छोटे पंख और अंतरिक्ष की उड़ान
छोटे पंख और अंतरिक्ष की उड़ान
मिनी, बारह साल की प्यारी सी बच्ची, जिसे रात के आसमान का गहरा रंग बहुत पसंद था और उससे भी ज़्यादा पसंद थे टिमटिमाते तारे, मुस्कुराता चाँद । वह अक्सर रात में पास की झील के किनारे के खुले मैदान में चली जाती और बस ऊपर आसमान पर नज़र टिका कर बैठ जाते। हमेशा वह चाँद को घर लाने और तारों बिन-बिन कर अपनी फ़्राक की झोली में भरने के सपने देखती।
लेकिन क्या झोपड़ी में रहने वाली मिनी को ऐसे सपने देखने का कोई हक़ था। नहीं बिलकुल नहीं । जब वह पाँच साल की हुई तो उसकी माँ उसे स्कूल भेजना चाहती थी लेकिन उसका पिता उसे मंदिर के आगे फूल बेचने को भेजने लगा ताकि घर में दो पैसे ज़्यादा आएँ। अब जब वह दस के ऊपर की हो गई थी तब वह उसे एक कोठी में घर के काम करने के लिए लगा दिया क्योंकि यहाँ पैसे ज़्यादा मिलते।
इस कोठी में काम करते हुए मिनी को लगभग दो वर्ष हो गए थे। कोठी वाली काकी बहुत ही भली महिला थी। जब उन्हें मिनी के सपनों के बारे में पता लगा तो उन्होंने उसे काम के बाद बचे समय में पढ़ाना शुरू कर दिया। धीरे धीरे समय निकलता गया और मिनी पंद्रह वर्ष की होने को आई और काकी ने उसे दसवी की परीक्षा दिलवाया। मिनी अच्छे अंकों से उत्तीर्ण हुई। काकी और माँ तो बहुत खुश हुई लेकिन उसके पिता को अच्छा नहीं लगा उसका पढ़ना।
काकी ने आगे की पढ़ाई के लिए उसका दाख़िला सरकारी कॉलेज में कर दिया। अब वह अंतरिक्ष और आसमान की गहराइयों के बारे जानने की कोशिश में लग गई थी। लेकिन मिनी के सपनों आसानी से पूरे हो जाएँ वह कहाँ सम्भव था। काकी की तबियत ठीक नहीं रहती थी इसलिए उनका बेटा जो बाहर देश में रहता था, उन्हें अपने साथ ले गया। इधर मिनी के पिता उसके हाथ पीले करने के लिए आतुर हो गए थे। एक रिश्ता भी ले आए थे, लेकिन उसकी माँ इस शादी के लिए बिल्कुल ही तैयार नहीं हुई क्योंकि लड़का मिनी से ग्यारह वर्ष बड़ा था। यूँ तो काकी मिनी के कॉलेज की फ़ीस और किताबों के लिए पैसे भेज देती थी किंतु उसका पिता उसे आगे नहीं पढ़ने देना चाहता था। मिनी छुप छुपा कर किसी दिन कॉलेज जाती तो किसी दिन नहीं जा पाती।
एक दिन काकी ने फ़ोन किया मिनी का हालचाल जानने के लिए। मिनी की इन दुशवारियों के बारे में जैसे ही उन्हें पता चला, उन्होंने मिनी से कहा वह उसके लिए कुछ करती हैं। थोड़े दिनों के बाद फिर उनका फ़ोन आया और उन्होंने उसके पिता से बात करी कि उन्हें वहाँ मिनी की ज़रूरत है और मिनी के काम के अच्छे पैसे देंगी वह। मिनी के पिता मान गए। काकी ने उन्हें बाबू भैया से मिलने को कहा क्योंकि वह मिनी के विदेश जाने का सारा इंतज़ाम कर देंगे।
दो महीने में मिनी काकी के पास विदेश चली गई। काकी का बेटा वहाँ दूनिया के सबसे बड़े अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र में काम करता था। उसने मिनी का मार्गदर्शन और पढ़ाई में भी सहायता की। कुछ सालों ने मिनी ने अपनी पढ़ाई पूरी कर ली। इस दौरान काकी मिनी के पिता को लगातार पैसे भेजती रही और वह खुश होता रहा।
पढ़ाई खत्म होते ही काकी के बेटे ने मिनी को अपनी संस्थान में बुला लिया। अब वह भी अंतरिक्ष के गूढ़ रहस्यों के बारे में पता करने लगी थी। काकी के मज़बूत सहारे से अब वह अपने सपनों को जी रही थी। तारे उसकी झोली में और चाँद उसके कमरे में था। परिस्थितयों ने उसे कई बार पीछे खींचा लेकिन नियति ने उसको चाँद तक पहुँचा ही दिया।
