Shaifali Khaitan

Inspirational

4.6  

Shaifali Khaitan

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दादाजी की सीख

दादाजी की सीख

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दक्ष जब छोटा था ,तो वह अपने दादा –दादी, माता –पिता व दो बड़ी बहनों के साथ रहता था। दक्ष जब सात साल का होने वाला था। उसे वैसे तो जन्मदिन पर बहुत सारे तोहफे मिले थे। दादाजी ने भी उसे एक खास तोहफा दिया था और साथ में एक नसीहत भी , की ये उसके तब काम आएगा, जब उसे उसकी सबसे ज्यादा जरुरत होगी। दादाजी ने उसे गुल्लक दी। वह रोज ज़ेबखर्ची व बड़ो से आशीर्वाद में मिलने वाले पैसे जमा करता था। वह घर में सबका लाडला था सभी उससे बहुत प्यार करते थे।


बात करीब पांच साल बाद की है , जब 2018 में उसके पिताजी ने दादा–दादी को तीर्थ यात्रा पर ले जाने का निर्णय लिया, बारीश का सुहाना मौसम था, पिताजी दादा–दादी के साथ तीर्थ यात्रा के लिये निकल गए। तभी मौसम ने अपना रुख बदला। अब बारिश इतनी अधिक बढ़ गयी थी की वह सुहाना मौसम अब मुसीबत बन गया था। सभी बस में एक दुसरे का हाथ थामे दुबके हुए बैठे थे। अँधेरा बढ़ रहा था और बस भी धीरे–धीरे आगे बढ़ रही थी, उन्हें पता भी नहीं चला की कब बैठे–बैठे आँख लग गयी, तभी कुछ समय पश्चात् एक जोर के झटके ने आँखे खोल दी, उनकी बस खायी में धंस रही थी। अब उनका बच पाना संभव नहीं था वे अपनी जिंदगी का आखिरी दृश्य देख रहे थे। इस दुर्घटना ने दक्ष के दादा–दादी व पिता को खो दिया था। अब वह अपनी माँ और दोनो बहनों के साथ रहता था। माँ भी इतनी पढ़ी–लिखी नहीं थी की इस हादसे के बाद परिवार को पालने के लिए पर्याप्त कमा पाये।



करीब एक साल बाद उसकी बड़ी बहन की नोकरी लगने से घर में ख़ुशी का माहोल छा गया था। अब घर का राशन,छोटे भाई-बहनों की स्कूल का खर्च उठाना आसान हो गया था। जैसे ही परिवार खुशियो के साथ आगे बढ़ रहा था की विशवव्यापी ‘कोरोना’ ने आर्थिक मंदी को ला दिया। अब उसकी बहन को इतना पैसा नहीं मिलता था, वेतन भी कट के आने लग गया था। चिंता के मारे माँ की तबियत भी ठीक नहीं रहने लगी थी। ऐसे में घर का खर्च चलाना भी मुश्किल हो गया था ,तो माँ की दवाइयों का खर्च कैसे उठाये। अब वक्त ने भी साथ देना छोड़ दिया था, तभी दक्ष को अपना बच्चपन का गुल्लक याद आया जिसमे वह कई साल पहले पैसे जमा किया करता था,और उसे दादाजी की बात याद आई आज यह वही समय था जब उसे गुल्लक की बहुत जरुरत थी उसने उसी समय गुल्लक को जमीन पर पटक दिया और सबके लिए खुशियाँ ले आया।




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