नाटक - विकार
नाटक - विकार
पात्र "
सूत्रधार
कुछ छात्र " ऋतु, रिपु, अखिल और वैभव
रिपु " इंकलाब
ऋतु " जिंदाबाद
रिपु " इंकलाब
ऋतु " ज़िंदाबाद
रिपु " इंकलाब
ऋतु " ज़िंदाबाद
अखिल " रिपु पागल हो गए हो क्या ? अब कौन से अंग्रेजों को खदेड़ना है? जो इंकलाब ज़िंदाबाद के नारे लगा रहे हो ।" ऋतु तुम्हारा दिमाग फिर गया है ।" ज़िंदाबाद - ज़िंदाबाद चिल्ला रही हो ।"
रिपु " हम दोनों एकदम ठीक हैं ।"
अखिल " काहे के ठीक ? मुझे तो समझ ही नहीं आ रहा कि तुम दोनों को हुआ क्या है? और अब कौन सी लड़ाई लड़ने जा रहे हो?
ऋतु " अखिल हमें लड़ाई तो लड़नी है मगर ...(ऋतु कुछ कहती उससे पहले ही अखिल बोल उठता है ।" )
अखिल" लड़ने का इतना शौक है तो देश की सीमा पर जाओ।" वहाँ जाकर दिखाओ अपनी बहादुरी ।" बड़े आए इंकलाब वाले .... ।" तुम्हारा तो दिमाग फिर गया है।" कोई तो इन्हे समझाओ ।"
वैभव " अखिल तुम सही कह रहे हो ।" रिपु और ऋतु पागल हो गए हैं ।"
अखिल " बच्चा-बच्चा जनता है कि हमारा देश 1947 में आजाद हो चुका है, तो अब किससे आजादी चाहिए इन्हें ...?
वैभव " गुलामी अब एक भयानक स्वप्न के अतिरिक्त कुछ नहीं ।"
अखिल " एक आजाद राष्ट्र ही स्वतंत्रता दिवस मनाता है ।" क्या तुम अपने राष्ट्रीय त्योहारों से परिचित नहीं हो?
वैभव " लगता है ऋतु और रिपु ने इतिहास का पीरियड गुल कर दिया था ।" तभी तो ... इंकलाब – ज़िंदाबाद के नारे लगा रहे हैं ।"
अखिल " गुप्ता मैम से जो एक बार इतिहास पढ़ ले तो आजीवन नहीं भूल सकता ।" मैम का पढ़ाया एक-एक शब्द याद है ।" हमने आजाद भारत में जन्म लिया है ।"
वैभव " मुझे तो ऐसा आभास हों रहा है कि ये दोनों किसी नाटक की तैयारी कर रहे हैं ?
ऋतु " नहीं हम कोई नाटक नहीं कर रहे हैं ।" हमें सच में आजादी चाहिए ।"
अखिल " तो ऋतु अब यह भी बता दो किससे आजादी चाहिए ?
ऋतु " आजादी तो हमें चाहिए ।"
रिपु " देश के मानसिक और सामाजिक बीमार नागरिकों से ।"
ऋतु " आजादी चाहिए
रिपु " हमारे अधिकारों का दुरुपयोग करने वालो से ।"
ऋतु " आजादी चाहिए
रिपु " पर्यावरण को दूषित करने वालों से ।"
ऋतु " आजादी चाहिए
रिपु " प्रकृति का अपमान करने वालों से ।"
ऋतु " और वैश्विक विनाश का तांडव मचाने वालों से ।"
रिपु " आजादी चाहिए बेबुनियादी रीति-रिवाजों, दिखावटी संस्कृति-परंपराओं, अंधविश्व, ढकोसलों, पाखंडों और आडंबरों से
ऋतु " इतना ही नहीं हमें आजादी चाहिए धर्म, जाति, मजहब आदि के नाम पर देश को खोखला बनाने वालों से ।"
अखिल " (हँसते हुए ) तुम्हें क्या लगता है कि इंकलाब ज़िंदाबाद का नारा कोई सुनेगा ? तुम कहोगे और सब मान जाएँगे ।" देखो वैभव ये तो पागल हो गए हैं ।"
वैभव " अब कोई न सुनने वाला - इंकलाब ज़िंदाबाद।" वो दौर और था ।" लोग और थे ।" उनकी भावनाएँ और थी।" समय बर्बाद न करो ।" जाओ घर वापस जाओ।"
ऋतु " घर तो हम वापस नहीं जाएँगे ।" और रही बात सुनने कि तो ...।"
रिपु " अब तुम अपने को ही देख लो ।" जब तुम दोनों हमारी बात सुन सकते हो तो बाकी क्यों नही ?
(वैभव और अखिल एक-दूसरे की ओर आश्चर्य से देखते हैं ।" )
वैभव " अखिल अगर देखा जाए तो ऋतु बात तो सही कह रही है ।" हम दोनों बिना वजह इनके झाँसे में आ गए ।"
अखिल " चलो –चलो ।" इनका तो दिमाग फिर गया है ।"
रिपु " आखिर कब तक भागोगे ? अपनी जिम्मेदारियों से, देश और समाज के प्रति अपने कर्तव्यों से... ?
