चाभी
चाभी


कहा रख दिया है मैंने ? ऊपर देखा, बिस्तर के निचे देख, अलमारी में देखा पर गाड़ी की चाभी कही नहीं मिली। अब डर लगना शुरू हो चूका था, दिल घबराना, हाथो का ठन्डे होने का एहसास ने शरीर पर अपनी पकड़ जमा ली थी पर चाभी मिलने का नाम नहीं ले रही थी। पिछली बार जब चाभी खोई थी तो गली के लड़के रात में गाड़ी चलाते थे, चाभी उन्ही को मिली थी, पूरा ताला बदलना पड़ा था। मोहल्ले के लड़के भी बड़े बदमाश है चाभी लौटने के बजाय उसे इस्तेमाल करने में ज़्यादा दिलचसभि दिखाते थे इसीलिए गाड़ी के पास जाकर चाभी ढूढने का मन ही नहीं किया।
घबराहट और बढती जा रही थी और दूसरी तरफ माँ का मुझपर चिल्लाना जारी था। "तुझसे एक चाभी नहीं संभालती, नालायक।"
माँ की बातो का बुरा नहीं लग रहा था मुझे, बुरा तो ज़्यादा चाभी खोने का था, अलमारी से सारे कपडे निकाल कर देख चूका था पर चाभी का पता नहीं चला, अब तो दफ्तर जाने का वक़्त था, अगर दफ्तर समय पर नहीं पंहूँचा तो मुसबित और बढ़ जाएगी, दफ्तर में बड़े साहब के साथ मीटिंग है।
मुँह-लटकाये, मायुश चेहरा लिए घर से निकला और कुछ कदम चलने के बाद अपने गाड़ी के पास पहोच गया तो देख गाड़ी सही जगह पर खड़ी मेरा इंतज़ार कर रही थी, पर उसे क्या पता था मेरे पास उसे चालू करने वाली चाभी ही नहीं, जैसे मैं अपने गाड़ी के पास पहूँँँचा तो देखा की गाड़ी के ऊपर कुछ लिया हूँवा है, मैं हैरान रह गया, उसपर लिखा था
"आप की चाभी हमारे पास है, चाभी के लिए निचे दिए गए नंबर पर फ़ोन करे"
मैं उत्साहित हो गया, मेरे ख़ुशी का ठिकाना ही नहीं रही, तुरंत जेब से मोबाइल निकाली और दिए हूँवे नंबर फ़ोन कर दिया।
फ़ोन बजा तो अच्छा लगा किसी ने बंद नंबर नहीं दिया है और जब किसी ने फ़ोन पर "हेलो" कहा तो और भी अच्छा लगा "कोई फिरकी नहीं ले रह है " अब उत्साह पढ़ने लगा था, मन
में लगातार अच्छे ख्याल बन रहे थे.
मैंने कहा - "सर आप का नंबर मुझे मेरे गाड़ी के ऊपर लिखी मिली जहा पर लिखा था चाभी के लिए इस नंबर पर फ़ोन करे" क्या चाभी आप के पास है ?
उसने कहा - "जी है। मैं आपको अच्छे से जानता हूँ पर आप का घर नहीं पता था इसीलिए मैं कल आप को चाभी नहीं दे पाया। "आप कल चाभी गाड़ी से निकालना भूल गए थे और चाभी गाड़ी पर ही लगी थी"
मैंने कहा - "मुझे पता ही नहीं चला की मैं कल चाभी गाड़ी में भूल ही गया, आप कहा रहते है मुझे बताइये मैं अभी आप के घर आता हूँ"
उसने कहा - "आपको को किराणे की दुकान पता है ?
मैंने कहा - जी है
उसने कहा - आप उनके पास जाइये और फ़ोन उन्हें दीजिये मैं उनसे बात बरता हूँ
मैंने वही कहा जो उसने मुझसे करने के लिए काया, धीरे ख़ुशी बढ़ती जा रही थी और बेचैनी कम होती जा रही थी पर दफ्तर वक़्त पर पहोचने का डर अभी भी बरक़रार था, मैं किराणे की दूकान के पास पहोचा तो देख की एक महिला दूकान में थी और मैंने उस महिला से कहा, ये फ़ोन लीजिये आप से कोई बात करना चाहता है।
महिला ने फ़ोन लिया और उस शक़्स से मेरे फ़ोन से बात करने गई, फिर ड्रावर से मेरे गाड़ी की चाभी निकाली और मुझे देने लगी।
चाभी को देख मेरा मन बहोत शांत हो गया और चाभी को मिलाने की खुशी का ठिकाना ही नहीं रहा फिर उस महिला ने फ़ोन मुझे दिया, अब वक़्त था उस शक़्स को धन्यवाद् करने का.
मैंने कहा "सर बहोत दिनों बाद इतनी बड़ी इंसानियत देखि है मैंने, आज के ज़माने में ऐसा कोई नहीं करता सर जैसे आप ने किया है, मेरे पास शब्द नहीं है की मैं आप की सराहना कर सकू"
उसने कहा - "कोई बात नहीं दोस्त" फ़ोन काट दिया
मुझे इंसानियात का सच्चा एहसास हो रही थी, मेरे चेहरे पर ख़ुशी और दिल में इंसान का मतलब पनप रही थी। ये सब कमाल था जो मेरे साथ हूँआ।