Manju Yadav

Abstract

4.5  

Manju Yadav

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चुप्पी

चुप्पी

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अमन रोज की तरह तैयार होकर अपने रिक्शे वाले का‌इंतजार कर रहा था। वह‌ शहर के एक प्रतिष्ठित स्कूल में कक्षा तीन का था। देखने में सांवले रंग का अत्यंत गंभीर बच्चा था। उसे देखकर ऐसा लगता था कि जैसे वह अपनी उम्र से पहले ही बड़ा हो गया है। चंचलता से उसका दूर दूर तक कोई नाता नहीं था। स्कूल में आज अमन बिल्कुल शांत था,रोज से कुछ ज्यादा ही। आज उसने अपना होमवर्क भी नहीं किया था।

विभा मैडम अपना पाठ पढ़ा रहीं थीं पर उसका ध्यान कहीं और ही था। मैडम की नजर पूरी कक्षा पर रहती थी अतः उन्हें यह समझने में देर न लगी कि आज बात कुछ और ही है। उन्होंने तुरंत अमन से एक प्रश्न पूछा किन्तु अमन उसका उत्तर न दे सका। यह देखकर मैडम ने पूछा

आज ध्यान कहां है तुम्हारा। तबीयत तो ठीक है न। मैडम ने उसके माथे को छुआ और बोली कि तुम्हें तो बुखार भी नहीं है। सच सच बताओ आखिर क्या बात है। क्या घर में कोई दिक्कत है? किंतु अमन कुछ न सका बस निशब्द खड़ा रहा। मैडम ने उसकी अवस्था देखकर‌ और प्रश्न न पूछते हुए उसे बैठ जाने को कहा।

कक्षा समाप्त करने के पश्चात मैडम बच्चों की होमवर्क कापी लेकर स्टाफ रूम में चलीं गईं। बैठते ही थकान भरे स्वर में चपरासी को एक कप काफी लाने को बोला। काम करते हुए भी मन ही मन वह यही सोच रही थी कि अमन के घर में आखिर ऐसा क्या हुआ जो यह कोमल मन सहन नहीं कर सका या फिर बात कुछ और ही है। ये लीजिए मैडम आपकी स्ट्रांग वाली काफी कहते हुए चपरासी ने काफी का मग विभा के सामने रख दिया। विभा को अपने प्रश्नों के उत्तर न मिल सके। उसने एक गहरी सांस ली और फिर काफी पीना आरंभ किया।

किंतु अभी भी उसका मन अपने प्रश्नों के उत्तर खोजने में ही लगा हुआ था। जब काफी भी खत्म हो गई तो उसने बच्चों की कापियों में होमवर्क चेक करना शुरू किया। पांच बच्चों की कापी चैक करने के पश्चात अमन की कापी विभा के सामने थी। ये क्या आज तो अमन ने अपना काम पूरा ही नहीं किया।

लिखना तो उसने शुरू किया था क्योंकि दो लाइनें तो लिखी थीं, किन्तु आगे कुछ नहीं लिखा। ऐसा क्यों? विभा ने कापी को उलट पलट कर देखा। यह क्या ?

कापी के पीछे वाले पन्ने में कुछ लिखा था। मत मारो। प्लीज पापा। मम्मा को मत मारो। क्यों मारते हैं उसे? हे भगवान जी! आप ही बचा लो उसे। कापी के इस आखिरी पेज को पढ़कर विभा स्तब्ध थी। आज पढ़े लिखे समाज में भी इतने क्रूर लोग हैं जो नारी को अपने पांव की जूती समझते हैं।

विभा ने अमन के माता-पिता से मिलने का निश्चय किया और उसकी डायरी में नोट लिख दिया कि कल वह अपने पेरैंट्स को स्कूल लेकर आए। अगले आफिस में अमन के माता-पिता विभा के सामने थे। विभा ने कहा आप दोनों लोग पढ़े लिखे एवं समझदार दिखाई देते हैं। मुझे आपसे कुछ ऐसा कहना है जो आपके बच्चे की प्रोग्रैस के लिए जरूरी है। हमें अपने घर का माहौल भी ऐसा बनाना पड़ता है कि बच्चों पर उसका नकारात्मक प्रभाव न पड़े। आपने कभी इस बात की तरफ ध्यान दिया है कि आपका बच्चा थोड़ा डरा और सहमा रहता है।

वह अपनी उम्र से पहले ही बड़ा हो गया है। ये मीटिंग एकतरफा ही चल रही थी। अमन के माता-पिता किसी बात का जवाब ही नहीं दे रहे थे। मां कुछ बोलना चाह रही थी किंतु पिता के आगे वह भी बेबस थी। फिर मैडम ने उनको पूरी बात बताई। सुनते ही पिता आग बबूला हो गया और जोर जोर से बोलने लगा। साथ ही अपनी बीवी को भी उल्टा डांटने लगा जैसे सारी गलती उसी की हो। ऐसे पुरुष कभी भी अपना दोष नहीं मानते। सत्य स्वीकार करने की हिम्मत भी उनमें नहीं होती। इसके बाद वह एक मिनट भी नहीं रुके और तमतमाते हुए चले गए।

दो दिन तक अमन स्कूल नहीं आया। विभा मैडम मन ही मन उसके बारे में सोचकर परेशान थीं। आखिर तीसरे दिन अमन थके हुए लड़खड़ाते कदमों से स्कूल आता दिखाई दिया।

विभा मैडम ने उसे देखते ही पीठ पर हाथ रखते हुए पूछा,तुम दो दिन से स्कूल क्यों नहीं आए? किंतु यह क्या! विभा के हाथ रखते ही अमन दर्द से कराह उठा। जब विभा ने शर्ट हल्की सी ऊपर की तो वह स्तब्ध रह गयी। अमन की पूरी पीठ पर छड़ी के काले निशान थे। विभा की आंखों से अनायास ही आंसू फूट पड़े। अब उसके सामने कोई प्रश्न शेष न था। उसे अपने सारे प्रश्नों के उत्तर मिल चुके थे।


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