Raunak Singh

Tragedy

4.5  

Raunak Singh

Tragedy

बेबस

बेबस

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अंतर आत्मा मेरी आज भी हर वक़्त मुझे एहसास दिलाती रहती है की मैं एक कमज़ोर और हारा हुवा इंसान हु मेरा इस दुनिया में वज़ूद ही नहीं है, क्या हारा हुवा इंसान होने खुद के लिए बुरी बात होती है ? मैं क्यों हारा, किसके लिए हारा और मैं क्यों हारना चाहता था| 

सिगनल जैसे ही लाल हुई मैंने अपनी मोटर साइकिल रुका दी, गहरी सांस ली और सिगनल के हरे होने का इंतज़ार करने लगा तभी एक औरत मेरे सामने आ गयी और बोलने लगी 

ऐ राजू, देना रे 

मेरे चिकने, मेरे हीरो 

देना रे 

मैंने अपने जेब में हाथ डाला तो कुछ चिल्लर हाथ आये और उसे निकाल कर मैंने उसे दे दिया, उसने सर पर हाथ रखा और आशीर्वाद सा दिया और चली गयी 

ये पल कुछ अलग था, किसी के लिए कुछ अच्छा करने का एहसास ही एक असली हीरो होने जैसा एहसास होता है, छोटी सी मुस्कान आयी चेहरे पर जल्द ही चली गयी क्यों की सिगनल हरा हो गया था और पीछे से गाड़ियों की हॉर्न आने शुरू हो गए थे, मैंने भी गाड़ी चालू की और निकल गया जैसे ही आधा रास्ता पार किया ही था की, अचानक से तेज़ रफ़्तार से एक एम्बुलेंस रास्ता पार करने लगी तभी मैंने गाड़ी का ब्रेक लगाया, चुकी मैं सामने था तो उस एम्बुलेंस को देख पाया पर मेरे पीछे से और स्कूटर आ रही थी जिसपर एक पिता और एक बेटी बैठी थी जिहोने जल्द बाज़ी में उस एम्बुलेंस को देख नहीं पाए और जाकर उससे टकरा गए।

एक एम्बुलेंस जो किसी की जान बचा रही थी आज उसी ने किसी की जान ले ली थी, चुकी एम्बुलेंस थी तो वो रुकी नहीं पर सारे लोग जमा हो गए, ये दृश्य मेरे आँखों के सामने हुवा की कैसे उस छोटी से बच्ची की जान चली गयी, हर तरफ अफरा-तरफी मच गयी और लोग कोसने लगे जो वो स्कूटर चला रहा था, पर किसी ने ये नहीं सोचा की क्या थोड़ी सी गलती उस एम्बुलेंस वाले की नहीं थी ?

हम एक ऐसे समाज में जीते जहाँ हर एक चीज पहले से निर्धारित है, जैसे नेता हमेशा झूठ बोलते है पर फिर भी हम ही उन्हें जिताते है। 

पुलिस वाले लोगो की रक्षा करते है पर उसकी कीमत भी देनी पड़ती है 

डॉक्टर्स भगवान का रूप होते है पर बिना बिल भरे लाश नहीं देते 

सरकार आम लोगो के हित के लिए काम करती है पर बिना रिश्वत दिए कोई काम नहीं होता। 

जब एक गरीब के मतदान का महत्व एक आमिर इंसान के बराबर ही होता है तो आमिर-गरीब में फ़र्क़ करता कौन है? सच्चाई ये है की फ़र्क़ हम खुद ही करते है, दुसरो से कम खुद को आंकना, हारने की पहली निशानी है, बिना खेले तो कोई खेल ख़तम नहीं हो सकता पर अगर खेलने से पहले हम ये सोच ले की हम हारने वाले है तो हार पक्की है। 

मैंने खुद को रोक नहीं सका और अपनी गाडी उस एम्बुलेंस के पीछे ले ली और उसका पीछा करने लगा, मुझे आज जानना ही था की सच में उस एम्बुलेंस के अंदर कोई मरीज़ था जिसे तुरंत उपचार की ज़रूरत थी या वो किसी मरीज़ को ले जाने के लिए इतनी जल्दी में था अगर उस बेटी को इन्साफ मिल जाए तो इससे अच्छी कोई बात नहीं हो सकती, एम्बुलेंस अपनी तेज़ रफ़्तार से कई रास्ते को पार करती रही और मैंने भी उसका पीछा नहीं छोड़ा कुछ मिल जाने के बाद एम्बुलेंस की रफ़्तार कम हो गयी और फिर कुछ दुरी के बाद एम्बुलेंस रुक गयी, ये देख मुझे एहसास हो ही रहा की शायद किसी मरीज़ को वो लोग लेने के लिए इतनी जल्दी में थे। 

