चलो ,ढूढ़ते हैं मौज़ और कहीं
चलो ,ढूढ़ते हैं मौज़ और कहीं
टीनू जैसे ही नाली के रास्ते एक घर में घुसा , साथी दोस्त को देख ठिठक गया ..
अरे वाह ! तुम भी यहाँ हो . चलो ' साथ में पार्टी करेंगे ..
कैसी पार्टी .. मुन्नू ने मुँह बिचका कर कहा ...
गृह स्वामिनी कोरोना संक्रमण से बच कर चंगी हो गयी ...
अच्छा! टीनू ने छोटी आँखों को फैलाकर बोला ...
मैं भी हताश होकर यहाँ आया हूँ , उस घर में भी सब बीमार थे तो सारा घर इधर-उधर पड़ा था ... कभी भरपेट रस खाता कभी पारले जी बिस्कुट , एक दिन तो मैंने मखाने पर भी हाथ साफ किया ..
मुह में भर आयी लार को अंदर खींच मुन्नू ने भी शेखी बघारी .. अरे , मैंने भी खूब मौज की कभी सेब खाया तो कभी जी भर के आलू . एक दिन तो काजू का पूरा पैकेट ही उड़ा डाला .. एक दिन डिब्बा खोल जी भर घी पी डाला ..
सब दिन रहत न एक समान ..
.. हूँ .. दोनों चूहों ने एक दूसरे के गले में बाहें मतलब टांगे ..... जो भी हो .. डाली , दूसरे घर की ओर रुखसत ली ... मन ही मन बुदबुदाते चले ...
चलो, दूंढते हैं, मौज और कहीं।