चिड़का बुढ़वा
चिड़का बुढ़वा
चिड़का बुढ़वा
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अक्सर वह बच्चों को डराने के लिये बड़ा सा पत्थर उठा कर दौड़ा देता था। गली मोहल्ले के बच्चे भी उसे तंग करने के बहाने ढ़ुढते रहते थे। कभी कोई कहता ....बाबा फिर से ब्याह रचाओगे, तो कोई कहता देखो धन्नो! हाँ वही गब्बर की फिल्म वाली ...तुमसे रिश्ता करने को तैयार है , कह कर चिढ़ाया करते थे। सभी जानते थे कि मंगल बाबा कई सालों से बुढ़ापे की सनक में उलजलूल हरकतें करते रहते थे।जिसके कारण से ही बच्चे उन्हें कई नाम से बुलाते थे... उसमें एक नाम था .."चिड़का बुढवा" !! उनके घर में कोई नही था ।बेटे के फौज में शहीद हो जाने के बाद उनकी पत्नी यह गम सहन ना कर सकी और भगवान को प्यारी हो गई और बाबा मानसिक आघात झेल रहे थे।मोहल्ले वाले ही उनकी देखभाल व खाने पीने का कुछ ना कुछ इंतजाम कर देते थे ,नही तो नुक्कड़ के हलवाई दीनानाथ तो रोज दुकान बंद करने से पहले कुछ ना कुछ खाने का भिजवा दिया करते थे।
कभी बच्चों के साथ खेलने लगते थे तो कभी डाकिये के साथ लड़ने लगते थे कि उनके बेटे की चिठटी नही लाता है। बच्चे शरारत से कहते कि बाबा चिठटी हमारे पास है और उन्हें परेशान करते थे। जब कभी बड़े लोग बच्चों को डाँटते थे ,तो बाबा उनसे भी लड़ने लगते थे कि यह उनके संस्कार का ही असर है।कभी कभी लगता था कि वह बिल्कुल ठीक है और इन सब के साथ खुद के जिंदा रहने की वजह ढुढते रहतें है या अपने बेटे के बचपन की यादों को जिवांत करते रहते है..... एक दिन मोहल्ले के घर में आग लगी और गैस सिलेंडर फट गया सभी भाग कर बाहर आ गये पर उनका छह साल का बेटा अंदर ही फँसा रह गया सभी उसे बचाने के लिये उपाय करने लगे पर आग बढती जा रही थी कोई उपाय ना देख कर बाबा दौडते हुए घर में जा घुसे और बच्चें को दरी मे लपेट बाहर ले आए।बुरी तरह से घायल हो जाने के कारण मुँह पर सुकून भरी मुस्कान लिये दुनिया को अलविदा कह गये।
