चिंता
चिंता


आसमान पर छाए हुए बादल को देखकर शर्मा जी के घर काम करने वाली महरी जल्दी-जल्दी हाथ चलाने लगी सोच रही थी शायद थोड़े देर में तेज बारिश हो आज तो मैं छाता भी लेकर नहीं आई हूं पता नहीं घर कैसे जाऊंगी ?
हे इंद्रदेव मैं घर पहुंच जाऊं फिर बारिश हो सोचते -सोचते वह बर्तन साफ कर रही थी कि तेज बारिश शुरू हो गई । वह काम खत्म कर अंकल को याचना भरे शब्दों में बोली-अंकल यदि छाता हो तो दे दीजिए नहीं तो मैं घर जाते में भीग जाऊंगी। शर्माजी जल्दी से छाते को दूसरे कमरे में छुपाते हुए कहा घर में छाता नहीं हैं और मन ही मन सोचने लगे कि इसका क्या छाता ले गई फिर वापस लाएगी या नही। मेहरी ने कहा ठीक है अंकल बारिश तेज है।मैं भीग गई और तबीयत खराब हुई तो दो-तीन दिन काम पर नहीं आऊंगी।
शर्माजी जल्दी से कमरे की ओर जाते हुए कहा रुक जा देखता हूं छाता कहीं रखकर भूल तो नहीं गया और अंदर के कमरे से छाता लेकर आए महरी को देते हुए बोले भीगते हुए मत जाना।तेरी तबीयत खराब हो जाएगी तू परेशान हो जाएगी। अंकल की बात से महरी परेशान थी वह सोच में पड़ गई अंकल को मेरे तबीयत की चिंता है या मेरे काम पर ना आने की।