Dr. Pooja Hemkumar Alapuria

Inspirational

4.7  

Dr. Pooja Hemkumar Alapuria

Inspirational

चैताली

चैताली

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तेरह साल की अबोध बालिका स्कूल से घर की ओर बड़े ही चहकते हुए अंदाज में, उछलते–कूदते सहेलियों संग आ रही थीI जैसे ही घर पहुँची तो देखा, बाबा आँगन में बैठे कुछ अजनबी लोगों से बतिया रहे थेI उम्र भले ही तेरह की थी, मगर कद-काठी कुछ ऐसी कि देखने पर ऐसा प्रतीत होता १५-१६ की होगी। गोरी चिट्टी, आँखें बड़ी और भूरी हिरनी सी कुछ विस्मित करने वालीI सीधे कंधे पर लटका बस्ता, अधखुले से बाल, एक चोटी अपनी जगह सही सलामत झूल रही थी और दूसरे के रिब्बन का कुछ अता- पता ही नहीं, अंदर घुसते ही उसने आव देखा न ताव सीधा बाबा से जा लिपटी और अपने बस्ते से स्कूल से मिली अपनी क्लास फोटो दिखने लगीI चैताली अभी तुम अंदर जाओ में बाद में तुम्हारी फोटो देखूँगाI

 ( कुछ लड़ाते हुए ) नहीं, आप अभी देखोI चैताली अभी घर पर मेहमान आए हैI हम आराम से बात करेंगेI बाबा पहले पक्का वादा करोI तभी अंदर जाऊँगीI माँ किधर है ? नजर ही नहीं आ रही हैI

  “चैताली ...I” चैताली के बाबा कुछ नाराज़गी जताते हुए कहते हैं। ठीक है जाती हूँ। (चैताली अंदर चली जाती है। )

  (घर पर आए अपरिचित में से एक व्यक्ति कहता है। ) काफी छोटी है आपकी बेटी चौधरी साब। बचपना तो खूब भरा हैI कैसे घर – गृहस्थी संभालेगी तुम्हारी बेटी ?

“तुम चिंता न करो सरकार। घर-गृहस्थी की जिम्मेदारी पड़ने पर छोरी सब सीख जाती हैI अब अपनी–अपनी घरवालियों को ही देख लोI जब ब्याह के आई थीं वे कौन-सी ज्यादा बड़ी थीं, मगर समय और जिम्मेदारियों ने सब सिखा दियाI” चैताली के बाबा बनती बात बिगड़ न जाए इसलिए बात को सँभालते हुए कहते हैंI

चैताली की माँ कुछ जरा चाय तो भिजवानाI कितना समय लग रहा है। (आँगन से बैठे-बैठे कुछ ऊँची आवाज़ में कहता है। ) सरकार आपने छोरी देख लीI हमारा घर परिवार भी देख लियाI जब तक जलपान आ रहा है तब तक आगे की बात कर लेते हैंI

चौधरी साब अगर रिश्ता पक्का हो गया तो ये न समझना कि तुम्हारी छोरी को पढ़ने- लिखने मिल जावेगा। आपने जितना पढ़ाया वही ज्यादा हो गया है। हमसे उम्मीद न करना ....I थोड़ा-सा पढ़ने–लिखने पर आजकल की छोरियों के नखरे घने हो जाते हैं। बात-बात पर अपने पढ़ने का रॉब झाड़ती फिरें हैं। गर तुम्हारी छोरी ने जरा भी मीन-मेक की तो अगले ही दिन तुम्हारी छोरी वापस आ जाएगी।

न-न सरकार आपको कभी शिकायत का मौका न मिलेगा। म्हारी छोरी घनी समझदार सै।

चौधरी वो तो दीख रा सै। कितनी समझदार है। ....वो तो झोटरमल साब जी ने रिश्ता बताया है तो छोरी देखने चले आए। वैसे म्हारे छोरे ने छोरियों की कमी न सै। म्हारा छोरा कॉलेज में पढ़ावे सै। घनी तनख्वाह है उसकी। उसने ...

चैताली की माँ सबके लिए चाय, नाश्ता लाती है।

चाय की चुस्कियाँ लेते हुए बातें आगे बढ़ती हैं।

उधर चैताली अपनी सहेलियों संग छत पर हँसी-ठिठोलियाँ कर रही थी। इस दुनिया के तौर तरीकों, रस्मों-रिवाजों और सब बातों से अनजान चैताली अपनी ही दुनिया में मशगुल थी। उसके सपने, उसकी भावनाएं, उसका उत्साह जो वह अक्सर खुली आँखों से देखा करती थी। अपनी दुनिया का स्केच वह खुद बना, उसे रंगों से भरने का प्रयास करती।