ऋतु " आखिर कब तक आँखों पर पट्टी बाँधकर बैठे रहोगे ?
रिपु " कब तक सामाजिक बुराइयों को यूँ ही देखते और सहते रहोगे ?
ऋतु " कब तक पर्यावरण का दोहन होते देखते रहोगे ?
रिपु " आज समाज संक्रमणकारी बीमारियों से जूझ रहा है आखिर इसका जिम्मेदार कौन है ?
वैभव " हमें इससे क्या ? हमने नहीं फैलाया इन बीमारियों ।"
ऋतु " भ्रष्टाचारी के दाव-पेंच मासूमों पर अनगिनत आघात कर रही है ।"
अखिल " हमें क्यों कह रहे हो? हमने तो कोई भ्रष्टाचारी नहीं की ।" हमने तो किसी को आघात नहीं पहुँचाया ।" फिर हम कैसे दोषी हों सकते हैं ?
ऋतु " बस ! यही कह कर तो हम अपना पल्ला झाड़ लेते हैं और अपनी जिम्मेदारियों से बचने का प्रयास करते हैं ।" मैंने नहीं किया, तो मैं क्यों विरोध करूँ ?
रिपु " जब तक अपने साथ कोई दुर्घटना नहीं होती, तब तक हमारी आँखें नहीं खुलती और तब तक देर हो चुकी होती है ।"
ऋतु " तुम दोनों देश की उस आजादी की बात कर रहे हो, जिसके लिए तुमने अपना कोई बलिदान नहीं किया ।" यदि तुम गुलामी और गुलाम देश देखते तो उस घुटन और दर्द को समझ सकते थे, सिर्फ तुम ही नहीं बल्कि देश का हर नागरिक जो यही समझता है है कि उसने आजाद भारत में जन्म लिया है ।" वे ऐसा सोचकर महज स्वयं को धोखा दे रहे हैं ।"
रिपु " वर्तमान गुलामी उस ब्रिटिश हुकूमत से कई गुना भयंकर और भयावह है ।" जिसका विनाशकारी प्रभाव कोई महसूस नहीं करना चाहता ।"
ऋतु " राष्ट्रीय पर्व पर झंडा वंदन करने और सांस्कृतिक कार्यक्रम कर लेने से तथा दो चार भाषण सुनने – सुनाने से हमारी जिम्मेदारियाँ पूर्ण नहीं होती ।" देश की बाहरी सीमाओं की सुरक्षा के लिए हमारे सैनिक पूरी शिद्दत से अपना फर्ज अदा कर रही है ।"
रिपु " हम बात कर रहे भीतरी सुरक्षा की ।" सिर्फ बाह्य रूप से सुरक्षित होना काफी नहीं है, भीरती सुरक्षा व्यवस्था के लिए सजग और सतर्क होना भी आवश्यक है ।"
वैभव " ऋतु अब मुझे कुछ-कुछ समझ आ रहा है।" बात तो तुम दोनों ने एकदम सही कही है ।"
अखिल " हूँ ।" अब मुझे भी समझ आ रहा है ।"
वैभव " हम सभी अपनी जिम्मेदारियों से सदैव भागते है ।" किसी भी बात के लिए स्वयं को कभी जिम्मेदार नहीं मानते ।" सदैव अपना दोष भी दूसरों पर थोपते रहते हैं ।"
ऋतु " यही मानसिकता बदलनी है ।"
रिपु " जागरूकता का अलख जगाना है ।" हर किसी को आजादी और आजादी की कीमत पहचननी होगी ।" ऋतु " अपने अधिकारों का सदुपयोग करना होगा ।"
वैभव " ऋतु और रिपु मुझे माफ करना ।" अब मैं भी इस अभियान का हिस्सा बनना चाहता हूँ ।" एक जिम्मेदार नागरिक के कर्तव्य और जिम्मेदारी को पूरी निष्ठा और ईमानदारी से निभाने का प्रण करता हूँ ।"
अखिल " वाह जी वाह ! मुझे अकेला छोड़कर ... यह भी कोई बात हुई ? मेरे बिना तुम कर्मठ कैसे बनोगे ?
(चारों मुसकुराते हैं ।" )
अखिल " रिपु –ऋतु मुझे भी माफ करना ।" तुमने सही कहा था कोई भी लक्ष्य छोटा या बड़ा नहीं होता,हमारे हौसले बड़े होने चाहिए ।" देश के विकास और उत्थान के लिए असामाजिक तत्वों को समूल खदेड़ना जरूरी है ।" अब तुम अकेले नहीं हम भी तुम्हारे साथ हैं ।"
वैभव " इंकलाब
अखिल " जिंदाबाद
वैभव " इंकलाब
अखिल " जिंदाबाद
रिपु " इंकलाब
ऋतु " ज़िंदाबाद
(पर्दा गिरता है ।" )