चाणक्य की कर नीति
चाणक्य की कर नीति
रामू ने अपना वाउचर किसी तरह उल्टी-सीधी लिखावट में भर दिया और पैसे निकालने वाली लाइन में खड़ा हो गया उसको पाँच सौ रु निकालने हैं।कतार लंबी थी, रामू वैसे भी कमजोर था उसको थकान होने लगी तो वही थोड़ा किनारे खिसक कर फर्श पर उकड़ूँ बैठ गया।बैंक की दीवार पर टीवी टंगा है उस पर चाणक्य का शो चल रहा है, समय बिताने बिताने के लिए रामू टीवी देखने लगा। गहनों से लदा हुआ राजा मंत्री से पूछ रहा है "तुमने कर वसूलने के लिए क्या किया? कोई नीति बनाई?"
मंत्री को गुस्सा आ गया वह बोला, "नए कर से मुक्त कर दो मगध को, मेरी आप से यह विनती है। मैं गरीब माताओं से जबरन कर नहीं वसूल सकता जिनके पास देने को कुछ है ही नहीं, या फिर डाकुओं को कारागार से छोड़ दो और उन को मंत्रिमंडल में शामिल कर लो क्योंकि गरीब माताओं से कर वसूलना डाकुओं के ही बस की बात है उनका यही काम है।"
रामू को ये सब समझ में नहीं आ रहा है, वह तो अपनी समस्याओं में उलझा है। तब तक रामू का नंबर आ गया उसने कैशियर को वाउचर दे दिया।
"तुमको पांच सौ रूपये निकालने हैं?" कैशियर ने पूछा।
"जी साहब, कितना पैसा है मेरे खाते में?" रामू ने पूछ लिया।
"ढाई हजार।"
"साहब कम कैसे हो गए पैसे मैंने तो निकाले भी नहीं?"
"मिनिमम बैलेंस से कम पैसा था तुम्हारे खाते में तभी कट गए हैं।"
रामू परेशान सा हवा में देखने लगा बैंक में पैसे बढ़ते हैं। अब तो बिना निकाले ही कम भी होने लगे।विष्णु भी पीछे ही खड़ा था उसका नंबर कुछ लोगों के बाद है। वह यही सोच रहा है कि चाणक्य ने कितनी सही बात कही थी, जब बड़ी मछलियां सब पानी पी जाएंगी तो छोटी मछलियों का जीवन संकट में आ जाएगा;जब बड़ी मछलियां सब पानी पी जाएंगी तो छोटी मछलियों का जीवन संकट में आ जाएगा; ऐसी स्थिति में नई राजनीति का निर्माण होना चाहिए।
काश! चाणक्य की यह बात सच हो जाती कि ऐसी कर वसूली के का निर्माण होना चाहिए जैसे कि मधुमक्खिया फूलों से रस ले कर शहद भी बना लें और फूलों को कोई कष्ट भी ना पहुंचे और आज के समय में ऐसा संभव नहीं लगता।