कॉफ़ी
कॉफ़ी
कॉफ़ी अगर दुनिया में अच्छी बनती है तो वो सिर्फ फ्रेंच प्रेस है। मैं यह नहीं कह रहा हूँ की बाकि कोई कॉफ़ी अच्छी नहीं होती पर इसका मतलब यह नहीं की हम फ्रेंच प्रेस को तवज्जो न दें पर जिस तरह फ्रेंच प्रेस को बनाया जाता है, 4 मिनट पानी में बीन्स को रखना, फिर ऊपर से फ़िल्टर दबा के कॉफ़ी छानना। इतनी तहज़ीब की लगे कहीं लाहौर की इजात तो नहीं यह कॉफ़ी। फिर जो एक हल्की-हल्की मीठी महक आती है उसका कोई जवाब नहीं।
तो मैंने आख़िर मैं मेरी पसंद का ही ऑर्डर दिया। आज मैं अपनी पहली डेट पे आया हूँ। मिलने की जग़ह हर डेट की तरह एक कैफ़े चुनी गयी। मुझे तो वैसे भी कॉफ़ी से ख़ासा प्यार है पर आज कॉफ़ी कैसी होगी इसमें मन नहीं लग रहा। आधा ध्यान तो शर्ट को सिलवटों से बचाने में है बाकि ध्यान उस कैफ़े के दरवाज़े पर लगा है।
यह कैफ़े भी बहुत अजीब जगह है। लोग यहाँ इसीलिए नहीं आते की आराम से बैठ कर कोई बढ़िया सी कॉफ़ी की चुस्कियां लें। कैफ़े ऐसी जगह बन चुकी है जहाँ या तो आपकी पहली मुलाकात होती है या आखिरी। मैं आज थोड़ा ख़ुशनसीबी में हूँ की मिलना है।
साढ़े चार हो गये हैं, मिलने का वक़्त चार बजे तय हुआ था। वैसे आज ट्रैफिक थोड़ा ज्यादा ही था और फिर इंतज़ार का ही तो मज़ा है।
हमारी जान पहचान वैसे ही हुई जैसे बाकी दुनिया की होती है पर यह इंटरनेट की दुनिया मुझे थोड़ी कम भाती है | एक दिन मेरी लिखी हुई कविता पर किसी अनजान का कमेंट आता है, वो भी एक दूसरी कविता में। उस दिन के बाद से आधी बातें तो कविता और शायरी में ही चली। फिर एक दिन मैंने भी पूछ ही लिया "कॉफ़ी ?" जवाब आया "कहाँ ?"
पौने पाँच हो गए हैं, अब तो शाम भी दस्तक देने लग गयी है।
दूसरी फ्रेंच प्रेस टेबल पर आ चुकी है। मैं वैसे तो इतना बातों में भरोसा नहीं रखता पर अच्छा यह हुआ की वही ज्यादा बातूनी निकली। कभी भी किसी मैसेज का इंतज़ार नहीं करना पड़ा, कभी कभार तो लगता था की उस तरफ कोई मशीन तो नहीं बैठी।
यही सोचते सोचते मेरी नज़र दरवाज़े पर पड़ी, बालों को खोल रही और गेट को अपने पाँव से धक्का सा दे रही वो बेवक़ूफ़, मुझे देखकर हल्की सी मुस्कुरा तो रही है पर शिकन भी नहीं छुपा पा रही। आज मेरी पहली डेट है या इंटरव्यू कुछ समझ नहीं आ रहा।
अरे शर्ट तो चेक कर लूँ।

