बुरा न मानो .. होली है
बुरा न मानो .. होली है
आज। उसकी ऑखो मे होली का खुमार छाया हुआ था। वह सारे हथियार लेकर सड़क समर पर उतरा था। उसने आलमारी के सबसे नीचे वाले आले से पिछले साल की पुरानी। मटमैली जींस व शर्ट निकाल कर पहनी थी। पूरे शरीर पर कसकर कड़वा तेल रगड़ा था। शर्टकी पॉकेट में मोबाइल को पन्नी में डाला। जींस की बायीं पाॉ केट में गुब्बारे थे ' दायी पॉकेट में डिब्बी वाला गहरा रंग । पीछे की पॉकेट में उसने गुलाल रखा और नाश्ता जैसे तैसे निपटाकर हाथ पहनी हुई शर्ट से पोछकर माँ को जाने का बताया और सड़क पर निकल आया।
सुबह के साढ़े नौ बजे थे। बाहर सन्न सा सन्नाटा फैला हुआ था। -। ' न कोई तेज आवाज़ मे रंग बरसे भीगे। या खईके पान बनारस। जैसा , कोई गाना बजरहा था। न कोई हुड़दंग करती कोई टोली दिखरही थी। इतनी शांति तो होली खेलने की समाप्ति। केसमय भी न होती ।
पर ' उसे होली खेलनी ही थी। तभी पास से दो रंगसे भरे लड़को को बैठाए ' एक बाईक निकली। उसका मन किया। आवाज़ दे , रुको '। मुझे भी लेचलो या कमसे कम रंग लगवा लो या मुझे रंग से सराबोर कर दो।
फिर उसने देखा दोलड़के एकदूसरे को पकड़ कर बुरीतरह से रंग पोत रहे है ' कुछ लम्बे बड़े लड़के ने दूसरे वाले को पकड़ कर सड़कपर लिटाया खुद उसके ऊपर चढ़ गया और पैकेट का बचा हुआ पूरा रंग उसके सिर पर झाड़ दिया। इतने में लेटे हुए लड़के ने करवट पलटी और उसलम्बे लड़के को गिरा सरपट भागते हुए गली में घुस गया। उसने भी दौड़ लगा दी कि बचे हुए दूसरे लड़के को तो वह पोतेगा पर जैसे ही दौड़ कर वह उसके पास पहुंचा वह लड़का सीधा खड़ा हो उसे ऊपर से नीचे की ओर देखने लगा, वह भीतर से डर गया। हकलाते हुए पूछ बैठा '। यह सड़क कहाँ जाती है ?। वह घूरते हुए आगे निकल गया। वह कोरोना के डर से सुनसान पड़ी सड़क पर चलता रहा। ग्यारह। साढ़े ग्यारह बजने को आ रहे थे , उसने चारो दोस्तों को फोन लगाया दो ने साफ़ मना कर दिया। एक बरेली मामा के यहाँ गया था दूसरे को बुखार था।
उसे होली खेलनी थी पर कैसे? उसकी उदासी बढ़ रही थी वह मायूस हो चला था पिछले साल सबने होली खेली किंतु वह स्मार्ट बना घर में पढ़ रहा था , आज उसकी हिम्मत बेकार जा रही थी ' बारह बजने वाला था ' उसे जी भर कर होली खेलनी ही थी। ऊंह। वह इतना साफ़ घर नहीं जा सकता ?
उसे सामने एक दुकान का सफेद बंद शटर दिखा। उस की ऑखें चमक उठी।
नयी दुकान का ताजा पेंट। उसने दाँतों से होठ दबाया। शैतानी दिमाग में गोल गोल घुमी।उसने पास पड़े कूड़ेदान को खाली किया। सामने रखी टंकी से पानी भर रंग मिलाया। वही पास पड़ी बोतल में रंग भरा और छपाक '। छपाक। छपाक उसने शटर पर रंग फेंका फिर सूखे रंगको हाथ पर मला और जी भर के सारा आर्ट का हुनर शटर पर निकाला कोई आधा घंटे अलग अलग रंग से कारीगरी करनेके बाद उसने कुछ गुब्बारे रंग से भरे और पूरी ताकत लगाकर शटर पर दे मारे। अब। उसे थकान सी लग रही थी। उसने कूड़ेदान में थोड़ा पानी डालकर हिलाया और अपने ऊपर उड़ेल दिया फिर इधर उधर देखा सूखे रंग से भरे हाथों पर टंकी से थोड़ा पानी डाला और माथे। गाल। गले से होता हुआ शर्ट से जींस तक हाथ का रंग पोछा। जींस की पॉकेट को बाहर कर खाली किया। एक पैकेट में रंग बचा था। उसे भी सिर के ऊपर खंगाला। कूड़ेदान व बोतल को लात मारी। शटर की ओर मुड़ा
गीले रंगो पर ऊंगली घुमा कर लिखा
बुरा न मानो। होली है
और, विजयी मुस्कराहट लिए गाना गाते हुए घर की ओर मुड़ चला।
होरी खेलन रघुबीरा अवध में।
