Priyanka Shrivastava "शुभ्र"

Inspirational

2.5  

Priyanka Shrivastava "शुभ्र"

Inspirational

छोटी छोटी खुशियाँ

छोटी छोटी खुशियाँ

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आज शाहिल को देख सभी कितने ख़ुश हैं। सही कहें तो सभी उसके साथ अपने नाम को जोड़ने की कोशिश में हैं। सब की जुबान पर है बड़ा होनहार है। पर मुझे वो दिन भी याद है जब सभी उसकी परवरिश में कमी जताते थे। जिद्दी है और बेवजह बहुत चिड़चिड़ा है आदि कहते।


सच उन दिनों मैं भी कभी-कभी लोगों की बातों में आ परेशान हो जाती थी। पता न ये लड़का क्या करेगा। लिखना तो चाहता ही नहीं। कैसे पढ़ाई करेगा। अपनी इसी आदत के कारण मौखिक विषयों में अच्छे अंक प्राप्त करता पर लिखने में कमी के कारण बाकी हर विषय में बहुत कम नम्बर आते। और हर जमाने में बच्चों की योग्यता को हम प्राप्त नम्बर से ही आंकते है। कुछ दिन मैं परेशान रही फिर अपने को समझा लिया कि जो होना है वही होगा। कुछ न कुछ तो करेगा ही। बेकार में उसे बात-बात पर डांटना उचित नहीं।  


पहली कक्षा में था, स्कूल में इंटर स्कूल पेंटिंग कम्पीटिशन था जिसमें इसके कक्षा को भाग लेना अनिवार्य था। जब आकर उसने कहा गार्डन का चित्र बनाना था, मैंने बना दिया तो मैंने शाबाशी दे कर उसे शान्त कर दिया। दूसरे दिन हाथ मे गिफ्ट लेकर आया। बैग से सर्टिफिकेट निकल कर दिया, “मैं पेंटिंग कम्पीटिशन में फर्स्ट आया।”


उसकी इस नन्हीं सी कूद पर मैं बहुत प्रसन्न हुई और उसे और भी अच्छा करने के लिए प्रोत्साहित की।


ऐसा नहीं कि अब मैं उसे डांटती नहीं थी पर डांटने और समझाने का तरीका थोड़ा बदल दिया। उसे जो भी कहना होता उसे प्यार से कॉन्फिडेंस में लेकर कहती और कभी तुलनात्मक रूप में नहीं कहती। पर दुनिया वालों की जुबान तो रोकी नहीं जा सकती। मैं नहीं कहती थी घर परिवार वाले, अगल-बगल वालों को बड़ा मजा आता है बच्चों को तुलनात्मक बोलने में। कुछ लोग कहते हैं ऐसे बोलने से बच्चों में प्रतियोगिता की भावना जागती है और वो अच्छा करता है। पर मुझे लगता ऐसा करने से बच्चों के बीच आपसी सहयोग और प्यार की भावना खत्म होती है।


 जो भी हो शाहिल मन्थर चाल से पढ़ रहा था। पर वो था सबसे अलग। सभी कार्टून पढ़ते और वह टी.वी. पर देखते वो उन कार्टूनों को देख या पढ़ कर कार्टून लिखता। एक दिन मैंने देखा वो कॉपी में कुछ चित्र जैसा बना रहा है। देखना चाही तो छुपा लिया। मैं समझ गई उसे डाँट खाने का डर है। मैं बाद में जब इसकी डायरी देखी तो दंग रह गई। उस डायरी में उसने अंग्रेजी और हिंदी में दो-तीन कविताएँ लिखी थी जो बहुत ही भावपूर्ण थी। आगे पन्ना पलटी तो देखा कार्टून चित्रकथा लिखा है। मैं उसे बुलाई और बहुत शाबासी दी। उसे प्रोत्साहित किया कि वो और भी लिखे।


शायद अपने बच्चे को मैं नहीं पहचान पाई थी। पता न क्यों इस प्रोत्साहन ने इसकी कलम को रोक दी। अब उसका काम कुछ अलग होने लगा था।


