Rajeev Rawat

Drama Inspirational

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Rajeev Rawat

Drama Inspirational

दादी की माला-एक कहानी

दादी की माला-एक कहानी

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बचपन से देख रहा था। दरवाजे और आंगन के मध्य बने दरवाजे के पास अपनी खटिया पर अपना आसन लगाये एक हाथ से माला के दानों को सरकाती और चश्मे से तिरछी नजरें से देखती हुई दादी एक एक हरकतों पर ध्यान रखती, दरवाजे से आंगन तक मजाल है छुपकर परिंदा भी पर मार जाये--सच में दादी जीती जागती स्पाई कैमरा थी जो अधखुली आंखों से सबकी हरकतें कैद कर लेती थीं। काम करने बाली बाईयां हो या घर की बहुएं, उनके सामने से आने में जितना कतराती उतनी अपनी किसी न किसी हरकत से दादी के चंगुल में फंस जाती--वैसे दादी डाटती या झगड़ा नहीं करतीं थी। बस अकेले बैठे बैठे बोर हो जाती थीं और बोलने के लिए किसी न किसी को खोजती रहतीं और एक बार जो उनके पकड़ में आ जाता उसे कम से कम दादी की राम कथा का वाचन आधा एक घंटे से सुनना ही पड़ता--

                 वैसे दादी दिल की बहुत अच्छी थी, पिताजी सेना में थे, एक बार वह लगभग छै माह बाद छुट्टियों में घर आये थे, अम्मा उस दिन शाम से सजी धजी घूम रहीं थी। किचिन का काम निपटा कर अपने कमरे में जा ही रहीं थीं कि दादी की नजर उन पर पड़ गयी--अम्मा इससे पहले कि तेजी से कमरे में पहुंचती दादी की आवाज सुनाई दी--अरे बड़ी बहू जरा सुनना तो--अम्मा के न चाहने पर भी पैरों को ब्रेक लगाने पड़े और अम्मा दादी के पास पहुंची की दादी शुरू हो गयी--बड़ी बहू तुम्हारे ससुर जी भी जब घोड़े पर सामान लेकर छै सात दिन के लिए हाट जाते थे तब---अम्मा बेमन से सुन रहीं थी--उधर कमरे में लालटेन की रोशनी बार बार कम और तेज हो रही थी--अचानक अम्मा ने बहाना कर दिया किया आज सुबह से बदन टूट रहा है और सिर में जोर से दर्द हो रहा है, शायद बुखार आने वाला है---दादी दादा को भूल गयीं और बोली -जा बहू तू कमरे में आराम कर, अम्मा इतनी फुर्ती से उठ कर गयीं कि आज तो पी टी ऊषा भी हार मान जाती, अभी अम्मा को कमरे में गये कुछ ही समय हुआ था कि अचानक  दरवाजे पर खटखट हुई--अम्मा ने दरवाजा खोला तो सामने दादी लाठी टेकते हुए एक भगोनी में ठंडा पानी लिए खड़ी थी--बेटा चल ठंडे पानी की पट्टी रख दूं---अब अम्मा, न कर सकती थी और न हां--तब पिताजी ने भगोनी ले कर कहा अम्मा आप क्यों परेशान होती हो मैं हूं न, अम्मा को शर्माते देखकर दादी सब समझ गयी और भगोनी देकर चली आयीं और अपने सिर पर अपने हाथ पंजा मारते हुए बोली - - हां रे अब तो मैं भी सठिया गई और खटिया पर बैठ कर खुब हंस रहीं थी और हम बच्चे अवाक उन्हें देख रहे थे---

                दादी के पास की कहानियों के न जाने कितने संग्रह थे। एक बार दादी ने बताया कि कैसे दादा जी ने एक रात पिताजी को एक लठ्ठ जड़ ही दिया होता--उस समय की बात है-- घर के सारे मर्द बाहर वाले कमरे में जिसे पौंर कहते हैं में लेटते थे और सारी औरतें अंदर दालान में--आज की तरह सबके अपने अपने कमरे नहीं होते थे और उस समय शादियाँ भी बचपन में हो जाती थीं। -पता ही न चलता था कब खेलते झगड़ते बड़े हो जाते थे - - एक रात तेरे दादा और तेरे पिताजी सो रहे थे - - अचानक आंगन में कुछ आवाज आयी तो दादा जी की आंख खुल गयी--कौन है - - कौन है - - फिर आव देखा न ताव सिरहाने पड़ा लट्ठ उठाया और आंगन की तरफ दौड़े--आगे आगे वह व्यक्ति और पीछे पीछे दादा, अचानक आगे वाला व्यक्ति पीछे का दरवाजा खोलकर खलिहान की ओर दौड़ गया--हांफते हाँफते दादा वापिस लोट कर पोंर में आये और लालटेन जलाई तो देखा कि तुम्हारे पापा का बिस्तर खाली था--अब उनकी समझ में आया और उसके दूसरे दिन से दादा का विस्तर खलिहान में बने कमरे में लगने लगा--वह समझ गये कि बेटा बड़ा हो गया---

