बसंत
बसंत
देखो सखी...
बसंत का रंग कैसे खिल रहा है तुम पर,
तुम्हारी मुस्कान में.... तुम्हारी सुरमई आँखों में,
कैसे समाहित हो रहा है ये बसन्त...
तुम्हारे चेहरे का बन तेज तुम पर छा रहा है ये बसंत...
तुम्हारे माथे पर बन सिंदूरी सूरज अपना तेज बिखेर रहा है ये बसंत...
तुम्हारे गुलाबी गालों पर रंग इश्क़ का चढ़ा रहा है ये बसंत...
तुम्हारे पाँव में बन पाजेब कैसे घुंघरू सा बज रहा है ये बसंत...
इस बसंत की बहती पुरवाई में उड़ती जुल्फ तुम्हारी, मेरे चेहरे पर बिखर रही है...
ये बसंत तुम में समा कर और भी खूबसूरत लग रहा है...!