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Medharthi Sharma

Drama Others

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Medharthi Sharma

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बंधन प्यार का

बंधन प्यार का

8 mins
74


अंजली जब से शादी होकर ससुराल में आई वह अपने मायके को भूल गयी। उसके पिता ने आशीर्वाद दिया था जा बेटी तुझे सुखी संसार मिले इतना प्यार और सम्मान मिले कि हमें भूल जाये।

उनका आशीर्वाद उसी समय सच होता दिखाई दिया जब उसने पहला कदम ससुराल में रखा था। हर उम्र के देवर और ननद थे। चार वर्ष से लेकर अठारह वर्ष तक। उसे बिल्कुल भी नहीं लगा कि वो ससुराल में आई है। देवरों और ननदों ने उसे उसी समय स्वीकार कर लिया।

उसके ससुर चार भाई थे। चारों के घर बराबर बराबर में थे। प्रेम और प्यार इतना कि लगता ही नहीं था कि अलग अलग हैं। इसके अलावा कुछ पड़ोसियों से परिवार जैसे संबंध थे।

उसके पति परिवार में सबसे बड़े थे। वह परिवार की पहली बहू थी। सास ससुर ने उसे बहू कम बेटी अधिक माना था। 

जब वो पहली बार आयी थी तो दिन भर महिलाओं से घिरी बैठी रही। सभी ने उसे अपार प्रेम दिया था। एक पड़ोसन महिला ने कहा था बेटी तू बहुत सौभाग्यशाली है। सास की तो खुशी का ठिकाना नहीं था।

कुछ बच्चे बार बार आ रहे थे। महिलाओं के पीछे खड़े हो जाते और चले जाते। एक महिला ने बच्चों से पूछ ही लिया क्या बात है। एक बच्चे ने कहा हमें भी देखना है भाभी को।

फिर क्या था उस महिला ने सबको बुला लिया। सारे बच्चे आये और सबने एक एक कर उसके पैर छुए और अंजली को घेरकर बैठ गए। जो सबसे छोटा था उसने ज़िद की मैं तो भाभी की गोद में बैठूँगा। अंजली को भी हँसी आ गयी। साथ ही सभी महिलाएं हँस दी।

सभी महिलाएं चली गईं तो सब बच्चों ने अपना परिचय देना शुरू किया।

भाभी मेरा नाम गोलू।

भाभी मेरा नाम सोनू।

भाभी मेरा नाम गोपाल।

भाभी मेरा नाम कान्हा।

भाभी मेरा नाम किशन।

भाभी मेरा नाम राहुल। ऐसे ही सबने अपना परिचय दिया।

बच्चों के बीच अंजली अपनी सहेलियों को भी भूल गयी। घर की याद नहीं आयी। 

किसी ने कहा भाभी तुम बहुत अच्छी हो। किसी ने दोस्ती करने को कहा। किसी ने पूछा भाभी अब तुम जाओगी तो नहीं। किसी ने कहा भाभी तुम हमारे साथ खेलोगी। अंजली ने जैसे ही हाँ कहा बच्चे खुश हो गए। ये ए ए ए भाभी हमारे साथ खेलेगी। एक बच्चे ने पूछा भाभी प्यास लगी हो तो पानी लाऊँ? अंजली उसकी मासूमियत पर मुग्ध हो गयी। उसने हाँ कहा तो वो दौड़कर पानी ले आया। किसी ने पूछा भाभी भूख लगी है? अंजली माना न कर सकी। बच्चा जाकर बिस्कुट ले आया। 

बच्चों की भाग दौड़ अंजली की सास ने देखी तो आकर देखा तो बच्चों और अंजली का प्रेम देखकर वो भी मुस्कुराने लगीं। उन्होंने अंजली से पूछा बेटी तू परेशान तो नहीं हो रही।

सास ने पूरा ध्यान रखा। खाने के लिए भी पूछा, पानी के लिए भी पूछा। थक गई हो तो आराम कर ले। हर छोटी छोटी बात का ध्यान रखा। 

शाम हुई, सास ने बच्चों को समझाया। बच्चों भाभी थक गई होगी। अब आराम कर लेने दो। तब जाकर बच्चों ने छोड़ा। 

ससुर जी आये। बोले भाई हमें भी मिल लेने दो बेटी से। उन्होंने सर पर हाथ रखा आशीर्वाद दिया। बेटी हमारी कोई बेटी नहीं है अब तू ही बेटी है।

अंजली बहुत खुश थी।

रात को उसे उसके कमरे में पहुंचा दिया। उसके पतिदेव आये। उन्होंने बड़े प्यार से उसे सीने से लगाया। और फिर बरसाया बादल प्रेम का भीग गया सब अंग।

तीन दिन कब बीत गए पता ही न चला। मायके से फ़ोन आया था तो उसने सबके बारे में बताया। किसने क्या कहा, क्या किया।

चौथे दिन उसके भाई उसको विदा करने आये थे। 

बच्चे आये और पूछने लगे भाभी तुम जा रही हो हमें छोड़कर? 

