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आज राजू और उसका मासूम भाई दीनू एक समारोह के द्वार पर, फिर दरबान का वेश धर पुतले बने बड़ी देर से खड़े है।
उनके यूँ निर्जीव पुतले की भांति खड़े रहने से, वे सहज ही सभी के आकर्षण के केंद्र थे।
लोग उनके समीप आकर मसखरी कर रहे थे और कुछ बच्चे उनके साथ सेल्फी ले रहे थे।
अपने पिता की असमय मृत्यु व माँ के गंभीर बीमारी से पीड़ित होने से, वे यह सब सहते हुए भी चुपचाप खड़े थे।
पर जब रात और अधिक गहरा गई,व समारोह के काफी महमान घर जा चुके थे।तब मासूम दीनू ने उसके बड़े भाई राजू से कहा।
भय्या बड़ी देर से जोरो की भूख लग रही है,और फिर इस उघाड़े बदन पर, ये हाड़ कपाती ठंड भी अब बर्दाश्त से बाहर है।
तब राजू ने उसे धीरज बंधाते हुए कहा,बस कुछ ही देर की बात है दीनू। फिर देखना हमे भी स्वादिष्ट खाना और मजदूरी, दोनों ही भरपूर मिलेगी।
और उन पेसो से हम अपनी माँ के लिए दवाइयां भी खरीदेगें।तू बस धीरज रख मेरे भाई,और देखना भगवान एक दिन सब ठीक कर देंगे।
फिर कुछ पल वहां लगी मूरत को निहार, दीनू ठंड के मारे कपकपाते हुए बोला।
पर कभी कभी तो मुझे लगता है कि कहीं यहां ये भगवान भी हमारी ही तरह, केवल एक निर्जीव बुत बना ही तो नही खड़ा है।
