"दादीजी का श्राद्ध डे"
"दादीजी का श्राद्ध डे"
कानपुर के तिलक नगर इलाके की एक पाॅश सोसायटी के सातवें माले के प्लैट में आज बड़ी हलचल है। किट्टू के मम्मी पापा बहुत सुबह उठकर नहा धो लिए थे। आठ वर्षीय किट्टू को भी नहला दिया गया था। हाउसकुक शांता आंटी भी सुबह सुबह आकर रसोई में खाना बना रही है।
किचन से उठती खुशबू से किट्टू को पता चल गया कि बढ़िया बढ़िया खाना बन रहा है।सवाल यह था कि वो पूछे किससे ? मम्मी पापा तो कुछ तैयारियों में जुटे हुए हैं।
किट्टू को शांता आंटी ने दूध और जैम ब्रेड दे दिया। रोज की तरह ही किट्टू ने बिना नखरे किए खा पी लिया।
जब उससे रहा नहीं गया तो उसने शांता आंटी से पूछा," आंटी, आज कोई पार्टी है, आप सुबह-सुबह ही बढ़िया खाना बनाने में लगी हो ?"
शांता आंटी बोली," किट्टू बाबा, लगता है मेमसाब आपको बताना भूल गई। आज आपकी दादीजी का श्राद्ध है।"
"श्राद्ध! वो क्या होता है, आंटी ?"
"किट्टू बाबा, पिछले साल आपकी दादीजी भगवान जी के पास चली गईं। यह श्राद्ध का महीना चल रहा है, इस महीने में एक दिन दादीजी के नाम से पूजा कर खाना पंडित जी को खिलाएंगे तो दादीजी को भगवान जी के यहां मिल जाएगा। उसी की तैयारी कर रही हूॅ॑।"
इतने में किट्टू की मम्मी की आवाज़ आई,"शांता, सभी खाने का सामान लेकर कार में बैठो। पूजन सामग्री साहब ले गए हैं।"
किट्टू की मम्मी माला, उसके साथ नीचे सोसायटी पार्किंग में पहुंची। उसके पापा गिरीश उन लोगों का इंतज़ार कर रहे थे, उनके बैठते ही कार चल पड़ी।
शरसैया घाट से थोड़ी दूर पार्किंग में कार खड़ी कर वे सब घाट पर पहुंचे।
पंडित जी उनकी प्रतीक्षा कर रहे थे। उन्होंने सारी व्यवस्था कर रखी थी। पूजन सामग्री व्यवस्थित कर शांता के साथ माला ने खाने का सामान रख दिया। साथ ही में पंडित जी को देने वाले उनके वस्त्र और एक मखमली महंगा कम्बल भी रख दिया।
गंगा नदी के घाट पर कौए इधर उधर उड़ रहे थे, किट्टू ने देखा कि कुछ लोग उन्हें खाना खिला रहे हैं। कौए भी इतने होशियार कि दोने में खाना देख सीधे नीचे डाइव मारकर चोंच में पलभर में दबाकर ले जाते।
यहां वहां कुत्ते भी घूम रहे थे, लोग उन्हें भी भगाने की बजाय बड़े आग्रह से उन्हें भी खाना दोने में दे रहे थे। वहां गाय भी इधर उधर खड़ी लोगों का दिया खाना खा रही थीं।
किट्टू ने शांता से पूछा तो उसने बताया कि कौआ, कुत्ता और गाय को भी श्राद्ध में खाना खिलाते हैं। यह सभी बातें किट्टू के लिए नयी थीं। असल में किट्टू के दादाजी का श्राद्ध गिरीश गया जी जाकर कर आए थे तो अब उनका नहीं करते हैं। गया जी में श्राद्ध करने से सम्पूर्ण श्राद्ध माना गया है।
खैर छोड़िए, बात यहां चल रही है नन्हें किट्टू की... समय भी कुछ अधिक हो गया और जैसे ही माला और शांता ने पूरा खाना पूजन स्थल में खोलकर रखा, किट्टू, जिसको अब तक भूख लग आई थी, बोला "मम्मी मुझे भी लड्डू और खीर-पूरी खाना है।"
माला ने समझाया," पहले पंडित जी खाएंगे, फिर सबको मिलेगा। "
"उससे क्या होगा ?" किट्टू ने पूछा
"पंडितजी खाएंगे तो दादी को भगवानजी के यहां खाना मिल जाएगा।" माला ने बताया
किट्टू ने कहा," मम्मी, फिर तो हम सबको पहले खा लेना चाहिए। दादी को आप खाना सबसे बाद में देती थीं। उनको तो मांगने पर भी मिठाई और अच्छा खाना नहीं दिया, कभी भी उनका बर्थडे नहीं मनाया तो यह 'श्राद्ध डे' क्यों मना रही हो ?"
किट्टू के मम्मी पापा का सिर शर्म से झुक गया। उनसे कुछ कहते न बना।
पंडित जी भी किट्टू को देखते रह गए। शांता सब जानती थी, उसकी आंखें नम हो आईं।
दोस्तों, ये कहानी दिल से लिखी है मैंने और यदि मेरी यह रचना आपके दिल को छू गई है तो कमेंट सेक्शन में अपनी राय साझा कीजियेगा। पसंद आने पर कृपया लाइक और शेयर करें। श्राद्ध पर लिखी मेरी इस रचना में जो संदेश निहित है, पहुंचाने में कितनी सफल हुई हूॅ॑, जानने की इच्छा है । आपकी प्रतिक्रिया का इंतजार रहेगा।
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