्लीपर के कम्पार्टमेंट में आमने सामने की छह और साइड की दो सीटों को मिलाकर कुल जमा हम आठ लोग सफर कर रहे थे।
कुछ मोबाइल में व्यस्त थे कुछ बातों में कोने वाले सहयात्री ने प्लेटफॉर्म पर अखबार बेच रहे लड़के से एक राष्ट्रीय दैनिक अखबार खरीद लिया। ट्रेन चलते ही वो अखबार खोल कर उसमें मशगूल हो गए। मैं बगल वाली सीट पर उन्हें अखबार पढ़ता हुआ देख रहा था तभी उन्होंने अखबार का एक पेज निकाल कर मुझे दे दिया। एक एक पेज कर मैंने और लगभग सभी यात्रियों ने अखबार पढ़ लिया।
किसी को बिजनेस न्यूज में रुचि थी तो किसी को स्पोर्ट्स की खबरों, किसी ने संपादकीय लेख पढ़ें तो किसी ने लोकल समाचार।
अब वो अखबार इकट्ठा करके मोड़ कर कोने में दबा दिया गया था।
अभी कुछ ही समय पहले जिस अखबार में सबकी रुचि थी अब वो रद्दी हो चुका था।
पता नहीं क्यों जीवन की संध्या बेला में उस रद्दी अखबार से अपनापन सा लग रहा था।
शायद हम दोनों की ही उपयोगिता खत्म हो चुकी थी।
