छोटी सोच
छोटी सोच
वह छोटा सा बच्चा अपनी माँ की उंगली पकड़े झुलसती दोपहरी में नंगे पांव तपती सड़क पर जा रहा था।बच्चा बीच-बीच में अपने पैर उठा रहा था;जाहिर है सड़क बहुत गर्म थी औरउस पर नंगे पैर चलना किसी परीक्षा से कम नहीं।
मेरे 10वर्षीय बेटे की नज़र उस पर पड़ी;वह अंदर से भागकर अपनी नयी चप्पलें लेकर आया।
"अरे ,यह तो नयी है ;वह पुराने वाले जूते दे दो। ",मैंने कहा।
"नहीं ,उनको पहनने से तो चोट लग सकती है;नीचे से टूटे हुए जो हैं।आप ही तो कहती हो।जब मुझे लग सकती है तो इसे भी लग जायेगी न।",बेटे ने कहा।
मैं अपनी छोटी सोच पर शर्मिंदा थी।
