Manju Yadav

Others

3.5  

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अल्पना

अल्पना

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राजीव रोज की तरह अपने पांच साल के बेटे को स्कूल छोड़ने जा रहा था। "क्या हुआ? अभी तक टिफिन रेडी नहीं हुआ, तुम्हारा यह रोज़ का हो गया है" बोलता हुआ वह कार की चाभी उठाकर जाने लगा। तभी पूनम लगभग दौड़ती हुई कार के पास पहुंची और टिफिन देते हुए बोली"आज क्या बगैर टिफिन लिए ही स्कूल जाने का इरादा था?" क्या करूँ अब तो यह रोज़ का हो गया है तुम्हारा। बच्चे का स्कूल तो रोज़ मिस नहीं करवा सकता, राजीव ने त्यौरियां चढ़ाते हुए बोला। कितनी बार बोला है जल्दी उठा करो, कहते हुए राजीव ने गाड़ी का एक्सिलेटर बढ़ा दिया। आज सच में काफी देर हो गई थी। बच्चे क्लास में जा चुके थे। प्री-प्राइमरी स्कूल होने के कारण पैरेंट्स बच्चों को क्लास तक छोड़ सकते थे। जैसे ही राजीव बच्चे को स्कूल के भीतर ले गया, एक आया ने झट से बच्चे का हाथ पकड़ा और बोली, सर आप जाइए मैं बच्चे को उसकी क्लास में छोड़ दूंगी। राजीव उस आया को देखते ही रह गया। उसे लगा कि यह चेहरा तो काफी जाना पहचाना सा है। शायद ये वही है। नहीं नहीं ये वो हो ही नहीं सकती। एक उजला सा सूखा चेहरा, बिखरे उलझे बाल, माथे पर बिंदी की जगह धारियों ने ले रखी थी। आँखें अंदर की ओर धंसी हुई पर पक्का काला रंग था आंखों का। थोड़ी वीरान पर नमी बहुत थी उसकी आंखों में, होंठ तो कमल की ही तरह थे पर .... अचानक गाड़ी के सामने एक छोटा बच्चा आ गया और गाड़ी को ब्रेक लगाना पड़ा।

राजीव इसी उधेड़बुन में था कि वह आया तो अल्पना जैसी थी। न न वह पक्का अल्पना ही थी। क्या यह समय का परिवर्तन था या कुछ और? हम सब एक ही रिक्शे से स्कूल जाते थे। सभी लड़कियों में सबसे सुंदर थी वह। मुझसे सीनियर होने के कारण मैं उससे अधिक बात नहीं कर पाता था लेकिन उसकी खूबसूरत आंखों और चेहरे को देखने का मैं बहाना ढूँढता था। अल्पना मेरे बड़े भाई की क्लासमेट थी। भईया का तो पता नहीं पर मैं उस पर लट्टू रहता था। तभी तो एक ही झलक में मैं उसे फौरन पहचान गया। पर ये क्या? आज उसका इतना खूबसूरत चेहरा बदल कैसे गया और फिर आज वो मुझसे मिली भी तो एक आया के रूप में। जो लड़की कभी बहुत से लड़कों की पहली पसंद हुआ करती‌ थी आज उसकी यह दशा मुझसे देखी न जा रही थी। यही सब सोचते हुए राजीव घर वापस आ गया। अल्पना की दशा उसको मन को अंदर तक कचोट गई थी। वह उसके विचारों से बाहर ही नहीं निकल पा रहा था।

अगले दिन फिर राजीव बच्चे को स्कूल छोड़ने गया किन्तु आज वह समय पर था। बच्चे के अंदर जाने के बाद भी राजीव वहीं रुककर अल्पना का इंतजार करता रहा। थोड़ी देर बाद उसने आवाज़ दी अल्पना अल्पना। अल्पना ने मुड़कर देखा तो राजीव लपक कर उसकी ओर भागा और नज़दीक जाकर बोला, मैं राजीव। सुबोध का छोटा भाई। कुछ याद आया? हम सब एक ही रिक्शे से स्कूल जाते थे। अल्पना एकदम शांत खड़ी थी किंतु उसकी आंखों की नमी ने यह प्रमाणित कर दिया कि वह अल्पना ही थी। राजीव बोले जा रहा था पर उसने वह बिना पलक झपकाए उसकी बात सुनती रही। आँसू की एक बूंद भी अपने गालों पर लुढ़कने नहीं दी। अचानक सारी बातों से पल्ला झाड़ती हुई वह आगे बढ़ गई। राजीव आवाज़ देता रहा पर उसने मुड़कर भी नहीं देखा। राजीव सोचने लगा शायद अचानक‌ मुझे देखकर वह असहज हो गई होगी। उसकी इस स्थिति के संदर्भ में कल बात करूँगा।

अगले दिन काफी देर इंतजार करने के बाद भी जब अल्पना राजीव को दिखाई नहीं दी तो उसने चौकीदार से उसके बारे में पूछा। चौकीदार बोला साहब वह तो कल स्कूल के बाद अपना हिसाब करके चली गई‌ और आपके लिए यह चिट्ठी दे गयी है। राजीव ने धीरे धीरे उस कागज़ को खोला। उसमें लिखा था...... तुम क्या जानना चाहते हो? मेरे ज़ख्म कुरेदकर रोते हुए देखने का आनंद लेना चाहते हो? पहले मुझे भिखारिन की तरह देखोगे। फिर सहारा देने के बहाने मेरा सब कुछ छीन लोगे। यही दुनिया है और तुम फिर मुझे इसी बात का एहसास कराना चाहते हो। मैंने उस ऊपर वाले के सामने तो कभी हाथ फैलाए नहीं फिर तुम्हारे सामने कैसे अपना आंचल फैला दूँ। मेरी किस्मत में जो है जितना है मुझे भोगना ही पड़ेगा। इसलिए मैं ऐसी जगह जा रही हूं जहां कोई पुरानी अल्पना को न जानता हो।



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