            वैसे तो दादी बहुत बड़ी कर्मकांडी थीं, सुबह उठकर स्वयं नहाती और बहुओं को भी नहाने के लिए कहतीं-यही नियम था कि नहाने के बाद ही रसोईघर में प्रवेश करेंगी- अम्मा उस समय नयी नयी आई थी -नियम कानून पता नहीं थे - - दादा जी की सुबह सुबह आवाज आई - - अरे भाई कोई सुबह की चाय देगा या नहीं--दादी स्नान करने गयी थी--अम्मा अकेली थी--उम्र भी छोटी थी--हड़बड़ाकर रसोई में जाकर चाय बनाने लगी, चाय लेकर वह बाहर ही आयी थी कि इतने में दादी भी स्नान करके आ गयी और उन्होंने ने अम्मा से पूछा क्यों तुमने नहा लिया था--अम्मा ने ना में सिर हिलाया ही था कि दादी का पारा बढ़ गया और अम्मा को परिवार सहित अच्छी खरी-खोटी सुना दी--अचानक हुए इस झमेले से अम्मा घबरा गयीं और हाथ से चाय का प्याला छूटा और अम्मा के हाथ से गिरता हुआ पैरों पर गर्म चाय गिर गयी--जलन के कारण अम्मा रोने लगीं- दादी के हाथ में गीले कपड़े थे--उन्हें एक ओर फेंक कर अम्मा के पैर को सहलाने लगीं और धीरे से सहारा देकर पलंग पर बैठाकर गंवार पट्ठा का रस मलने लगीं--तीन दिनों तक वह कर्मकांडी दादी मां सिर्फ मां बनकर घाव सहलाती रहीं--स्वयं नहाती सारा रसोईघर धोती रहीं किंतु अम्मा को उठने नहीं दिया--

                दादी ने बचपन की एक घटना सुनाई थी, आज भी याद आने पर उस समय उनकी नादानी पर हंसी छूट जाती है। जब दादी की शादी हुई थी उस समय उनकी उम्र लगभग ग्यारह - बारह साल रही होगी और दादा सोलह या सत्रह के रहे होंगे। -दादी जी के ससुर जी का पूरे घर में बहुत दबदबा था--बहुत ही कड़क थे--सावन का महिना था! दादा जी और उनके पिताजी सुबह सुबह घोड़े पर सामान लेकर पांच कोस दूर लगे मेले में जाना था--दादी के ससुर जी माल लदवा कर दादा जी का इंतजार कर रहे थे और दादा जी अपने पिताजी के डर के मारे ठंड में आंगन में जल्दी जल्दी नहा रहे थे--अभी हल्का सा अंधेरा था--नहाने के बाद अँगोछे से बदन पोंछकर अपनी धोती पहनने के लिए हाथ बढ़ाया तो धोती गायब- -चारों ओर देखा कहीं नहीं दिख रही थी--उधर उनके पिताजी गुस्से में जल्दी आने के लिए चीख रहे थे--सारे घर में हड़कप मचा था--धोती आखिर गयी कहां-- अचानक दादा के पिताजी को खलिहान की ओर से बिन्नो की खिलखिलाने आवाज सुनाई दे गई--सब लोग वहां पहुँचे तो दादी झूले पर झूल रहीं थीं और बिन्नो जोर जोर से झुला रही थी और झूला दादा की धोती से बना था--यह तो बाद में पता चला कि कल उनकी रस्सी टूट गई थी इसलिए चद्दर का झूला बनाना था और अंधेरे की वजह से चद्दर की जगह दादी दादा की धोती ले आयी थी--उस दिन ठंड में कांपते अधनंगे दादा और क्रोध में भरे उनके पिताजी को देखकर लगा कि आज दादी की खैर नहीं--दादी अपनी गलती पर सिर झुकाये खड़ीं थी और डर के मारे टपटप आंसू गिर रहे थे -अचानक दादी के ससुर जी जोर जोर से हंसने लगे और दादा से बोले काये रे ऐसे नंगे खड़े रहेगा या धोती भी पहनेगा--और हां कल से सभी अपनी धोतियां संभाले रखियो--उस दिन के बाद सभी झूले का नाम लेकर दादी को चिढ़ाते थे और दादी भी दादा को छेड़ते हुए कहती थी कि मुझे गुस्सा दिलाया तो धोती का झूला बना दूंगी--