आँगन में चैताली के हाथ पीले होने की बातें तह की जा रही थी, उधर चैताली अपनी सहेलियों से अपने जीवन के रंगीन सपनों को बयाँ कर रही थी। आशा तुझे पता है मैं खूब पढ़ना चाहती हूँ। तू देखना मैं खूब पढूँगी। अपने माँ-बाबा का खूब नाम रौशन करुँगी। एक दिन तुम सब मुझ पर गर्व करोगी। हमारे गाँव के स्कूल में एक भी मास्टरनी नहीं है। तुम देखना जब मैं पढ़ लिख जाऊँगी तो अपने ही गाँव के स्कूल की लड़कियों को पढ़ाऊँगी। तब किसी के माँ-बाबा को चिंता न रहेगी कि छोरी स्कूल में मास्टर साहब से कैसे पढ़ेंगी ....I

चैताली... बड़े – बड़े सपने देखने बंद कर दे। हमारी ऐसी किस्मत कहाँ कि हम खूब पढ़े और अपने मन मुताबिक जी सके... जिस दिन बाबा को कोई अच्छा परिवार और लड़का मिल जाएगा उसी दिन हाथ पीले कर देंगे।

“आशा तुम ठीक कह रही हो। हमें तो अपना अच्छा बुरा सोचने और कहने का भी हक़ नहीं है। माँ हमारे लिए कुछ सोचना भी चाहेगी तो ये समाज उसे जीने नहीं देगा ...I” कुछ रुआँसी सी हो मंजरी कहती है।

“मंजरी तुम्हें याद है अपनी रेशमा ...I” आशा कहती है 

 हाँ ! हाँ ! बहुत अच्छे से याद है। कितने सपने थे उसकी आँखों में। चैताली की तरह। मगर हुआ क्या ? हम सभी जानते हैं। उसके बापू ने एक अधेड़ से उसका ब्याह करा उसकी जिंदगी दाँव पर लगा दी। कहाँ वह मासूम सी 12 साल की लड़की कहाँ वह बुढाऊ ...I कैसे बर्दाश्त किया होगा उसने ? पता नहीं कैसी होगी वह ? रेशमा की ख़ुशियाँ अपनों ने ही निगल लिया। कभी कभी लगता है क्या वाकई में ये हमारे जन्मदाता हैं? हम इन्हीं की संतान है हैं ? समाज की की बातों में अपनी ही फूल सी बच्ची का जीवन चूल्हे की दहकती चिंगारी में झोंक देते हैं।

तुम दोनों ठीक कह रही हो। मुझे भी रेशमा की याद आती है। जब से उसकी शादी हुई है तब से एकबार भी लौटकर नहीं आई। हर साल अपने गाँव में रेशमा जैसी न जाने कितनी ही लड़कियाँ परिवार और समाज के नियमों के मकड़ जाल का शिकार हो जाती हैं।    


कोई कुछ नहीं कहता। बस बुत बन तमाशा देखते हैं। समाज के नाम पर बेबुनियादी नियमों, परम्पराओं, संस्कार आदि का चोला पहन तमाशबीन बनाने के अतिरिक्त आता ही क्या है। खेलने कूदने की उम्र में चूल्हा-चौका, पति, नाते-रिश्ते न जाने किन-किन जिम्मेदारियों में उलझा कर रख दिया जाता है। परिपक्व होने से पूर्व ही पंख कतर दिये जाते है। न अपने मन से हँस सकते हैं और न रो ही ...I तुम देखना आशा और मंजरी मैं अपने साथ ऐसा न होने दूँगीI मैं तो खूब पढूंगी। मैंने तो बाबा से कह दिया है मैं न करूँगी शादी-वादी।

 “चैताली तुम बुरा न मनो तो कुछ कहूँ। ” आशा कहती है।

 हाँ, कहो न। भला मैं तुम्हारी बात का बुरा क्यों मानूँगी। तुम दोनों ही हो जो मेरी बातों को सुनते हो और समझते हो। बाकी सब तो मुझे पागल ही समझते हैI टेड़ा-सा मुँह बना के कहते है, “छोरी हो। क्या करोगी पढ़ – लिख कर। न बन रही कोई कलेक्टर - वलेक्टर....I अच्छा कहो क्या कह रही थीं।

मैंने कल अपनी माँ और बाबा को बात करते हुए सुना था कि आज तुम्हारे घर कुछ मेहमान आ रहे है जो तुम्हें देखने आने वाले है। तुम्हारे बाबा तुम्हारी शादी की बात तय कर चुके है। अगर तुम उन्हें पसंद आ गई तो 2-3 महीने में तुम्हारे हाथ पीले कर सदा के लिए विदा कर दिया जाएगा। तुम्हारे घर के आँगन में जो लोग ...I

