चॉकलेट का बिस्कुट

चॉकलेट का बिस्कुट

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आज सुबह से ही छुटकन रो रहा है। किशन के कान में उसकी आवाज पड़ी तो पूछ लिया,"लल्ला काहे रो रहा?" 


 झाड़ू छोड़ रौशनी ने एक थप्पड़ लल्ला के गाल पर लगाया," बहुत बिगड़ गया है आजकल।"


"क्यों, का हुआ? काहे मार रही हो, सुबह-सुबह।"


 "अरे! जबसे दुलारी के लाला के संग रहने लगा है, तब से, इसकी आदत बिगर गई है।"


 "ऐसी, क्या बात हो गई?" किशन ने पूछा। 


" जब से, दुलारी के छोरा कौ चॉकलेट का बिस्कुट खाते देखा, तबई से ही जिद किए बैठौ, चॉकलेट का बिस्कुट खावे चाहिए।"


 "तो हम अपने लल्ला के लाएं ला देंगे, चॉकलेट का बिस्कुट।"


 "पता है, कितने को आवे चॉकलेट का बिस्कुट ।पंद्रह बीस रूपया से कम न आता होगा। इतनी महंगी महंगी चीज खिला इका दिमाग खराब करबो है का। इंसान कूं हमेशा औकात में रहनो चाहिए।"


"तो का हुआ, ला दे हम आज ही।" छुटकन को पुचकारते हुए किशन ने कहा।


" सच में बाबा।" छुटकन के अंदर खुशी की लहर दौड़ गई।


" हाँ, सच में लाएंगे। हम जब शाम को आएंगे। जब ले आएंगे।"


 "दुलारी का आदमी, दिहाडी पर जावे है। एक सो बीस रूपिया मिलता है।"


 "तुम काहे, हमें ताना मारती रहती हो। हम दिहाडी नहीं कर सकते हैं, तुमको पता नहीं है का। पथिरी का ऑपरेशन हुओ है हमाओ।"


 "कहाँ, ताना मार रही, तुमसे तो कोई बात कहने का मतलब ताना ही हो जाय।"


 "टाइम खोटी मत करो। अंदर जाकर हमारा थैला ला दो। फालतू की बकबक लाएं, हमारे पास वक्त ना है। ₹आठ सौ जो कल दिए थे, उ भी ले आना। हम बाग देरी से पहुंचेंगे, तो सारे अमरुदन की छटाई हो जाई। बाद में छोटे-छोटे अमरूद हाथ आएं। उसके बाद चौराहे पर देर से पहुँचे तो कौनौ और जगह रूका लेई। समान बेचने लाएं अच्छी जगह भी तो चाहिए ।जहाँ गाड़ी आकर रुके, बाबू लोगों को ज्यादा चलना ना पड़े, तुरंत गाड़ी में से उतरे, सामान खरीद दुबारा गाड़ी में बैठ जाएं।"


 रौशनी ने ₹आठ सौ झटके से किशन के हाथ में थमा दिए ," लिए जाओ।" आज सच में ही देर हो गई। रेडी बीच में ही कीचड़ में धंस गई, उसका टायर निकालने में ही दस मिनट मिनट खराब हो गए, इतने में सारे अमरूदों की छटाई हो गई। चालीस के भाव बीस किलो अमरूद खरीद लिए। अभी लगाना भी है रेडी पर। सोचे देर हो जाए तो जगह न मिल पाए सड़क पर, वही खड़े हो के जमा लेई।आज का तो दिन ही समझो खराब है, पहले ही सुखिया चाची अपनी रेडी लिए खड़ी है,"जे ,हमारी जगह है चाची।" 


"तुम्हारा, कुछ पता लिखा है इहाँ।बैनामो है तुम्हारो, सिरकारी है, सिरकारी। कोई का जहाँ मन हो अपनी गाड़ी खड़ी कर सकें। किसी के बाप का दावा ना है।"


 "अब चाची; तुम सुबह सुबह, हमाओ दिमाग खराब मत करो।" 


 "हम कहाँ लड़े। इ जगह कौ पटा ले लिए हो का। जाओ! कोने में जाकर लगा लेओ।"


 आज चिंता सता रही।अमरूद खरीद तो लिए, लेकिन बिकें कैसे? कोने में तो कोई की नजर भी ना पड़े। सारी गाड़ी सुखिया चाची की रेडी पे रूकती नजर आती हैं। दाम कम कर देगा, अगर दाम कम कर दिया तो बचेगा ही क्या? पैंतालीस रुपया के लगा के बैठे।पूरे बीस किलो अमरूद बिके तो मुनाफा सौ रुपया का हो जाएगा। सौ रुपया में तो चीनी और बिस्कुट आ ही जाए। बीस किलो अमरूद बिकना भी कोई मामूली बात नहीं, दो चार किलो तो खराब ही निकल आएंगे, शाम तक। अब देखो कितना बेच पाते हैं। ग्यारह बज चुके एक ग्राहक नहीं आया। गाड़ी रुकी तो है। नीले रंग चश्मा लगाए कोई बाबू उतरे," कैसे दिए हैं ?"


