Shaili Srivastava

Others

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क्या आप अकेले हैं ?

क्या आप अकेले हैं ?

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पिछले 8 - 9 दिनों से मैं सार्वजनिक रूप से अकेली रह रही हूँ और सामाजिक रूप से तो एक अकेली औरत के रूप में पूर्व ही परिभाषित की जा चुकी हूँ । एक ऐसी अकेली औरत जो बिना पति, बच्चों आदि के मज़बूर होती है या तो अपने पीहर व पीहरवालों और या फिर न चाहते हुए भी, अन्य कहीं - अन्य किसी के साथ - अन्य किसी और तरीके से रहने को, मेरा इशारा आप समझ रहें हैं न ?

खैर, महज़ कुछ दिनों की बात और है फिर मेरे लोकल गार्जियंस यानी कि चाचा - चाची आ जायेंगे तो पुन: परिभाषा बदल जाएगी ! मगर इस तन्हाई ने मुझे आज कुछ सोचने पर आमदा कर दिया कि 'रहना और जीना' क्या है ? 

अकेले रहने वाले को लोग कहते हैं कि भाई अकेले रह रहे हो क्या बुराई है ? मज़े में जी रहे हो, कोई चिंता नहीं है...आदि - आदि । मगर, रहने और जीने में बला का अंतर होता है। जितना मैंने ज़िंदगी को समझा है, और जैसा कि ज़िंदगी ने मुझे बार - बार समझाया है वो ये है कि - "रहते हम समाज के साथ और जीते अपने साथ हैं", ये मेरे ख़्यालात हैं आपकी अपनी एक अलग परिभाषा हो सकती है । 

बचपन में और सभी लोगों की तरह मैं भी अपने प्रिय माँ - बाप के हमेशा साथ ही रही। और, अभी भी रह रही हूँ ! मगर, तब साथ रहने पर भगवान का साक्षात् सामने न आना कभी नहीं खला और अब भी वो सामने नहीं आते बस सीमा पर तैनात प्रहरी की पत्नी की तरह उनकी तस्वीरों को देख-देखकर अपना काम चला लेती हूँ। वो थे पहले भी मेरे साथ, अब भी मेरे साथ ही हैं और आगे भी सदा साथ ही होंगे तब भी, जब मेरे माता - पिता नहीं होंगे ! 

मगर, हम मूढ़ लोग भला क्या जाने कि -"जब भी हम घोषणा करते हैं, एकांत की, एकाकीपन की, परम - पिता परमेश्वर सदा हमारे साथ ही होते हैं । कण-कण में मौजूद समय के एक - एक पल में रचे - बसे ! " अब ये मत कहियेगा कि अकेले में क्या रखा है ? क्या आप जानते हैं कि "अकेले रहना एक मज़ा भी है और सजा भी।" ज़नाब, यक़ीन मानिये, अकेले में ही तो हसीन मौके हाथ लगते हैं, इंटरनेट पर सेक्सी क्लिप्स या यू - ट्यूब पर सेक्सी ट्रेलर्स देखने के! 

अरे ! शर्माइयेगा नहीं, सब लुत्फ़ उठाते हैं इन मसालेदार पकवानों का चाहे किसी का पेट भरा हो या कोई भूखा हो। अजी मन ही नहीं भरता ! क्या करें ? क्या जवानी की दहलीज़ पर बढ़ते कदम और क्या कब्र में लटके हुए पैर ! ये शानदार मौके मिलते हैं हमें तब, जब हमारे साथ सिर्फ़ हमारे नापाक इरादे होते हैं, कोई और नहीं होता।

 अगर, आपको भी मेरी तरह मध्यमवर्गीय मोहल्ले में रहने को मिला है तो यक़ीनन आपको भी अकेले होने के स्वर्णिम अवसर पर घर पर महज़ इसी से दिल बहलाना पड़ता है क्योंकि आप तो अपनी जान में अकेले हैं पर इस समय आपके आस - पास के लोग आपके पक्के सगेवाले बन जाते हैं और पूरी चौकसी रखते हैं आपकी गुप्त गतिविधियों और संदिग्ध क्रिया - कलापों पर और आपको बिलकुल इससे ज्यादा करने का मौका नहीं देते...मैँ दावे से कह सकती हूँ कि आपको आपके मोहल्ले वाले बिल्कुल अकेले रहने ही नहीं देंगे…ख़ामख़्वाह कहते हैं कि अकेले हैं !

 चलिए, पर्दा डालते हैं इन सब परदे वाली बातों पर, रात को सोते वक़्त तन्हाई का अहसास और भी बढ़ जाता है, मानते हैं न ? मगर, सावधान ! कभी भूलकर भी ठंडी - ठंडी आहें नहीं भरिएगा कि आप अकेले सो रहें हैं । आप नहीं जानते कि उस तन्हाई के आलम में आपको अपनी बाँहों में लेने को मचल जाते हैं वो सभी कल्पित - अकल्पित भूत - प्रेत, सोये हुए झुंझलाए हुए अतृप्त पूर्वज, अतीत के सहमे से - सिसकते हुए अपराध बोध, भविष्य के कुछ काले - कुछ सुनहरे से धुऐं के गुबार, अब तक की हमारी तमाम शर्माती हुई - लुकती छिपती नाकामियां, अपनों - परायों की व्यक्तिगत - सामूहिक व्यंगोक्तियां, शेख - चिल्ली नायक बने हुए हम और हमारे दुनिया फ़तह करने के जुनून ! अकेले में किये गए या सोचे हुए सब कुकर्म - कुविचार और उनका फल भुगतने का डर, चोर - डाकुओं की अनचाही - आकस्मिक डगमगाती आहटें, पीठ दिखाकर आत्म-बलिदान करने उर्फ़ आत्महत्या का जज़्बाती ख़्याल और इन सबसे परे अकेले में अकेले होने का हमारा डर हमें और भी अकेला बना देता है ! ये निहायत बेबुनियादी ख़्याल है, ख़ुदा के वास्ते फ़ौरन अपने दगाबाज़ दिल और दकियानूसी दिमाग़ से निकाल दीजिये - आप न तो पूरी तरह तन्हा हो सकते हैं और न ही बिल्कुल अकेले !

माने या न माने मगर आप के साथ हैं पहले आप खुद, फिर आपका ख़ुदा और उसके बाद आपकी वो दास्ताँ जिसके कुछ पन्ने  आपने लिखे हैं और कुछ उस ऊपरवाले ने जो आप नहीं जानते - शेष सभी जो कुछ भी अकेले में आपके साथ होता है वो सब आप ही के गर्भ से उत्पन्न हुआ होता है - "माँ के गर्भ से केवल शिशु का जन्म होता है और मानव के गर्भ से उन सभी साकार - निराकार अस्तित्वों का जिनमें कि वो पूर्ण आस्था रखता है।"

 अत:एव न मैं अकेली हूँ और न ही कभी आप होंगे ? 

किसी ने क्या खूब कहा है और सौ फ़ीसदी सच ही कहा है कि "हम सब सबसे ज्यादा अकेले तो भीड़ में होते हैं अकेले में नहीं !"



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