बोझ
बोझ
"नितिन ए नितिन पानी दे दो थोड़ा, नितिन कहाँ हो बेटा बहू ?.....
ए जी , नितिन के पापा आप हो क्या गर्मी से गला सूख रहा है थोड़ा पानी दे दो ,,"
उर्मिला जी विस्तर पर पड़े पड़े अपनी टूटी फूटी आवाज में चिल्ला रहीं थी पर कोई उसकी आवाज सुन ही नहीं रहा था " शायद सब बिजी होंगे " ये सोचकर उर्मिला जी ने खुद को घसीट कर अपनी व्हील चेयर पर बैठना चाहा तो उनका बैलेंस गड़बड़ा गया और वो बेड से औंधे मुँह गिर पड़ी तो उनके मुँह से चीख निकल गई जिसे सुनकर सभी अपने अपने कमरों से निकल कर आ गये और उसे गिरा हुआ देखकर नितिन और उसके पापा ने उसे उठाकर ऊपर लिटाया बहू कामिनी जल्दी से पानी ले आई। अभी उर्मिला जी अपने इतने अच्छे परिवार के लिये खुश हो ही रहीं थीं कि नितिन के पापा की गुस्से से भरी आवाज गूंजी.........
"जब नहीं उठ बैठ पाती हो तो क्यों कोशिस करती हो अभी कहीं और लग जाती तो एक और मुसीबत बढ़ जाती क्या तुम्हे पता नहीं है कि तुम्हे डॉक्टर के पास ले जाना कितना मुश्किल होता है? इतना भारी शरीर उठाये नहीं उठता।,,
"जी मैं तो पानी...............
तभी नितिन गुर्राया....... " पापा मम्मी को हमारी परेशानी से कोई लेना देना नहीं हैं। ये तो बस लेटे-लेटे सारा दिन चिल्लाती हैं इन्हे तो सारा दिन एक सेवक अपने सिरहाने चाहिये !",,
जब बेटा बोला तो बहू कहाँ चुप रहने वाली थी......
"हाँ पापा जी मम्मी जी की सारा दिन सेवा करके मैं भी थक गई हूँ अब अगर थोड़े दिन और ऑफिस के साथ इनकी जी हजुरी की तो इनके बगल में मेरा बेड भी लग जायेगा इसलिये मुझे कुछ दिन की सारे कामों से छुट्टी चाहिये मेरी सारी फ्रेंड्स ने गोवा जाने का प्लान बनाया है तो मैं भी उनके साथ जा रही हूँ तब तक आप लोग मम्मी जी की देखभाल खुद कर लीजिये या किसी नर्स को रख लीजिये।"
"अरे कामिनी,, ,,,,,, कामिनी पर मेरे ऑफिस में बहुत काम है। कामिनी,,,,,,,,,,
कहते हुये नितिन अपनी बीबी के पीछे हो लिया और नितिन के पापा एक हिकारत भरी नजर उर्मिला पर डाल वहाँ से चले गये बिना ये देखे कि उन सबकी बातों से आहत हो उर्मिला जी रो रहीं थी सभी को अपनी पड़ी थी उर्मिला जी के मन को समझने वाला वहाँ कोई नहीं था पहले ऐसा नहीं था पहले तो उर्मिला जी ही इस घर की धुरी थीं... ...
"उर्मिला मेरा रुमाल किधर है? मम्मी मेरी वो ब्राउन वाली फाइल किधर है? उर्मिला जल्दी नास्ता लाओ मुझे देर हो रही है। मम्मी आज मेरे दोस्त आ रहे है घर पर कुछ अच्छा सा बना देना।"
हर गृहिणी की तरह दिन भर घड़ी की सुई सी घूमती उर्मिला को कभी अपने लिये कुछ करने का समय ही नहीं मिलता था। पति बेटे और घर की सारी जरूरतों को पूरा करते करते कब सुबह से शाम हो जाती उर्मिला को पता ही नहीं चलता। एक दिन उर्मिला काम कर रही थी कि वहीं चक्कर खाकर गिर गई आनन फानन में नितिन और उसके पापा उर्मिला को डॉक्टर के यहाँ ले गये जहाँ डॉक्टर ने चक्कर आने की वजह ब्लडप्रेशर बढ़ा होना बताया और उर्मिला को दवाई के साथ अच्छा खान पियन सुबह की सैर के साथ बजन कम करने और खुदका ख्याल रखने की हिदायत दी। जिसे उर्मिला ने एक कान से सुन दूसरे कान से निकाल दी।
वैसे भी सुबह की भागदौड़ के बीच हम महिलाओं के पास खुदके लिये समय ही कहाँ होता है टेहलने जाने का। और हम महिलाओं में एक और आदत होती है अगर हमारे परिवार के किसी सदस्य को कुछ हो जाये तो हम उसकी सेवा में जमीन आसमान एक कर देते है पर अपनी सेहत के लिये हमेशा उदासीन ही रहते हैं यही उर्मिला जी ने किया जिसकी वजह से उन्हे आये दिन यहाँ वहाँ दर्द और थकान रहने लगी थी।