 “आशा तुमने गलत सुना होगा। शादी… और मेरी। नहीं- नहीं। बाबा मेरी शादी इतनी जल्दी नहीं करेंगे। ” पूरे आत्मविश्वास के साथ चैताली अपनी दोनों सहेलियों से कहती है।

चैताली तुम मानो या न मानो। अब तुम्हारी मर्जी। मगर ऐसा ही ....I तुम भी शायद थोड़े दिनों बाद हमसे काफी दूर चली जाओगी। आज रेशमा को याद कर आँखें नम हुई चली जा रही है। पता नहीं, हम फिर कभी यूँ एक साथ ....।

नहीं ऐसा नहीं होगा। मैं अभी बाबा से पूछती हूँ। तुम यहीं रुको। मैं अभी आती हूँ।

( मंजरी चैताली का हाथ पकड़ उसे रोकती है। )

 चैताली रुको। आशा ठीक कह रही है। तुम्हारा सबके सामने ऐसे जाना और अपने बाबा से कुछ भी पूछना उचित नहीं है। तुम अपने बाबा से अभी नहीं बाद में ....I

( चैताली कुछ रुष्ट स्वर में ) तुम दोनों को आखिर क्या हो गया है। आज अचानक कैसी बातें कर रहे हो तुम दोनों ? सब कुछ मेरी समझ से परे है। मेरे बाबा, ऐसा नहीं करेंगे। मैं अपने बाबा को बहुत अच्छे से जानती हूँ। वो अपनी चैतू से बहुत प्यार करते है। वो मुझे अपने से दूर नहीं जाने देंगे। ये लोग तो बाबा के कोई परिचित दोस्तों में से होंगे। वैसे भी बाबा से कोई न कोई मिलने आता ही रहता है। ये लोग भी यूँ ही चले आए होंगे। इन लोगों को एक बार चले जाने दो फिर सब साफ हो जाएगा।

( इधर चौधरी साहब और हीरामल एक दूसरे के गले लग रिश्ता तय होने की मुबारकबाद दे रहे थे। )

 “हीरामल जी आप पंडित जी से अच्छा–सा मुहूर्त निकलवा लीजिए। फिर हम भी शादी की तैयारी में लगे। ” चैताली का पिता कहता है।

तुम चिंता ना करो। पंडित का क्या, वो सब तो हम देख ही लेंगे।

शादी की बात सुन चैताली के पैरों तले ज़मीन ही सरक गई। खूब मिन्नत की, हाथ पैर-जोड़े मगर चैताली के पिता का दिल ना पसीजा। माँ-बाबा के इस रूप को देख चैताली पूरी तरह टूट गई। अब न दिल में कोई अरमान था, न कोई जज़बा बनने का...I अपने कुचलते सपनों की धरा पर सिर्फ चलता फिरता पुतला थी।

शादी का दिन भी आ गया। चैताली की हथेलियाँ मेहँदी से रची गई। हल्दी चढ़ी। बन्नी गाई गई। बारात का भी खूब धूमधाम से स्वागत हुआ। चैताली की डोली भी विदा हो गई। आशा और मंजरी द्रवित और स्तब्ध आँखों से चौखट पर खड़े हो चैताली की डोली ओझल होने तक निहारती रहीं।

बिहाता चैताली के इस जीवन सूची में सास- ससुर, पति के अतिरिक्त दादी सास, चार ननद और दो देवर भी है। सास और ननद की जुबान कुछ पतली थीI कुछ कहने और सुनाने का मौका न छोड़ती।

नन्हे नन्हें कोमल हाथों में दस–बारह लोगों की जिम्मेदारियों की डोर। कितनी बार तो वह समझ ही न पाती कि क्या करूँ और कैसे करूँ ? ऊपर से सास ननद का फिराख में रहना की चैताली कोई ग़लती करे और वे उस पर बरस जाए। फूंक-फूंक कर कदम बढ़ाती और राम-राम का नाम ले दिन काटती। पति पारस दूसरे शहर में नौकरी पेशा होने के कारण 15-20 दिनों में एक बार आया करता था। पारस के आने पर चैताली से बढ़ा प्रेमपूर्वक व्यवहार किया जाता।

चैताली हर बार पारस के आने पर अपने मायके जाने की बात करती मगर माँ-बाबा की सहमती के बिना भेजना उसके लिए मुमकिन न था। चैताली के हर बार मायके जाने वाली बात उसे कुछ खटकने लगी। कहीं मेरे घर में चैताली दुखी तो नहीं है। या उसके मन में कोई और इच्छा तो नहीं। पारस ने चैताली के मन की बात जानने की कोशिश की। पहले तो वह एक ही बात पर अटकी रही मगर पारस के नम्र और सहृदय स्वभाव में चैताली का मन जीत लिया। चैताली ने जो बोलना शुरू किया बस अपनी बात पूरी करने पर ही रुकी। पारस उसकी मासूमियत और भोलेपन को निहार रहा था कि उसकी पत्नी अबोध बालिका ही है। भले ही रस्मों-रिवाजों ने उन दोनों को परिणय सूत्र में बाँध दिया हो मगर वह आज भी निरी बच्ची ही है।

