Dr. Pooja Hemkumar Alapuria

Inspirational

5.0  

Dr. Pooja Hemkumar Alapuria

Inspirational

चिंगु

चिंगु

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दिवाली की छुट्टियाँ नजदीक आ रही थीं। बच्चों ने मनाली, शिमला, नैनीताल आदि घूमने की डिमांड पहले से ही रख दी थी। भला बच्चों को मना भी कैसे किया जाए। इसी बहाने घर से बाहर निकालना भी हो जाता है और बच्चों के साथ एक बार फिर बच्चा बन बचपन जी लेते हैं हम। महानगरीय जीवन में तो काम – काज की भागम-भाग के अतिरिक्त कुछ नहीं। खैर...।

घूमने जाने की जोरों-शोरों से तैयारी जारी थी। बच्चों ने दादी के साथ बैठ सूची बनाई। कहीं कोई सामान रह न जाए। श्रीमती भी व्यस्त ही थी। सभी एक दूसरे से यही प्रश्न करते नजर आते कि यह रखा क्या ? वो रखा क्या ? सब सामान रख लिया न I कुछ रह तो नहीं गया न I माँ भी इन प्रश्नों को सुन-सुनकर तंग आ गई I आखिर बोल ही पड़ी, “ एक काम करो पूरा घर बाँधकर ले जाओ I अगर कोई सामान रह भी गया तो क्या ? क्या वहाँ कुछ नहीं मिलेगा ? जो रह जाए वहाँ खरीद लेना I एक-दो रुपए सस्ती क्या और मंहगी क्या ?” माँ की बात सुन सभी जोर से हँस पड़े I सामान रखने–रखाने के तनाव में उलझे हम सभी खिलखिला उठे I बात सही भी थी I जहाँ इतना खर्च हो रहा था, वहां छोटी-मोटी चीज की क्या परवाह करना I आखिर वह दिन आ गया जिस दिन हमें अपनी सैर के लिए रवाना होना था। बच्चों की खुशी का ठिकाना न था। कानपुर से दिल्ली तक का सफर हवाई यात्रा से पूरा कर हम दिल्ली पहुंचे। सब कुछ पहले से ही तय होने के नाते हमारे दिल्ली पहुंचने से पहले ही गाड़ी और ड्राईवर दोनों हाजिर थे। गाड़ी में बैठे-बैठे ही ड्राईवर ने हमें आधी दिल्ली तो यूं ही घुमा दी। बच्चे तो खुशी से कभी ताली बजा रहे थे, तो कभी अचरज भरी आवाज़ों से विस्मित हो रहे थे। हम सबके दिल उनकी खुशी देख कर से झूम रहे थे। कभी-कभी जिंदगी की व्यस्तता से निकलना भी कितना आवश्यक हो जाता है I व्यस्तता न जाने जीवन के कितने हसीन पलों को बड़ी ख़ामोशी से अपने आगोश में ले लेती है इसका हमें कभी आभास ही नहीं होता I

बच्चों की हंसी - खुशी भरे माहौल और रास्ते भर के प्रकृतिक नज़ारों का लुत्फ उठाते हुए हम मनाली पहुँच ही गए। ड्राईवर ने होटल के सामने गाड़ी रोकी और हमें भी उतरने का आग्रह किया। सफर आरामदायक था मगर दूरी कुछ लंबी होने से हम सभी बुरी तरह थक चुके थे।

गाड़ी से उतरते उससे पहले ही होटल का वाचमैन 'जी साबजी' कहता हुआ हाजिर हो गया। मैं कुछ कहता, लेकिन उसने हमे बोलने का मौका ही न दिया। साबजी सामान की चिंता मत करो। सब आपके कमरे में आ जाएगा। आप तो बस हमारे होटल और शहर का मजा लीजिए। ड्राईवर ने भी कहा, “सर आप चिंता न करें। वाचमैन सामान आपके रूम में पहुँचा देगा I आप तो चेक इन कीजिए I”

होटल में चेक इन की और हम सब अपने कमरों के बैड पर अपनी थकान मिटाने बिस्तर में जा धसे। कुछ गहरी नींद में उतरते उससे पहले ही ड्राईवर ने फोन पर मेसेज दिया कि घंटे भर में तैयार हो जाइए, हिडिंबा मंदिर देखने जाना है। कल रोहतांग पास के लिए निकलना है, तो देखना मुश्किल होगा।

