छोटू
छोटू
"वेलकम सर", वेटर ने विश्वास को परिवार सहित अंदर आते देख कहा!
"सुनो"
"जी सर "
"तुम वंश हो ना, वंश शर्मा !"
"हाँ, मगर आप?"
"मुझे नहीं पहचाना? मैं छोटू, अरे किसना का बेटा!"
किसना पापा के दफ्तर का चपरासी, उन्ही का बेटा तो था छोटू।
याद आते ही आंखे झुका ली थी वंश ने, पिता से सामंतवादी विचार धारा विरासत में मिली थी। माँ- पिता जी भी किसना से घर के काफी काम कराते थे। वंश भी किसना और उसके परिवार को अपनी बापौती समझता था और गाहे-बेगाहे छोटू को तंग करता था। छोटू को पढ़ने का शौक था और वंश न तो खुद पढ़ता और ना ही छोटू को पढ़ने देता। फिर वंश के पापा की बदली हो गई और वो दूसरे शहर चले गए।
बरसों बाद आज छोटू से मुलाकात हुई थी वंश की। वो देख रहा था छोटू अब छोटू नहीं रह गया था बल्कि एक बड़ा अफसर हो गया था और वो अब बड़े होटल में छोटू हो गया।