            दादी ऊपर से भले ही नारियल जैसी कड़क दिखती रहीं हो पर दिल से नारियल की गरी जैसी कोमल व मिठास लिए थीं----बिन्नो की शादी में कुंवर कलेऊ में दामाद राजा अड़ गये कि फटफटिया चाहिए--पिताजी ने बड़े मन से धूमधाम से शादी की सारी मांग पूरी की थी किन्तु इस नयी मांग से वह भी परेशान हो उठे--घर में सभी चुप थे कि अब क्या होगा - - उधर लल्ला मान नहीं रहे और यहां जेब इजाजत नहीं दे रही थी--जब यह बात दादी के पास पहुंची तो एक बार तो दादी खामोश रहीं फिर उठी और मैहर के कमरे(एक तरह पूजा घर) से चांदी के सिक्कों की पोटली लाकर पिताजी को दे दी--ये पुरखों की पूजा के इकट्ठा किये सिक्के हैं--इन सिक्कों से पुरखों की इज्जत ज्यादा कीमती है, जाकर बाजार में दे दो और फटफटिया लड़का को सौंप दो---

              घर में साफ सफाई के लिए लच्छो को लगा रखा था--उनके पति को दादा ने खेत के काम में लगा दिया तथा खलिहान में ही एक कमरा उन्हें दे रखा था--लच्छो घर के साथ ही खेत में भी काम करती थी--हम सब प्यार से लच्छो बुआ कहते थे---झाड़ू लगाते समय दादी को जानबूझ कर लच्छो बुआ छेड़ देती थी--कभी अनजान बनकर उनको छू लेती या उनके कपड़े छू लेती और दादी उनके पूरे कुटुंब को कोसती और गाली देती, पुनः नहाने चली जाती, कभी कभी तो गंगा जल लेकर छिड़कने लगती--छुआछूत तो पता नहीं कितना उनके मन में भर गया था - - यहां तक कि कई बार तो सिर्फ छू जाने का भ्रम होने पर नहाने लगती--चाहे गर्मी हो या ठंड कोई अंतर नहीं पड़ता---एक दिन खलिहान के कमरे से लच्छो बुआ के चीखने की आवाज आ रही थी--लच्छो बुआ पेट से थीं और यह नवां महीना चल रहा था, अचानक दाई भागती हुई आई और अम्मा से तुरंत पानी मांगने लगी--घर भर में भगदड़ मची हुई थी--दादी ने अम्मा से पूछा क्या हो गया--अरे बच्चा होने में इतनी हाय तौबा क्यों मचा रखी है--सब भागदौड़ में लगे थे किसी ने उत्तर नहीं दिया--अभी भी पौ नहीं फटी थी-- अंधेरा पसरा हुआ था--इस बार ठंड भी बहुत जोरों की पड़ रही थी-हाथ को हाथ नहीं सूझ रहा था, खलिहान के मुहाने पर बने कमरे के बाहर खड़े पुरुषों की भीड़ स्तब्ध रह गयी--एक हाथ में डंडा और माला एवं दूसरे हाथ में लालटेन लिए इस ठंड में कथरी ओढे दादी खड़ी थी---हुआ क्या है? कोई बताता क्यों नहीं है--अंदर से कमला दायी निकलकर आयी और बोली - - दादी लच्छो और उसके बच्चे की जान खतरे में है--बच्चा उल्टा फंस गया है--दादी के हाथ से डंडा और माला छूट गई, माला के मोती बिखर गये और कथरी को एक ओर फेंक कर लालटेन लिए अंदर चली गयीं--तुरंत तेल और गर्म पानी मगवाया--अपने साठ साल का अनुभव डाल दिया - - थोड़ी देर में बच्चे के रोने की आवाज आई और एक नन्हा सा बालक दादी के हथेलियों में था--बच्चा दादी के हाथों में मचल रहा था और दादी के चेहरे पर एक जीवनदायिनी रोशनी चमक रही थी--लच्छो बुआ ही नहीं सभी दादी को आश्चर्य से देख रहे थे--जाति, छुआछूत के बंधन को तोड़ दादी के चारों ओर एक ओजस्वी ओरा फैल गया था--भोर हो रही थी, बाहर भी और अंदर भी--दादी उठी और बाहर निकली - - उस भरी ठंड में अम्मा को आवाज दी आंगन मे पानी रख दो बहू--

             आज दादी नहीं है - - गुजरे हुए एक साल हो गया--आज उनकी बरसी है--आज भी उनकी खटिया वहीं बिछी है - - बगल में उनका डंडा और उस पर लटकती हुई माला--अंदर आने वाले सभी आज भी उस माला को प्रणाम करते हैं जो उस दिन एक झटके में टूट कर ऐसी बिखरी थी कि सारे ऊंच नीच, छुआछूत के बंधन मानवीय संबंधों के आगे बिखर गये थे---

                                     


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