अंजली उनकी मासूमियत से भावुक हो गयी। हाँ मैं अपनी मम्मी से मिलने जा रही हूँ। फिर आऊँगी। लेकिन बच्चे इन रस्मों से अनजान थे। उनको विश्वास नहीं हुआ। 

वह समझ नहीं पा रही थी कैसे इनको समझाए। घर के सभी बड़े भी हार मान गए। 

फिर उसके पिता ने ही फोन पर समाधान बताया। ऐसा करो। सबको साथ ले आओ।

बच्चों ने सुना तो उनके चेहरे की हँसी लौट आयी।

मायके में उसकी सहेलियां भी कह उठीं अंजली तू वास्तव में भाग्यशाली है। सहेलियों ने उन बच्चों संग खूब मस्ती की। वो बच्चों की चिढ़ाती की भाभी हमारी है। तो बच्चे उससे लिपट जाते नहीं भाभी हमारी है।

अंजली के माता पिता बेहद खुश थे। 

वह विदा होकर फिर ससुराल आ गयी। अब उसने आकर घर संभाल लिया। सास ससुर की खूब सेवा की। उनकी हर छोटी सी बात का भी ध्यान रखा। सबका दिल जीत लिया। दिन भर काम करती बच्चों के साथ मस्ती भी करती। बच्चों को पढ़ने में भी मदद करती। किसी की कोई रोकटोक नहीं थी। 

सावन का महीना आ गया। सावन के महीने का हर नाव विवाहिता को इंतजार रहता है। उसने भी कई सहेलियों को पतियों को लेकर छेड़खानी करते, अजीब अजिब सावल करते सुना था जिनको सुनकर वो शरमा जाती थीं। सजना संवारना, झूला झूलना, पिया के आने का इंतजार करना लेकिन भावनाओं को औरों से छिपाना। सब कुछ तो देखा था उसने।

सभी लड़कियां कम से कम पहला सावन मायके में ही बिताती हैं। उसकी भी इच्छा थी कि वो भी अपने पिया की राह देखे। सहेलियों के सवाल की कल्पना मन को प्रफुल्लित कर जाती।

घर में बात होने लगी कि बहु मायके जाएगी। उसके जाने की तैयारी होने लगी। बच्चों को पता चला तो बड़ों से कह ही दिया। प्लीज भाभी को मत भेजो। बड़ों ने समझाया कि उसकी मम्मी ने बुलाया है। बच्चे तो बच्चे वो क्या जानें इन रस्मों को। चले गए निराश होकर। आज अंजली इंतजार कर रही थी बच्चों का। लेकिन बच्चे अपने घरों से नहीं निकले। अंजली ने सास पूछा माँजी आज बच्चों को क्या हो गया? कोई दिखाई नहीं दिया। 

मैं देखती हूँ। माँजी ने कहा। उन्होंने जाकर देखा तो किसी ने खाना नहीं खाया था, किसी ने बीमारी का बहाना बनाया। सभी बच्चों के चेहरों से खुशी ग़ायब थी। जब उनसे कहा कि भाभी बुला रही है तो बच्चे आ गए। 

अंजली का मन रो दिया। अंजली ने पूछा क्या बात है, नाराज हो मुझसे? बच्चों ने अंजली से ही पूछ लिया भाभी आप हमें छोड़कर जा रही हो? आपका मन नहीं लगता? मम्मी की याद आती है? कोई परेशानी है? इन मासूम सवालों से अंजली का मन भर आया। आँखें नम हो गयीं। दुविधा में थी कैसे समझाए बच्चों को? उसने बच्चों का मन रख लिया अच्छा बाबा मैं नहीं जाऊँगी। बच्चों के चेहरे खिल गए। 

सास जो ये नजारा देख रही थी भावुक हो गयी। अगर पल्लू मुँह में न ठूंस लिया होता तो रो देती।

