दादी
दादी
माँ की आकस्मिक मृत्यु के बाद दादी हमारी देखभाल के लिए यहाँ चली आयीं। पापा का पहले ही स्वर्गवास हो चुका था।
अब घर में तीन जन थे.. दादी, मैं और गुड़िया। गुड़िया मुझसे छह साल छोटी थी। मेरा बी टेक अंतिम वर्ष है। अबकी बार दसवीं की बोर्ड परीक्षा है गुड़िया की। खूब मेहनत कर रही है। दादी दिन भर "गुड़िया गुड़िया" चिल्लाती रहती। मैं गुड़िया के उठने से पहले दादी के पास पहुंच जाता और दादी का काम कर देता।
दादी को ये सब नागवार गुज़र रहा था।
आज फिर दादी चिल्लाई," ए गुड्डो, किताब छोड़। ज़रा आटा गूंथ दे। मेरे हाथ में दर्द है। "मैंने इशारे से गुड़िया को मना किया और चुपचाप रसोई में चला गया।
मुझे आटा गूंथते देख दादी भड़क गयीं।
" ये क्या कर रहा है ? हमारे घर में लड़के नहीं करते रसोई के काम। सर पे मत चढ़ा लड़की को। कुछ काम कर लेने दे। दो मिनट काम कर देगी तो नंबर कम ना हो जाएंगे इसके। कलक्टर ना बनाना इसने। चूल्हा चौका तो करना ही पड़ेगा।"
" दादी जी, परीक्षा में हर पल कीमती होता है। और फिर मैंने आटा गूंथ दिया तो क्या हुआ? गुड़िया बहन है मेरी! अगले महीने मेरी भी तो परीक्षा है। फिर मैं पढूंगा और गुड़िया आपकी मदद करेगी! ठीक है न दादी?
हम दोनों की आवाज़ सुनकर गुड़िया भी चली आई।
बात दादी को समझ आ गई थी शायद।
कुछ क्षण ठहर कर बोली ," काश तेरे जैसा भाई , मेरा भी होता तो अनपढ़ न रहती। मेरा बचपन तो चूल्हे चौंके में ही निकल गया।"
तो दादी.... अभी कौन सा देर हुई है! कल मेरा अंतिम पेपर है। कल से तुम्हारी क्लास शुरू ! लिखना पढ़ना तो तुम्हें सिखा ही दूंगी। फिर रोज़ रामायण पढ़ना"
और हां दादी.... कलक्टर तो तुम्हारी पोती बनेगी ही ! "गुड़िया दादी की गर्दन में बाहें डालती हुई बोली।
दादी के चेहरे पर खुशी देखने लायक थी।
उन्होंने हम दोनों पर आशीर्वाद की झड़ी लगा दी।