Satyawati Maurya

Drama

5.0  

Satyawati Maurya

Drama

ब्रेनडेड

ब्रेनडेड

3 mins
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आज सुबह बहुत दिनों बाद ख़ुशी -ख़ुशी डॉ. सुदेश अपनी पत्नी डॉ. अंजली और छः माह की बिटिया नेहा के साथ शहर से कुछ दूर एक सम्मान समारोह में शामिल होने गए थे। गाड़ी चलाते हुए एफ. एम. पर गाना सुनते और साथ में गुनगुनाते भी जा रहे थे। पत्नी गोलमटोल सी बिटिया को गोद में लिए ख़ुद भी गुनगुना रही थी और बीच- बीच में पति को कनखियों से देख भी रही थी।


अचानक एक ट्रक विपरीत दिशा से, बिल्कुल सामने से आता दिखा। डॉ.सुदेश ने पूरी कोशिश की कि कार को दूसरी तरफ़ हल्का सा मोड़ देकर बचा लें, पर धड़ाम की आवाज़ के साथ कार कई फुट ऊपर को उछल कर दूर जा गिरी।


दोनों प्राणी बहुत ज़ोर से चिल्लाए "नेहा" दोनों दम्पति चोटिल हो गए थे। डॉ.सुदेश को तो कुछ देर में होश आया गया, पर पत्नी को कमर में ज़्यादा चोट लगी थी और वे बेहोश भी थीं। आसपास के लोगों ने मदद की और तीनों को अस्पताल पहुँचाया गया। 


डॉ सुदेश की मरहम पट्टी की गई। अंजली की चोटों को साफ़ करके दवा लगा दिया गया। डॉक्टर उनके होश में आने की प्रतीक्षा कर रहे थे। बच्ची नेहा को बहुत ज़्यादा चोटें आई थीं। कुछ देर तक तो लगातार रोती रही फिर बेहोश हो गई। अस्पताल की तात्कालिक चिकित्सा से अंजली को होश आ गया। पर अपना दर्द भूल वे सब नेहा के लिए चिंतातुर थे। वह अभी भी जीवन मृत्यु से जूझ रही थी। कई घण्टे बीते पर उसे होश नहींं आया। आख़िर डॉक्टरों ने भारी मन से बताया आपकी बच्ची 'ब्रेन डेड' है। दोनों पर जैसे तुषारापात हो गया।


पर दोनों डॉक्टरी पेशे से थे तो इस परिस्थिति को अच्छी तरह जानते थे। दोनों ने समय की नज़ाकत को समझा और दृढ़ निश्चय कर डॉक्टरों को बताया कि, "हम नेहा के अंगों का दान करना चाहते हैं"


इसके पीछे बस एक ही चाहत थी कि हमारी बच्ची जीवित रहे, भले किसी और के शरीर में ही सही। किसी और को जीवन देने का भी भाव था इसमें।


इधर अस्पताल को बच्ची को 'ब्रेनडेड' है, का प्रमाण देने में ही कई घण्टे लग गए। डॉ सुदेश ने सरकारी तंत्र से गुहार लगाई पर उन्होंने भी ख़ूब वक़्त लगाया।


इसी बीच वेंटीलेटर पर चोटिल देह के साथ बच्ची के चार दिन बीत गए। फिर नन्हीं -सी जान को एक कार्डियेक अरेस्ट आया और उसने इस संसार से उसकी आख़िरी साँस भी छीन ली।


अपनी प्यारी बिटिया को अंगदान के द्वारा ज़िंदा देखने की आस ने डॉक्टर दम्पत्ति को जहाँ नया दृष्टिकोण और बल मिला था, वहाँ सरकारी तंत्र की जटिल प्रक्रियाओं ने एक नेक इरादे पर रोक लगा दी थी। इतने साल बीत गए पर आज भी उनके मन में यही विचार कौंधता है कि आख़िर 'ब्रेनडेड' कौन था?



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