चैंपियन
चैंपियन


आज पहली बार जब मैं बैडमिन्टन की नेशनल चैंपियनशिप जीत कर घर आयीं थी। माँ ने मुझे गले लगाकर मेरी नज़र उतारी। खुशी से मैं दमक रही थी।मेरी नज़रे चारों ओर घूम रही थी।
मेरी दादी वहीँ पर खड़ी थी मैं झट से उनके आँचल में छुप गयी।
मुझे अचानक लगा कि दादी रो रही है। मैंने दादी से कहा,"दादी आज क्यों रो रही है आप?आज तो खुशी का माहौल है।"
दादी के कुछ कहने के पहले माँ एकदम बोल पड़ी,"हाँ, हाँ। सही कह रही मेरी बेटी।चलो, मैंने खीर बनायीं है।हम सब मुँह मीठा करते है।"
दादी कहने लगी,"बेटा,आज मुझे कहने दो।माँ के पेट में जब तुम्हारा पता चला तो मैंने तुम्हारी माँ को बार बार जोर देकर कह रही थी कि हमे और लड़की नहीं चाहिए,जाकर अपना एबॉर्शन करवा लो।
"अरे, क्या बात लेकर बैठी है आप। छोड़ दीजिए।"
"नहीं बेटा,आज मैं तुमसे और तुम्हारी माँ से और दुनिया की सारी बेटीयों से माफ़ी माँगती हूँ।मैं ग़लत थी जो तुम्हे अबॉर्शन के लिए जोर दे रही थी।आज तुम्हारी इस ट्रॉफी ने और पक्का कर दिया है।लड़कियाँ लड़कों से कम नहीं होती।मुझे तुम पर फक्र है।"
ड्रॉइंग रूम की दीवार पर लगी हम माँ बेटी की फ़ोटो पर मेरी निगाहें थम कर रह गयी जिसमे माँ मुझे उछाल कर पकड़ रही थी। आज दादी के बताने पर मुझे माँ और ज्यादा स्ट्रॉन्ग और बहादुर लगने लगी थी।मैंने माँ को बाहोँ में भर लिया और मुस्कुराते हुए दादी और माँ से कहने लगी, चलो एक सेल्फी लेते है इस ट्रॉफी के साथ। और मैं उन सब को मुस्कुराते हुए उसी फ़ोटो की तरफ ले गयी जिसमे माँ बचपन मे मुझे उछालकर पकड़ रही थी।और हम तीनों मुस्कुराते हुए सेल्फी के लिए पोज़ देने लगे.....
दादी मुस्कुरा तो रही थी लेकिन उनकी आँखों की नमी कुछ और कह रही थी....