Dr Jogender Singh(jogi)

Drama

4.0  

Dr Jogender Singh(jogi)

Drama

चाय /ब्रेड ( पार्ट 2)

चाय /ब्रेड ( पार्ट 2)

3 mins
228


मोबाइल की घण्टी से निर्मला की आँख खुल गयी। किसका फ़ोन आ गया ? चश्मा लगा कर नम्बर देखा।“ वीर का फ़ोन, क्या हो गया ? निर्मला की धड़कने बड़ गयी। कांपते हाथों से हरा बटन दबाया। “हेलो, क्या हुआ वीर ? इतनी रात को फ़ोन ?" “ प्रणाम मम्मी, चरण स्पर्श। आप सो गयीं थी क्या ? दरअसल मेरा प्रमोशन हुआ है आज, घर आते ही वीर को बताया, फिर आप को फ़ोन किया।” उधर से रमना की आवाज़ सुन कर निर्मला मानो बुत बन गयी। 

“ क्या हुआ मम्मी जी ? आप की तबीयत तो ठीक है ना ? रमना की आवाज़ में चिंता थी। 

“ मैं एकदम ठीक हूँ बेटा, बधाई हो ” निर्मला ने मुश्किल से अपनी रुलाई रोकी। फिर भी आवाज़ में नमी सी आ गयी थी।

अब आपको पार्टी देनी है मम्मी जी, अगले हफ़्ते हम दोनों आप के पास आ रहें है, शुक्रवार को। 

हाँ बेटा, आ जाओ तीन महीनों से तुम दोनों को देखा भी नहीं। वीर से बात करा दो। 

अभी देती हूँ, वीर मम्मी बात करेंगी। 

“ हेलो मम्मी, नींद से जगा दिया ना रमना ने। मैंने मना किया था, पर यह मानी ही नहीं। आप को बुरा तो नहीं लगा मम्मी ? 

“ मुझे माफ़ कर देना वीर। सच पूछो तो मुझे ख़ुद पर शर्म आ रही है, तुम्हारी पसंद बहुत अच्छी है, मैंने ही अपने मन में एक वहम पाल रखा था कि दूसरी जाति की लड़की ठीक नहीं हो सकती। कितने अपने पन और भरोसे से रमना ने फ़ोन किया। अब तुम दोनों आ जाओ, पूरे मोहल्ले को पार्टी दूँगी। शादी की सारी कसर पूरी कर दूँगी। बहुत बहुत बधाई बेटा। 

“ ठीक है माँ ” बाय। गुड नाइट।

ख़ुश रहो बेटा। बाय। गुड नाइट।

निर्मला सोने की कोशिश करती रही। पर नींद उड़ गयी थी। निर्मला यादों में खो गयी। 

माँ, मुझे एक लड़की पसंद है, आप से मिलवाना चाहता हूँ। वीर ने निर्मला से मनुहार की थी।

“ राजपूत है ना ? ” तो मुझे कोई एतराज नहीं। निर्मला ने मानो सुनवाई से पहले ही फ़ैसला सुना दिया था। बाक़ी बात शाम को ऑफ़िस से आने के बाद, रश्मि बुआ को भी बुला लेना डिनर पर।

माँ सुनो, वो राजपूत नहीं है। वीर संकोच से बोला।

फिर ? निर्मला ने उसकी तरफ़ हैरानी से देखा। तुम ऐसा नहीं कर सकते ? 

वो गुप्ता है, बनिया। बहुत अच्छी है। एक बार आप मिलो तो उस से।

“ यह नहीं हो सकता। निर्मला अपना पर्स उठा कर घर से निकल तो आयी थी, पर दिन भर ऑफ़िस में किसी भी काम में मन नहीं  लगा।

निर्मला ने फिर सोने की कोशिश की पर यादें पीछा नहीं छोड़ रही थी। 

वीर का आंसुओं से भरा चेहरा निर्मला को अंदर तक काट रहा था। ऑफ़िस से लौटने के बाद माँ / बेटे के बीच कोई भी बात नहीं हुई थी। खाना खा कर दोनों अपने / अपने कमरे में सोने चले गए। राजन ने घर में एक नियम बनाया था, कितना भी मनमुटाव हो, खाना तो खाना ही है , वो भी एक साथ बैठ कर।

सुबह जब वीर बेंगलोर के लिए निकला, तो निर्मला के पैर छूते हुए एक ही बात बोला “ उससे एक बार मिल लो माँ, फिर जैसा आप कहोगी।” 

“ ठीक है ” पता नहीं कैसे मुँह से निकल गया था।

साधारण से नैन / नक़्श की रमना, वीर के सामने उन्नीस से भी कम थी। पर इकलौते बेटे की ख़ुशी के लिए निर्मला ने शादी के लिए हामी भर दी थी। एक शर्त के साथ, कोर्ट मैरिज कर लो। अपनी नाक बचाई थी निर्मला ने रिश्तेदारों के बीच। 

वीर और रमना ख़ुशी से कोर्ट मैरिज के लिए तैयार हो गए। 

शादी के दूसरे दिन ही निर्मला ऑफ़िस के काम का बहाना बना कर वापिस सहारनपुर आ गयी। विजातीय बहू के साथ कम से कम रहना पड़े शायद इसीलिए।

कितना ग़लत किया मैंने, अब सारे रिश्तेदारों को बुला कर अच्छा सा फ़ंक्शन करूँगी। सोचते / सोचते निर्मला की आँख लग गयी।



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