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Jai Prakash Pandey

Inspirational

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Jai Prakash Pandey

Inspirational

चुटका की चुटकी

चुटका की चुटकी

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जैसे एक बच्चा अपने नन्हे - नन्हे क़दमों से चलते - चलते तेज़ी से दौड़ने लगता है, उसी प्रकार हम सभी अपने जीवन में अपने छोटे-छोटे कार्यों से बड़ा मुकाम हासिल करते हैं और इसी को बौनी उड़ान कहते हैं। 

ऐसी ही बौनी उड़ान का अर्थ देती चुटका गांव की छोटी सी बेटी-के एक वाक्य ने ऐसी प्रेरणा और जुनून दिया, जो इस कहानी का सच है। 

   

बारह साल पहले बैंक रिकवरी के सिलसिले में बियाबान जंगलों के बीच बसे चुटका गांव में जाना हुआ था। आजीवन कुंआरी कलकल बहती नर्मदा के किनारे बसे छोटे से गांव चुटका में फैली गरीबी, बेरोजगारी, निरक्षरता देखकर मन द्रवित हुआ था और स्टोरी मिरर के विषय पर कहानी लिखने का अचानक मन हो गया। चुटका गांव की आंगन में रोटी सेंकती गरीब छोटी सी बालिका ने ऐसी प्रेरणा और जुनून भर दिया कि हमारे दिल दिमाग पर चुटका के लिए कुछ करने का भूत सवार हो गया। उस गरीब बेटी के एक वाक्य ने इस संस्मरणात्मक कहानी को जन्म दिया।


आफिस से रोज पत्र मिल रहे थे, रिकवरी हेतु भारी भरकम टार्गेट दिया गया था। कहते है - ''वसूली केम्प गाँव-गाँव में लगाएं, तहसीलदार के दस्तखत वाला वसूली नोटिस भेजें... कुर्की करवाएं... और दिन-रात वसूली हेतु गाँव-गाँव के चक्कर लगाएं... हर वीक वसूली के फिगर भेजें... और 'रिकवरी -प्रयास’ के नित-नए तरीके आजमाएँ... बड़े साहब टूर में जब-जब आते है... तो कहते है -''तुम्हारे एरिया में २६ गाँव है और रिकवरी फिगर २६ रूपये भी नहीं है...”


धमकी जैसे देते है... कुछ नहीं सुनते है। कहते है - “की पूरे देश में सूखा है... पूरे देश में ओले पड़े है... पूरे देश में गरीबी है... हर जगह बीमारी है पर हर तरफ से वसूली के अच्छे आंकड़े मिल रहे है और आप बहानेबाजी के आंकड़े पस्तुत कर रहे है। कह रहे है की आदिवासी इलाका है गरीबी खूब है... कुल मिलाकर आप लगता है की प्रयास ही नहीं कर रहे है...” आखें तरेर कर न जाने क्या-क्या धमकी...


तो उसको समझ में यही आया की वसूली हेतु बहुत प्रेशर है और अब कुछ न कुछ तो करना ही पड़ेगा... सो उसने चपरासी से वसूली से संबधित सभी रजिस्टर निकलवाये... नोटिस बनवाये... कोटवारों और सरपंचों की बैठक बुलाकर बैंक की चिंता बताई। बैठक में शहर से मंगवाया हुआ रसीला-मीठा, कुरकुरे नमकीन, 'फास्ट-फ़ूड' आदि का भरपूर इंतजाम करवाया ताकि सरपंच एवम कोटवार खुश हो जाएँ...


बैठक में उसने निवेदन किया की, अपने इलाका का रिकवरी का फिगर बहुत ख़राब है, कृपया मदद करवाएं।


बैठक में दो पार्टी के सरपंच थे... आपसी-बहस... थोड़ी खुचड़ और विरोध तो होना ही था। सभी का कहना था की पूरे २६ गाँव जंगलों के पथरीले इलाके के आदिवासी गरीब गाँव है, घर-घर में गरीबी पसरी है फसलों को ओलों की मर पडी है... मलेरिया बुखार ने गाँव-गाँव में डेरा डाल रखा है... जान बचाने के चक्कर में सब पैसे डॉक्टर और दवाई की दुकान में जा रहा है... ऐसे में किसान मजदूर कहाँ से पैसे लायें... चुनाव भी आस पास नहीं है कि चुनाव के बहाने इधर-उधर से पैसा मिले...”


सब ने खाया पिया और ''जय राम जी की'' कह के चल दिए और हम देखते ही रह गए।


दूसरे दिन उसने सोचा-सबने डट के खाया पिया है तो खाये पिए का कुछ तो असर होगा, थोड़ी बहुत वसूली तो आयेगी... यदि हर गाँव से एक आदमी भी हर वीक आया तो महीने भर में करीब १०४ लोगों से वसूली तो आयेगी ऐसा सोचते हुए वह रोमांचित हो गया... उसने अपने आपको शाबासी दी और उत्साहित होकर उसने मोटर साईकिल निकाली और ''रिकवरी प्रयास” हेतु वह चल पड़ा गाँव की ओर... जंगल के कंकड़ पत्थरों से टकराती... घाट-घाट कूदती फांदती... टेडी-मेढी पगडंडियों में भूलती - भटकती मोटर साईकिल किसी तरह पहुॅंची एक गाँव तक।


सोचा कोई जाना-पहचाना चेहरा दिखेगा तो रौब मारते हुए ''रिकवरी धमकी” दे मारूंगा। सो मोटर साईकिल रोक कर वह थोडा देर खड़ा रहा, फिर गली के ओर-छोर तक चक्कर लगाया... वसूली रजिस्टर निकलकर नाम पढे, कुछ बुदबुदाया... उसे साहब की याद आयी... फिर गरीबी को उसने गालियाँ बकी... पलट कर फिर इधर-उधर देखा... कोई नहीं दिखा। गाँव की गलियों में अजीब तरह का सन्नाटा और डरावनी खामोशी फैली पडी थी, कोई दूर दूर तक नहीं दिख रहा था!