अंजली के पिता का फ़ोन आया कि मैं लिवाने आ रहा हूँ। अंजली ने मना कर दिया। नहीं पापा मैं नहीं आ पाऊँगी। पिता उसका जवाब सुनकर भावविभोर हो गए। बेटी पहले सावन में भी घर आने से मना कर दे मतलब वो ससुराल में मायके से ज्यादा सुखी है। फिर भी पिता तो पिता थे। उनका मन भी तो था बेटी से मिलने का। जो बेटी उनकी आंखों के सामने इतनी बड़ी हुई हो उसे इतनी जल्दी कैसे भूल जाएं। उनकी भी तो लाडली थी वो। और फिर सबकी बेटियाँ आती हैं घर ख़ुशियों से भर जाता है। मेहमानों की आवभगत में कितना सुकून मिलता है। वो बेटी अगर कहे कि मैं नहीं आऊँगी तो जरूर बेटी बहुत सुखी है।

अंजली के पिता खुद को रोक न सके। वो चले आये। समधी जी के व्यवहार से अंदाजा लग गया कि बेटी सही कह रही होगी। 

जब बच्चों को पता चला तो उनसे आकर पूछने लगे आप ले जाएंगे हमारी भाभी को। 

हाँ बेटा ले जाएंगे लेकिन फिर भेज देंगे। प्रॉमिस।

लेकिन बच्चे तो बच्चे। घेर लिया अंजली को। भाभी तुम चली जाओगी।

अंजली ने समझाया अरे हमेशा के लिए थोड़े ही जा रही हूँ। आऊँगी न फिर से। बच्चे मुँह लटका कर चले गए। 

अंजली के मन में भावनाओं का ज्वार उठा और आंखों से बह निकला। वह सोच रही थी। ये कैसी रस्में हैं जो अपनों से दूर करती हैं। ये कैसा अपनापन है जिसने उसके हृदय को अदृश्य डोर से बाँध लिया है। फिर सोचा बच्चे हैं समझा देगी उनको। 

वह जाने के लिए तैयार हो रही थी। लेकिन सोच रही थी कैसे पिता को खाली हाथ लौटाए। तभी सहेलियों का फोन आ गया। उसने उनसे भी कहा कि मासूम बच्चों को छोड़कर आने का मन नहीं कर रहा। सहेलियों ने मजाक बनाया बच्चों का बहाना क्यों बना रही है ये क्यों नहीं कहती कि जीजाजी की आदत लग गयी है उनके बिना नहीं रह सकती। दूसरी बोली काश ऐसा पति सबको मिले। जो इतना प्यार करे। तीसरी बोली यार जितने दिन उनके साथ नहीं सोएगी सारा कोटा बाद में पूरा कर लेना। चौथी बोली यार बदला कर ले अपने वाले मुझे दे दे और मेरे वाले तू ले ले। पाँचवी ने पूछा तुझे हमारी याद नहीं आती क्या?

अंजली सुन जरूर रही थी लेकिन समझ कुछ नहीं रही थी। उसके सामने बच्चों का मासूम चेहरा घूम रहा था।

वह तैयार हो गयी। अब सबसे विदा लेने की बारी थी।

ससुर के पैर छुए। आशीर्वाद देने में उनका गला भर आया।

सास के पैर छुए। वो उसे गले से लगाकर रो पड़ीं।

आगे बढ़ी तो बड़ा देवर उसके पैर छूकर आँखें पोंछता हुआ घर के अंदर भाग गया।

दूसरा देवर भी रोने लगा।

तीसरा बोला भाभी मत जाओ। हम यहीं झूला डाल देंगे।

चौथा कहने लगा भाभी ……. इससे आगे कुछ न कह सका। फफक कर रोने लगा।

बाकी छोटे देवर भो लिपट गए। भाभी मत जाओ।

अब अंजली का धीरज जवाब दे गया। वह अपना पल्लू मुँह में दबाकर घर के अंदर भागी और बिस्तर पर गिरकर खूब रोई। समझ नहीं आ रहा था कैसा बंधन है ये।

अंजली के पिता उसके पास आये। उसके सिर पर हाथ रखा। अंजली उठी और पिता से लिपट कर रोने लगी। पापा, मैं नहीं जा पाऊँगी। मुझे माफ़ कर दो।

पिता ने उसे ढाढस बंधाया। रो मत बेटी। पहले चुप हो जा। 

अंजली चुप हुई तो पिता बोले। बेटी मैं भी इन बच्चों का दिल नहीं तोड़ना चाहता। लेकिन तेरी माँ तुझ से मिलना चाहती है। वो भी तो माँ है। 

अंजली ने कहा पापा, आप मम्मी को यहीं ले आओ। 

ठीक है बेटी, तू खुश रह। काश हर बेटी को तेरा जैसा ससुराल मिले।


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