बोलो
बोलो
वैसे तो मैं ज्यादा ग़ौर नहीं करता हूँ पर उस दिन जाने क्या हुआ। एक मुस्कान पर ऐसी नज़र पड़ी कि जब तक वो हँसी नहीं फिर से, मैं बस उन्हीं होठों को देखता रहा।
एक टक, जैसे वक़्त बिना इजाज़त के रूक सा गया हो।
मैं ख़ुद ही इस सोच में ठहर गया की ख़ुदा भी कम नहीं, जिसे उम्र भर लगा की यह इश्क़ मोह्ब्बत उसके लिए नहीं बनी, उसे भी आज कोई अंदर तक हिला गया।
क्या तुम ही थी वो, जिसके लिए मुझे अब ख़त लिखने होंगे ?
बोलो !