पर ऐसा नहीं था, उसमे से २ लोग उतरे और बगल में लगी चाय की दूकान से चाय मंगवाया दोनों खड़े खड़े ही चाय पिने लगे, अब मेरे लिए समझना ज्यादा मुश्किल नहीं था की इस एम्बुलेंस को कोई जल्दी नहीं थी बस वे लोग उस सिगनल को तोड़ आगे बढ़ना चाहते थे। क्या चाय पीना उनके लिए इतना ज़रूरी था की उन लोगो ने एक मासूम बच्ची की जान ले ली और वहा उतरकर देखा तक नहीं की वो बच्ची ज़िंदा है मर गयी। मन कर रहा था की उन्हें अभी जाकर कूट दू पर इससे उस बच्ची को इन्साफ नहीं मिलता, मैंने गाड़ी घुमाई और उस इलाके के पुलिस स्टेशन चला गया।

जैसे ही मैं पुलिस स्टेशन पहोचा तो देखा की वो बाप अपनी बेटी के इन्साफ की गुहार लगा रहा है पर २ पुलिस वाले उसे ही चिल्ला रहे है, पुलिस वालो ने एक बार भी नहीं सोचा की की शायद गलती उस एम्बुलेंस वालो की भी हो सकती है पर हम तो बहोत ही सभ्य समाज में जीते है जो पहले से ही निर्धारित है।

पुलिस स्टेशन बोली लगाने वाले घोड़ो की रेस ज़्यादा कम नहीं लग रही थी, उसमे से एक पुलिस वाले ने कहा "कोई FIR नहीं होगी " तुम अस्पताल जाओ और अपनी बेटी की लाश का अंतिम संस्कार कर दो, हमारा वक़्त बर्बाद मत करो, हमे और भी बहोत सारे काम है, चलो निकलो यहाँ से और दोबारा यहाँ मत आना वार्ना तुझे अंदर बंद कर देंगे"

ये देख मेरे अंदर के विवेक ने जवाब दिया,अब बस ! एक पिता को उसकी बेटी लिए इन्साफ माँगने का पूरा हक़ है, उस छोटी सी बच्ची की तस्वीर मेरे आँखों के सामने बार बार आ रही थी। मैं उनके सामने जाकर खड़ा हो गया और कहा "आप लोग इनकी FIR क्यों नहीं लिख रहे है ?" आप लोगो ने एक बार भी नहीं सोचा की हो सकता है की थोड़ी सी गलती उस एम्बुलेंस वालो की भी हो ? 

उसमे से एक पुलिस आने कहा "तू है कौन और तुझे अंदर आने दिया किसने " 

मैंने कहा - मैं वो हु जिसके सामने ये एक्सीडेंट हुवा, मैंने देखा कैसे उस एम्बुलेंस वाले ने इनकी छोटी सी बच्ची की जान लेली, एक छोटी सी बच्ची को रौद कर चला गया और वहा से ऐसे गुजर गए जैसे उन्होंने कुछ किया भी नहीं है, वो एक कातिल है " आप लोग इनकी FIR लिखने के बजाय, इन्ही को धमकी दे रहे है "

पुलिस वाला - तुझे कैसे पता की उन्होंने ने जान भुझ कर ऐसा किया है, तुझे तो पता होगा ना की हर एक एम्बुलेंस को रास्ता देना हर एक शख्स की ज़िम्मेदारी है ?

मैंने कहा - बिलकुल है, पर तब जब उसमे कोई मरीज़ हो या किसी मरीज़ को जरुरत हो, ना की चाय पिने के लिए 

पुलिस वाला - तू कहना क्या चाहता है 

मैंने कहा - मैंने उस एम्बुलेंस का पीछा किया ताकि पता कर सकू उन्हें इतनी जल्दी क्यों थी ? या बस रास्ता पार करने के लिए उन्होंने ने ऐसा किया, जिससे एक छोटी सी बच्ची की जान चली गई 

पुलिस वाला - फिर ?

मैंने कहा - कुछ दूर तक पीछा करने के बाद वो एम्बुलेंस एक चाय की दूकान पर रुक गई और चाय पिने लगे, मुझे लगा की शायद मरीज़ को लेने का इंतज़ार कर रहे है पर ऐसा नहीं था, करीबन वे लोग आधे घंटे तक वहां रुके थे फिर वहां एम्बुलेंस लेकर चले गए, मैंने फिर से उनका पीछा किया, फिर कुछ मिल जाने के बाद एक अस्पताल के पार्किंग में उन्होंने वो एम्बुलेंस लगा दी। इसका मतलब तो यही होता है ना की उन्हें कोई जल्दी नहीं थी ?

पुलिस वाला - कौन सा अस्पताल था वो 

मैंने कहा - सर्वोदय अस्पताल 

पुलिस वालो ने जैसे ही वो नाम सुना दोनों कमरे के बहार निकल गए फिर दोनों अंदर आये और मुझे और उस आदमी को लॉक उप में बंद कर दिया और सारी रात अलग अलग पुलिस वालो ने हमे खूब मारा।

२ दिन बाद हमे छोड़ दिया, और कहा "अगर तुम लोगो ने फिर से इन्साफ मांगने की कोशिश की तो उससे भी बुरी हालत करेंगे।

हम दोनों वहां से निकले तो पीछे से एक हवलदार आया और बोला "तुम लोगो को पता है तुम लोगो की ये हालत उन्होंने क्यों की?, क्यों तुम्हे बिना मतलब मारा गया ? क्योंकि जिस अस्पताल का नाम तुमने अंदर लिया थी वो इस शहर के कमिशनर के बीवी का है।"


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