Shaili Srivastava

Romance

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Shaili Srivastava

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बुजुर्ग जोड़े की प्रेमकहानी ...#SMBoss (Task5)

बुजुर्ग जोड़े की प्रेमकहानी ...#SMBoss (Task5)

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...'क़ब्र में अकेले करवटें बदलते-बदलते कितना वक़्त गुज़र गया,पता ही नहीं चला !', आयशा अपने शौहर शाहनवाज़ से एक गहरी सी साँस लेते हुए बोली। कुछ देर तक तो शाहनवाज़ कुछ भी न बोले पर, आख़िरकार बोल ही पड़े कि, 'इसमें गलती किसकी है बेग़म ? सरासर तुम्हारी ही है, जो तुमने हमारे बड़े साहबज़ादे के घर छोड़ने का ज़िम्मेदार, हमें न माना होता तो, हम दोनों के बीच जो तक़रार हुयी वो हरगिज़ न हुयी होती, न तुम हमसे इस कदर ख़फ़ा होतीं कि हमें बुढ़ापे में शर्मिंदा करके, बिल्कुल अकेला छोड़कर, हमारी छोटी साहबज़ादी, सकीना के साथ न चाहते हुए भी चली न गयी होतीं तो हम दिल के मरीज़ न होते और तुम्हारी गैरहाज़िरी में दिल के दौरे से अल्लाह मियां को प्यारे न हुए होते और तुम हमारे ख़ाक में मिलने की ख़बर पाते ही, मारे सदमे के दम न तोड़ बैठतीं।'  

बेग़म, १४ साल की थीं, जब पुत्तन चचा की बड़ी लड़की की शादी में तुम्हें सुर्ख़ हरे जोड़े में पहली बार देखा था...हाय ! क़यामत लग रहीं थीं क़यामत ! खाला ने जब देखा कि हमारा खाना-पीना तक छूट गया है और जान पर आ बनी है तो उन्होंने अब्बा को मनाकर हमारा निक़ाह तुमसे करवा दिया था। पूरे २ महीने नगीनों की दुकान पे कदम तक नहीं रखा था बस तुम्हारे ही क़दमों तले जन्नत समझकर रात-दिन पड़े रहते थे फ़िर तुम्हारे ही कहने पर जाना शुरू किया था, याद है कि नहीं ?...'अज़ी, सब याद है ! जानते हैं ? हम कभी ३-४ दिन से ज़्यादा अपने पीहर में नहीं रुके ! सिर्फ़ आपके कारण, ये सोचकर कि, हमारी ग़ैरहाज़िरी में आपको वक़्त पे चाय-नाश्ता कौन देगा ? शाम को आपसे, घर लौटने पर दिन भर के नफ़ा-नुकसान के किस्से-कहानियाँ कौन सुनेगा और हाथ-पैर कौन दबायेगा ? आप तो चल पड़ेंगे, वही गन्दा पजामा डालकर काम पर, और मज़ाक़ बनवायेंगे हमारा कि, बीवी के आ जाने पर भी ज़नाब इस तरह काम पर तशरीफ़ लाते हैं ! हमने अपने पीहर में, जल्दी वापस, ससुराल आने के लिये, इतना झूठ बोला कि, क्या बतायें और क्या न बतायें ? पर, अल्लाह गवाह है, सब आपकी ख़ातिर। बस, अपने इकलौते बेटे से थोड़ी सी मोहब्बत क्या कर ली ? उसकी तरफ़दारी क्या कर ली ? आप तो अपने होश खो बैठे, और उसे तो घर से बाहर निकाला तो निकाला,साथ ही हमें भी घर से जाने को आसानी से कह दिया ! '

...'आख़िर, आपका ही ख़ून था, इतने ज़ल्लाद कैसे बन गये थे आप ?'...'आयशा, बेग़म अब जाने भी दो, माफ़ कर दो, और हाँ, अब क़ब्र में अकेले-अकेले करवटें नहीं बदलेंगी आप, गुस्सा थूक दीजिये, हम बुला रहे हैं आपको, आपके शौहर, शाहनवाज़ ! हमारे ही साथ, हमारी ही कब्र में, रहिये। हम, ख़ुदाकसम जन्नत में भी न जायेंगे, आप आ जायेंगी तो हमारी क़ब्र ही हमारी ज़न्नत बन जायेगी।

...आयशा, अब क़ब्र में एक पल भी न रुक सकी और चल पड़ी अपने शौहर के पास, मोहब्बत की ख़ातिर। आमीन !              


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