तितली रानी बड़ी सयानी
तितली रानी बड़ी सयानी
अंश और रिया घर के बाहर लॉन में घर-घर खेल रहे थे, तभी रिया की नजर रंग-बिरंगे पंखों वाली तितली पर पड़ी, उसे देखते रिया जोर से चिल्लाकर बोली देखो अंश तितली, इतना कहकर मन में हजारों सवाल लिए दोनों खुशी से उसके पीछे दौड़ पड़ते है।
अरे ! तितली रुको, अरे ! तितली रुको....
क्या तुम हमारे साथ खेलोगी ?
तुम्हारा घर कहाँ है ?
तुम कहाँ रहती हो ?
तितली के रंग-बिरंगे पंख उन्हें आकर्षित कर रहे थे। दोनों तितली को पकड़ना चाहते है। वे उसे अपनी दोस्त बनाना चाहते है। कुछ देर बाद, दोनों दौड़ते-दौड़ते थक कर बैठ जाते है।
तभी, अंश बोलता है, दीदी दादी के पास चले क्या ?
शायद दादी हमारी तितली को पकड़ने में कुछ मदद कर दे। हाँ, अंश चलो चलते है। ऐसा कहकर दोनों दादी के पास चले जाते है।
दादी हमें तितली चाहिए ... दादी हमें तितली चाहिए ..
हम उसे कैसे पकड़े ? त
ितली कहाँ रहती है, दादी ? तितली का घर कहाँ है ? वो क्या खाती है ?
दादी दोनों की परेशानी सुनकर हँसते हुए बोली...
तितली रानी बड़ी सयानी....ऐसे ही हाथ ना आयेगी तुम्हारे...
क्या करोगे तुम उसे पकड़कर ?
तभी अंश बोलता है, दादी में उसे एक जार में बंद कर दूँगा और फिर उसे देखूँगा वो कैसे उड़ती है। और रिया बोलती है, मैं तो उसके साथ खेलूँगी ? उसे अपनी दोस्त बनाऊँगी।
ये सब सुनने के बाद दादी दोनों बच्चों को समझाते हुए बोलती है, तितली का घर बगीचों में हैं, वह वही बगीचों में रहती है, वह फूलों का रस पीती है। अगर तुम उसे पकड़ लोगे तो अपने घर वापस कैसे जायेगी ? वह अपने परिवार और अपने दोस्तों से अलग हो जायेगी। तुम्हें तितली को नहीं पकड़ना चाहिए , उसे उसकी जिंदगी देना चाहिए। दादी की बातें दोनों बच्चों को समझ आ गयी थी। अब वे तितली को नहीं पकड़ना चाहते थे।