"साहब, पैंतालीस रुपए किलो।"


 "दो किलो दे दो। अच्छा तो निकलेगा ना। कीड़ा तो नहीं होगा? "


" बिलकुल! ना साहब, इस मौसम में कहाँ कीडा?"


 "मीठा-मीठा होगा ना।"


 "बिलकुल, मीठा होगा। बाबू, शहद होगा शहद।" बाबू ने एक अमरूद उठाया और दूसरा उठाकर गाड़ी के अंदर बैठे अपने बेटे की तरफ उछाल दिया" खा के बताओ कैसा है? पसंद आया, फिर लेंगे।" खाना शुरु किया," ठीक ही है। इतना ज्यादा मीठा नहीं है। चालीस चल रहा रेट तो? "


"ना साहब, चालीस तो खरीदी है।"


 "चलो तोल दो। दो किलो।"पापा, मेरा अमरूद नीचे गिर गया।"


" तो ये लो बेटा" दूसरा अमरूद उठाकर गाड़ी में फैंक दिया। रामकिशन कछु बोला नहीं सुबह से तो अब बोनी हुई है।


शाम छह बजे तक बारह किलो ही अमरूद बिक पाए। छह बजे के बाद खड़े रहने का कोई फायदा नहीं। सड़क पर दिखते कहाँ हैं अमरूद वाले, अंधेरे में? पर इसी आस में का पता कोई गाड़ी रुके और एक आध किलो और बिक जाएं। आठ बजे तक किशन खड़ा रहा। एक गाड़ी रूकी, दो चार लौंडे लफाडे रहे होंगें," का चाचा कैसे दिए?"


" भैया, ₹पैंतालीस किलो।" गाड़ी में बैठे -बैठे ही लडके ने हाथ के इशारे से कहा," दो किलो जरा तोल दो।" किशन ने जल्दी जल्दी दो किलो अमरुद तोले पॉलिथीन में डाले, गाड़ी में पकड़ा दिए। अभी पैसों की बाट में खड़ा ही था कि गाड़ी आगे दौड़ गई। बहुत देर तक पीछे दौडा लेकिन गाड़ी रुकी नहीं। दो किलो अमरूद भी गए, पूरे अस्सी रुपया का नुकसान।सौ रुपए तो मुनाफा सोच कर बैठे थे। छह बजे ही दुकान बढ़ा दिए होते तो अस्सी रूपये का नुकसान नहीं होता। कुल में ₹पांच सौ चालीस कमाए हैं। ₹आठ सौ लेकर घर से गए थे। कल भी रेडी पता नहीं लग पाएगी या नहीं। परचून की दुकान पर पहुँचे," एक चॉकलेट का बिस्कुट किते का है?" 


 "तुमको कितने का चाहिए पंद्रह से लेकर पचास तक है। आज, अमरुद बिके नहीं सारे?" बनिया ने पूछा। 


" ना भैया, ना बिक पाए।" अब किशन हिसाब लगा रहे, घर में चीनी ना है। कितने दिनों से गुड की चाय पी रहे, जितने में बिस्कुट आए इतने में आधा किलो चीनी आ जाए।


 छुटकन की आँखें आज दरवाजे पर ही लगी थी कि कब बाबा आएंगे। चॉकलेट का बिस्कुट खाने मिलेगा। पूरे दस बार अम्मा से पूछ लिया," बाबा, कब तक आएंगे?" मोहल्ले में सबको बताया आया, आज बाबा चॉकलेट का बिस्कुट लाएंगे। इंतजार कब तक करता बिचारा, बच्चा पूरा दिन दौड़ता फिरता। दरवाजे की तरफ देखते हुए, खाट पर लेटे लेटे सो गया। 


 रेडी की आवाज सुन रौशनी पल्लू संभालते हुए बाहर आई," बहुत देर कर दी। अमरूद ना बिके? "


" बासी अमरूद, कल तो कोई खरीदे भी नहीं रौशनी। आधे अमरूद तो सुबह तक खराब हो जाए, और बचे हुए का पता चालीस से भी कम में बेचने पड़े। हम सोच रहे कल से दिहाडी पर चले जाएं।"


 बाबा की आवाज सुन छुटकन की आँख खुली भागकर बाबा के पास पहुँचा," बाबा, बाबा बिस्कुट लाए?"


 किशन ने छुटकन को गोदी में उठा लिया," अभी रात हो गई। दुकान बंद होने का टैम होई गवा। कल हम तोकू बिस्कुट जरूर लाएं।"


 


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