पर वो खुद पर ध्यान देने की वजह अपनी बहू लाने पर ज्यादा ध्यान दे रहीं थी और देती भी क्यों नहीं नितिन आखिर उनका इकलौता बेटा था जिसके लिये वो ऐसी घरेलू बहू लाना चाहतीं थी जो उनके बेटे के साथ इस घर को भी अच्छे से संभाल ले जिससे उनके ऊपर से जिम्मेदारियों का कुछ बोझ कम हो जाये। पर नितिन ने तो अपने ऑफिस में काम करने वाली कामिनी को पसंद कर लिया अब बच्चे की जिद के आगे किसकी चली है सो वर्किंग वुमेंन उसकी बहू बनकर आ गई तो उर्मिला ने भी एक अच्छी सास की तरह उसे उसकी पूरी आजादी दे दी और उसके हिस्से की जिम्मेदारी भी खुद ही संभाल ली।
उर्मिला जी सुबह से शाम तक घर के कामों में खटती रहती उनका शरीर उनसे चीख चीख कर आराम करने को कहता पर जिम्मेदारियां उन्हे पल भर आराम से बैठने भी न देतीं।उस दिन भी उन्हे सुबह से चक्कर से आ रहे थे पर पति, बेटे और बहू को ऑफिस जाना था तो कहीं उनका नास्ता उनका टिफिन लेट न हो जाये इसलिये वो अपनी तबियत को अनदेखा कर लगातार काम करतीं रहीं अभी वो पूरियाँ तल कर टिफिन में रख ही रहीं थीं कि न जाने क्या हुआ उनके बायें हाथ ने जो टिफिन पकड़ा था वो टिफिन उनकी बिना आज्ञा के छोड़ दिया और वो वहीं के वहीं टेड़ा हो गया अभी वो हाथ को सीधा कर ही रहीं थीं कि उनके पैर ने उनका बजन साधने से इनकार कर दिया और वो वहीं एक चीख के साथ गिर गई। और उनका दिमाग भी सुन्न हो गया।
तीन दिन बाद उर्मिला जी ने आँखें खोलीं होश में आते ही वो उठकर बैठ जाना चाहतीं थीं पर ये क्या उनके तो हाथ पैर काम ही नहीं कर रहे थे उन्होने बेबसी से नितिन और अपने पति की तरफ देखा उन्होने बताया.............
"उर्मिला ब्लडप्रेशर बढ़ने से तुम्हे पैरालाइज अटैक पड़ा है। जिससे तुम्हारा कमर से नीचे का हिस्सा और एक हाथ सुन्न हो गया है। पर तुम चिन्ता मत करो डॉक्टर ने कहा है कि दवाइयों से तुम बहुत जल्दी ठीक हो जाओगी।,,
ये सुनकर उर्मिला रोना चाहती थी कुछ कहना चाहती थी पर उसके मुँह से कुछ टूटे फूटे दो चार शब्दों के अलावा कुछ न निकला। रातों रात उर्मिला जी की स्थिति बदल गई थी। अभी तक सबकी जिम्मेदारियों का बोझा ढोती वो खुद सभी के ऊपर बोझ बन गईं थीं। औरत सभी को तभी तक अच्छी लगती हैं जब तक वो काम करती है बिस्तर पर बेजान सी पड़ी एक स्त्री सभी के ऊपर एक भार ही होती है । पर कहीं न कहीं उर्मिला जी को विश्वास था कि जब वो अस्पताल से घर जायेंगी तो उनका परिवार उन्हे संभाल लेगा।पर आज जो कुछ हुआ उसने उर्मिला जी को अंदर तक हिला दिया। रिश्तों के बीच जो सब कुछ ठीक होने या एक दूसरे को संभालने के विश्वास का जो पतला सा धागा होता है वो टूट गया था।
जिन सबके लिये उसने खुद की सेहत को नजरंदाज किया जिन सबको उसने खुदसे ज्यादा माना आज वो ही उसे बोझ मान रहे थे। उसके हाथ पैर चलना बंद क्या हुये सभी ने उसे अपने मन से दूध में पड़ी मख्खी की तरह निकाल दिया कितनी मतलबी है ये दुनिया।
उर्मिला जी ने कपकपाते हाथों से अपने आँसू पोंछे पर हाथों में जान न होने से आँसू पुछें ही नहीं न आँखों के और न मन के।
हम अक्सर खुदसे ज्यादा अपने घर परिवार का ध्यान रखते हैं जिसके चलते अपनी सेहत को ही नजरंदाज कर देते है पर याद रखना बहनों जब तक हमारा शरीर स्वस्थ्य है तभी तक लोग हमें पसन्द करेंगें जिस दिन उठने बैठने लायक न रहे हमारे अपने ही हमारी मरने की दुआ करेंगें। इसलिये सभी जिम्मेदारियों के साथ अपनी खुदके लिये जिम्मेदारी न भूले सबके साथ अपना भी थोड़ा ख्याल रखें।