ड्राइवर की बात सुन चाय-काफी और हल्के से नाश्ते से पेट को शांत किया। जल्दी-जल्दी तैयार हो निकल पड़े पैगोडा की शैली में निर्मित इस मंदिर के परिसर की सुन्दरता और शांत वातावरण मन को हरने वाला अत्यंत सुंदर मंदिर है । यह मंदिर मनाली शहर के पास के एक पहाड़ पर स्थित है । मनाली आने वाले सभी सैलानी यहाँ जरूर आते है । देवदार वृक्षों से घिरे इस मंदिर की खूबसूरती बर्फबारी के बाद देखते ही बनती है । रात को लौटते हुए खाना बाहर ही कर लिया। खाना बेहद स्वादिष्ट और गरमागरम था । पेट तो अपनी संतुष्टि दे चुका था, पर बेईमान मन कहाँ मानता है। ड्राइवर ने बताया कि हिमाचल में शादी-ब्याह, सामूहिक कार्यक्रम आदि के अवसर पर बनने वाले भोजन को ‘धाम’ कहते हैं और भोजन बनानेवालों को ‘बोटी’ कहते हैं I

होटल लौटे तो देखा होटल के गेट पर वाचमैन के साथ उसके चार बच्चे भी पहरेदारी में पिता को साझादारी दे रहे थे। कुछ अटपटा लगा, मगर विवशता कदम थाम लेती है। ठंड काफी थी। उस ओर विशेष ध्यान दिए बिना ही हम अपने रूम में पहुँचे I हम सब अपनी अपनी रजाई और चिंगुओं में छिप गए। दोनों बच्चे आपस में कुछ खुसर-पुसर कर रहे थे। मैंने थोड़ा डांटा और सोने को कहा। मेरी आवाज़ सुन दोनों ने चुप्पी साध ली।

मेरे सोने के कोई दो घंटे बाद श्रीमती उठी । दोनों बच्चों को देख हतप्रभ रह गई। धीरे से आवाज़ लगा मुझे उठाया। हमारे दोनों बच्चे कैसे सिकुड़ कर सो रहे हैं। इनका चिंगु कहाँ गया ? यह सुनते ही मेरी आँखें खुल गईं । देखा तो दोनों बच्चे ऐसे ही उघडे सो रहे हैं। यह देखते ही मेरी नज़र दरवाजे की ओर दौड़ी, कहीं गलती से दरवाजा खुला तो नहीं रह गया। मगर ऐसा न था। बच्चों को अपनी रजाई से कवर कर मैंने मैनेजर को फोन करने के लिए रिसिवर उठाया ही था, बड़ी बेटी ने हौले से हाथ पकड़ लिया। पापा हमारा चिंगु ....। (कुछ सहमी सी आवाज में बोली)

 पापा आपके सोने के बाद मैं और रोनित खिड़की के पास आ कर बैठ गए। हम दोनों आज बहुत खुश थे I इसलिए हमे नींद नहीं आ रही थी I हम दोनों आपस में बातें कर रहे थे कि आज आप लोगों के साथ घूमने में कितना मज़ा आया । बात करते हुए अचानक हमारी नजर वाचमैन के बच्चों पर पड़ी जो कड़कड़ाती ठंड में कंपकंपाते हुए गेट पर पहरा दे रहे थे। हम दोनों से देखा न गया । चुपके से उन्हें आवाज़ लगाई और खिड़की से ही उन्हें चिंगु थमा दिया। 

बच्चों की मासूमियत भरी बातें और उनकी सहृदयता देख आँखें नम हो आईं। 

खिड़की से उचक कर देखा तो चारों बच्चे उस एक चिंगु में ही अपने को समेटे सुकून की नींद भर रहे थे। आज मैं निशब्द था।

अगली सुबह मैनेजर को होटल के बिल के साथ चिंगु की कीमत अदा कर, सफर के अगले पड़ाव की ओर बढ़ गए हम । अनजाने में ही सही मगर बच्चों ने जीवन का बहुत बड़ा फलसफा सीखा दिया।


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