चंपा के चक्कर में

चंपा के चक्कर में

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'चंपा के चक्कर में,' जैसी गंभीर फिल्म को बेस्ट कॉमेडी का पुरस्कार मिलना मुझे उतना ही चकित कर देने वाला था जितना मुझे बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर और 'चंपा के चक्कर में,' की डायरेक्टर लीला डागा को बेस्ट डायरेक्टर का अवार्ड मिलना। लीला मुझे पहले ही बता चुकी थी कि फिल्म डेयर का पैनल, 'चंपा के चक्कर में,' को कॉमेडी के अतिरिक्त किसी और केटेगरी में रखने को तैयार न था, ये हम दोनों की पहली फिल्म थी इसलिए हमारे सामने उनकी बात मानने के अतिरिक्त कोई चारा न था। फिल्म की एक्ट्रेस जूली भी बेस्ट सपोर्टिंग एक्ट्रेस के लिए नामित हुई लेकिन अवार्ड किसी और को मिला तो वो जल—भून कर रह गयी। मेरे जैसे खानाबदोश आदमी के लिए तो ये किसी चमत्कार से कम न था क्योंकि एक अदद दुल्हन की तलाश ने मुझे एक्टर बना डाला था।

मैं कोई यहाँ से वहां भटकने वाला खानाबदोश न था बल्कि ये तो मेरे परिवार को समाज की और से मिला नाम था क्योंकि मेरे पूज्य दादा जी ने अपने पिता से विरोध कर एक खानाबदोश लड़की से शादी कर ली थी। उसके बाद उन्हें हमारे परदादा जी ने घर से बाहर का रास्ता दिखा दिया, बिरादरी ने बिरादरी से बाहर कर दिया।

दादा जी जुझारू व्यक्ति थे उन्होंने अपने दम पर एक आयल मिल (कोल्हू) खोला और गुलफाम नगर के मुख्य व्यवसायी बन गए। कालांतर में पिता जी और दो चाचा जन्मे, पढ़े लिखे, जवान हुए। दोनों चाचा अपने कद काठी के दम पर पुलिस में दरोगा भरती हो गए और पिता जी ने दादा जी आयल मिल (कोल्हू) संभाल लिया। तीनो जानते थे कि खानाबदोश का तमगा लगा होने के कारण बिरादरी से तो दुल्हन ना मिलेगी इसलिए तीनों ने अपने खुद के प्रयासों से अपनी दुल्हनें तलाश की शादियां की, तीनों के यहाँ दो—दो बेटे हुए और मेरे अतिरिक्त पाँचों भाई चालाक निकले, दोनों चाचाओं के दम पर वो सब पुलिस में दरोगा बने और लड़कियां तलाश कर लव मैरिजेस की।

मेरे हालत सबसे अलग निकले, एम. ए. पास कर मैं किताबी कीड़ा बन गया और खो गया लुगदी साहित्य की दुनिया में, लुगदी साहित्य के पात्र मेरे खून में जोश भरने लगे; कभी वो मुझे लड़ाका बना देते, कभी जासूस और कभी डकैत। मेरे इस साहित्य प्रेम पर पिताजी अकसर भड़क उठते और कहते— "निकम्मे नक्कू (मेरे नाम नकुल का बिगड़ा रूप) इन किताबों ने तेरा दिमाग खराब कर दिया है, अपने भाइयो को देख सब के सब वैल सैटल्ड है, कई—कई बच्चो के पिता है। तू तीस पार कर गया है, कोल्हू का बैल बना हुआ है, क्या होगा तेरा?"

लेकिन उन्हें पता न था अपना भी चक्कर चल निकला था मजनू वाली गली की चमेली के साथ। चमेली का पिता छेदी लाल वीर रस का कवि था और नुक्कड़ पर चल रही आटा चक्की का मालिक था। उसी आटा चक्की पर एक दिन चमेली मिली जो अपने पिता को खाना देने आयी थी और मैं आया था घर के लिए आटा पिसाने। जल्द ही मैंने चमेली का फोन नंबर हासिल किया और चल पड़ा बातचीत और मैसेज्स का अनवरत सिलसिला।

लेकिन इस प्यार को जालिम दुनिया की नजर लग गयी। एक दिन चमेली की गली का एक मरियल सा आवारा लड़का चम्पक मुझ से ये कहते हुए भिड़ गया कि मैं उसके और चमेली के प्यार की बीच रोड़ा बन रहा हूँ, और बात की बात उसने मेरा गिरेबान पकड़ लिया। ये तो बेइज्जती की इन्तहा थी। मैंने उसे धक्का देकर खुद से अलग किया और उसे पीटने के लिए कोल्हू में पड़ा एक डंडा उठा लिया। डंडा देखकर चम्पक भाग निकला मैं डंडा लिए उसके पीछे दौड़ा और वो जा घुसा चमेली के पिता की चक्की में। मैं गुस्से में पागल हो टूट पड़ा चम्पक पर, चम्पक को तो पता नहीं डंडा लगा या नहीं लेकिन मेरे डंडे की चोट से चक्की का पावर बॉक्स टूट गया और चक्की चलनी बंद। चमेली का पिता जो इस सारे तमाशे से बेखबर पास की दुकान में वीर रस की कविता सुना रहा था, शोरगुल सुनकर आ धमका और सारा माजरा समझ गया और हम दोनों की गर्दन पकड़ कर मेरे पिता के कोल्हू पर आया और चक्की में हुए नुकसान का दुगना वसूल कर ले गया। पिता जी सिर पीट कर रह गए। शाम को चमेली का फोन आया और उसने खरी—खोटी सुनकर अपने प्रेम का अंत कर दिया। जिस आटे की चक्की पर ये प्यार परवान चढ़ा था उसी आटे की चक्की पर इस प्यार का दुखद अंत भी हुआ।

दो दिन बाद खूबसूरत लीला डागा का कोल्हू पर आगमन हुआ और वो मुझ से मुखातिब होकर बोली— "मिस्टर जब तुमने उस चक्की पर वो महान कारनामा किया तो मैं वही से गुजर रही थी और तुम्हारी कद—काठी और शक्ल देख तुम मुझे मेरी फिल्म, 'चंपा के चक्कर में,' के पात्र चंदू जैसे लगे, अगर फिल्म में काम के इच्छा हो तो आओ मेरे साथ।"

बाकी सब तो एक सपने जैसा था, छह महीने में फिल्म बनी और अच्छी चली। फिल्म डेयर अवार्ड लैला, जूली और मेरे लिए वरदान साबित हुआ। स्टार जोक्स मूवीज ने उनकी आगामी दस मूवीज के लिए हम तीनों को अनुबंधित कर लिया है, यानी हम तीनों का साथ लम्बा चलने वाला है। लीला आजकल मुझ पर मेहरबान है देखते है ये दोस्ती मुहब्बत में बदलती है या इसका अंजाम भी मेरी पहली मुहब्बत जैसा ही होगा?


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