पारस चैताली से करता है कि वह उसे मायके भेजने में असमर्थ है मगर उसे अपने साथ शहर ले जाने का बंदोबस्त कर सकता है। चैताली पारस की बातों से प्रभावित हो गई। सारी रात हृदय के धरातल पर नई उम्मीद और नव स्वप्न को बुनते – बुनते कब सुबह हो गई चैताली को पता ही नहीं चला।

अगली सुबह पारस ने चैताली को अपने साथ शहर ले जाने का प्रस्ताव बाबा के सामने रखा। बाबा ने बेटे की तकलीफ़ समझते हुए हाँ कह दिया मगर माँ और बहनों ने तांडव मचा दिया। यह चली जाएगी तो घर के कम कौन करेगा ? इसी ने साथ जाने की जिद्द की होगी। वरना हमारे बेटे को क्या पता .....I

पारस माँ को समझता है उसने कुछ नहीं कहा। न ही मैं उसका पक्ष ले रहा हूँ तकलीफ़ यह है कि मुझे ऑफ़िस जाने से पहले और आने के बाद खाना पकाना, अपने कपड़े धोना सब खुद ही करना पड़ता है। ये रहेगी तो मुझे जरा आराम मिल जाएगा। पारस ने जैसे तैसे सबको मना लिया।

अब क्या था, चैताली के सपनों को पंख मिल गए। पारस ने चैताली का नौवीं में दाखिला करवा दिया। शुरू में उसे कुछ अटपटा लगा मगर पारस के विश्वास ने उसका हौसला बढ़ा दिया। चैताली भी मन लगा कर पढ़ने लगी। शाम को पारस के आने से पहले ही घर-गृहस्थी का काम ख़त्म कर लेती। ताकि शाम को पारस पढ़ाई में उसकी मदद करे। घर से लाख बुलावा आने पर भी पारस कोई न कोई बहाना बना देता। अब समय था चैताली की परीक्षा का। खूब मन लगा कर मेहनत की उसने। पारस चैताली का रिजल्ट देख भौंचक्का रह गया। चैताली पूरी क्लास में प्रथम आई थी सभी शिक्षक भी खुश थे उसके रिजल्ट से।

पारस चैताली के दोनों हाथ अपने हाथों में ले कहता है कि चैताली आज मैं बहुत खुश हूँ। तुम जितना पढ़ना चाहती हो पढ़ो, जो करना चाहती हो करों मैं कभी भी तुम्हारा हाथ नहीं रोकूंगा। अपने पंखों को थकने मत देना।

चैताली ने जो रफ्तार पकड़ी बस फिर रुकने का नाम न लिया। इस सफर में पारस और चैताली की संतान के रूप में तीन बेटियाँ ने भी पदार्पण किया। बेटियों के जन्म पर सास ननद ने नाक-मुँह सिकोड़ा मगर किसी की चिंता किए बिना वह आगे बढ़ती रही। घर-गृहस्थी की उधेड़-बुन, बेटियों की परवरिश और अपनी तालीम में कोई कमी न आने दी।

चैताली ने आठ विषयों में एम.ए. की उपाधि के अतिरिक्त बी.एड., पीएच. डी. की भी उपाधि ग्रहण की। अपने शैक्षणिक बल और सूझबूझ हेतु वह जूनियर कॉलेज में सरकारी नौकरी में सहायक शिक्षिका पद पर कार्यरत है। चैताली को उसकी दक्षता और कुशलता के लिए श्रेष्ठ शिक्षिका राज्य स्तर पुरस्कार से सम्मानित किया गया। विभिन्न सामाजिक, शैक्षणिक, धार्मिक आदि कार्यों से जुड़ी है। अनेकों पुरस्कारों से सम्मानित, ऐसी है चैताली। बचपन में देखे स्वप्न को पूरा करने की ललक ने आज उसे उसके मुकाम पर पहुंचा दिया है। मात्र माता-पिता का ही नहीं बल्कि सास ससुर का भी नाम समाज में ऊँचा कर दिया। पति की अगवाही ने चैताली के जीवन की परिभाषा ही बदल दी। चैताली की बुलंदियों पर उसका पूरा गाँव गर्व करता है तथा गाँव की हर लड़की के लिए वह जीता जगता आदर्श बन गई है।

यदि जीवन में कुछ पाने की चाह उत्कृष्ट हो तो मंज़िल पाना मुश्किल नहीं है।

      

    


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