कुछ दिनों के बाद घर में कम्प्यूटर आया। कम्प्यूटर आने के कुछ समय बाद ही उसने छोटी पर अवस्था के अनुसार एक लंबी छलांग लगाई पर मैंने उसकी अवस्था को देख उसकी पूँछ पकड़ ली। अभी हम सभी कम्प्यूटर से पूरी तरह सहज भी नहीं हो पाए थे कि उसने एक नया गेम बना लिया। मार्किट में उसकी डिमांड होने लगी। पहले पढ़ाई पर ध्यान दो बाद में ये सब करना। इस तरह से मेरे समझाने से उसने उस तरफ से अपना ध्यान हटाया। पर कम्प्यूटर पर इतना कमांड हो गया कि अपना कम्प्यूटर तो अपना ही था स्कूल के कम्प्यूटर में भी यदि थोड़ी बहुत कुछ गड़बड़ी होती तो शिक्षक उसे याद करते। 


स्कूल की पढ़ाई पूरी कर वह इंजीनियरिंग कॉलेज पहुँचा। वहाँ भी कम्प्यूटर में उसने अच्छी पकड़ बनाई। कॉलेज में कम्प्यूटर से सम्बंधित एक्स्ट्रा क्लास सभी के लिए ऑर्गेनाइज करवाया। कॉलेज में ऐसी पहचान बनी की कॉलेज से निकलने के बाद भी शिक्षक और डिपार्टमेंट हेड इसे नाम से पहचानते  कैम्प्स सलेक्शन में नौकरी प्राप्त कर आगे बढ़ा। कैम्पस से नौकरी प्राप्त करने वाला ये अकेला नहीं था। इसके बहुत से साथी ने नौकरी प्राप्त कर कैम्प्स छोड़ा था। पर ये अकेला लड़का था जिसने ट्रेनिंग पीरियड में एक ऐसा सॉफ्टवेयर डेवलेप किया की इसे ‘फर्स्ट टाइम इन वर्ल्ड’ के सर्टिफिकेट से नवाजा गया।


इस तरह छोटी-छोटी उड़ान भरते वह अपने जीवन पथ पर बढ़ रहा था। वह हमेशा किसी कम्पनी में मात्र नौकरी कर रहना नहीं चाहता। उसे लगता कि उसको कुछ और करना चाहिए। ये बंधी-बंधाई काम से उसे संतुष्टी नहीं मिलती। कुछ साल नौकरी करने के बाद एक दिन उसने नौकरी छोड़ कर अपनी कम्पनी शुरू करने का निर्णय ले लिया। माता-पिता के लिए बहुत चिंता का विषय था। पर वह निश्चिंत था। अपना सारा जमा पूंजी उसने अपने स्टार्ट अप में लगा दिया।


रईसी की जिंदगी जीने वाला लड़का अब हर रात जमीन पर बिस्तर बिछा कर सोता और प्रातः झट-पट उठ उसे समेट घर ऐसे व्यवस्थित कर देता की वह घर ऑफ़िस का रूप ले लेता। दो लड़कों को लेकर एक टीम बनाया और दिन-रात काम होने लगा। उन लड़कों को वेतन देने के लिए पहले तो अपने जमा-पूंजी का प्रयोग किया बाद में एक कम्पनी में पार्ट टाइम जॉब प्रारम्भ किया जिससे अपने एम्प्लॉय को वेतन दे सके। लम्बे समय तक सतत मेहनत रंग लाई। और कम्पनी खड़ी हो गई। आज उसकी कम्पनी सुगमता पूर्वक आठ-दस एम्प्लॉय को लेकर चल रही है और वो अभी भी एक सच्चे कर्मचारी की तरह पूरी लगन और मेहनत से उसी तरह काम कर रहा है।


उसकी लगन और मेहनत से स्टार्टअप ज़ोन में उसकी अच्छी पहचान बन गई है। बचपन में उसपर हँसने वाले अब उसे अपना परिचित या रिश्तेदार बता प्रसन्नता का अनुभव करते हैं। आज वो सबको कहता है यदि जीवन में कुछ करना है तो जब समय मिले छोटी छलांग से परहेज न करना। ये छोटी छलांग ही लम्बी कूद में मददगार साबित होगी।


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