कोई नहीं दिखा तो सामने वाले घर में खांसते - खखारते हुए वह घुस गया। अन्दर जा कर उसने देखा, दस-बारह साल की लडकी आँगन के चूल्हे में रोटी पका रही है, रोटी पकाते निरीह अनगढ़ हाथ और अधपकी रोटी पर नजर पड़ते ही उसने ''धमकी’' स्टाइल में लडकी को दम दी, “ऐ लडकी ! तुमने रोटी तवे पर एक ही तरफ सेंकी है, कच्ची रह जायेगी?”


लडकी के हाथ रुक गए, पलट कर देखा, सहमी सहमी सी बोल उठी, “बाबूजी रोटी दोनों तरफ सेंकती तो जल्दी पक जायेगी और जल्दी पक जायेगी तो... जल्दी पच जायेगी... फिर और आटा कहाँ से पाएंगे?”


वह अपराध बोध से भर गया... ऑंखें नम होती देख उसने लडकी के हाथ में आटा खरीदने के लिए सौ का नोट पकडाया और मोटर साईकिल चालू कर वापस बैंक की तरफ चल पड़ा...।


रास्ते में नर्मदा के किनारे अलग अलग साइज के गढ्ढे खुदे दिखे तो जिज्ञासा हुई कि नर्मदा के किनारे ये गढ्ढे क्यों ? गांव के एक बुजुर्ग ने बताया कि सन् 1983 में यहां एक उड़न खटोले से चार-पांच लोग उतरे थे गढ्ढे खुदवाये और गढ्ढों के भीतर से पानी मिट्टी और थोड़े पत्थर ले गए थे और जाते-जाते कह गए थे कि यहां आगे चलकर बिजली घर बनेगा।


बात आयी और गई और सन् 2006 तक कुछ नहीं हुआ हमने शाखा लौटकर इन्टरनेट पर बहुत खोज की चुटका परमाणु बिजली घर के बारे में पर सन् 2005 तक कुछ जानकारी नहीं मिली। चुटका के लिए कुछ करने का हमारे अंदर जुनून सवार हो गया था जिला कार्यालय से छुटपुट जानकारी के आधार पर हमने सम्पादक के नाम पत्र लिखे जो हिन्दुस्तान टाइम्स, एमपी क्रोनिकल, नवभारत आदि में छपे। इन्टरनेट पर पत्र डाला सबने देखा सबसे ज्यादा पढ़ा गया... लोग चौकन्ने हुए। 


हमने नारायणगंज में "चुटका जागृति मंच" का निर्माण किया और इस नाम से इंटरनेट पर ब्लॉग बनाकर चुटका में बिजली घर बनाए जाने की मांग उठाई। चालीस गांव के लोगों से ऊर्जा विभाग को पोस्ट कार्ड लिख लिख भिजवाए। तीन हजार स्टिकर छपवाकर बसों, ट्रेनों और सभी जगह के सार्वजनिक स्थलों पर लगवाए। चुटका में परमाणु घर बनाने की मांग संबंधी बच्चों की प्रभात फेरी लगवायी, म. प्र. के मुख्य मंत्री के नाम पंजीकृत डाक से पत्र भेजे। पत्र-पत्रिकाओं में लेख लिखे। इस प्रकार पांच साल ये विभिन्न प्रकार के अभियान चलाये गये। 


जबलपुर विश्वविद्यालय के एक सेमिनार में परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष डॉ. काकोड़कर आये तो ‘चुटका जागृति मंच’ की ओर से उन्हें ज्ञापन सौंपा और व्यक्तिगत चर्चा की, उन्होंने आश्वासन दिया तब उम्मीदें बढ़ीं। डाॅ. काकोड़कर ने बताया कि वे भी मध्यप्रदेश के गांव के निवासी हैं और इस योजना का पता कर कोशिश करेंगे कि उनके रिटायर होने के पहले बिजलीघर बनाने की सरकार घोषणा कर दे और वही हुआ लगातार हमारे प्रयास रंग लाये और मध्य भारत के प्रथम परमाणु बिजली घर को चुटका में बनाए जाने की घोषणा हुई।

      

मन में गुबार बनके उठा जुनून हवा में कुलांचे भर गया। सच्चे मन से किए गए प्रयासों को निश्चित सफलता मिलती है इसका ज्ञान हुआ। बाद में भले राजनैतिक पार्टियों के जनप्रतिनिधियों ने अपने अपने तरीके से श्रेय लेने की पब्लिसिटी करवाई पर ये भी शतप्रतिशत सही है कि जब इस अभियान का श्रीगणेश किया गया था तो इस योजना की जानकारी जिले के किसी भी जनप्रतिनिधि को नहीं थी और जब हमने ये अभियान चलाया था तो ये लोग हंसी उड़ा रहे थे। पर चुटका के आंगन में कच्ची रोटी सेंकती वो सात-आठ साल की गरीब बेटी ने अपने एक वाक्य के उत्तर से ऐसी पीड़ा छोड़ दी थी कि जुनून बनकर चुटका में परमाणु बिजली घर बनने का रास्ता प्रशस्त हुआ।


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