चिट्ठी आई है
चिट्ठी आई है
आज वो चिट्ठी आई है
जो कभी लिखी ही नहीं गई
पर महसूस बहुत बार हुई
कई बार पढी भी गई
और अनेकों बार उसकी राह अपेक्षित रही।
वो 'मां की चिट्ठी' बेटी के नाम
वो मां जिसने स्वयं उसे पढना- लिखना सिखाया पर आज
उससे ही पूछती समाधान हर समस्या का।
वो मां जिसने उसे चलना सिखाया
पर पूछती पता हर राह पर ।
वो मां जो कभी जागती थी दिन रात बेटी के बीमार होने पर या परेशानी में।
आज बेटी मां सी हो गई है ।
वो अन लिखी चिट्ठी फिर से
स्मृति पटल पर विचरित हो रही है।
शब्द भी समस्याओं को सुन रहे हैं भाव खुद ब्यान हो रहे हैं।
और मां ने चिट्ठी लिखी बेटी के नाम और कहा आज भी तू मेरा चांद है ,दिल का अरमान है ।दूर रहे या पास तू ही स्मृति शेष है।
