बक्कल उतर गई
बक्कल उतर गई
सखी,
तुझे पता है क्या कि आज ऊंट पहाड़ के नीचे आ गया है ? सच में कितना आनंद मिल रहा है कि मैं बयां नहीं कर सकता हूं। तुम्हें तो पता ही है कि इस देश में तथाकथित किसान आंदोलन ने किस तरह अराजकता का माहौल बनाकर पूरी दिल्ली को बंधक बना दिया था। सारे राजनीतिक दल उस आंदोलन में अपनी अपनी रोटियां सेंक रहे थे और सुप्रीम कोर्ट भी मूकदर्शक बनकर बैठा हुआ था। तब एक तथाकथित किसान नेता जो "डकैत" था, बारबार कहता था कि " हम बक्कल उतार देंगे"। सारे मीडिया वाले उसके पीछे ऐसे भागते थे जैसे वह कोई अंतरराष्ट्रीय स्तर का बहुत बड़ा नेता हो। हकीकत में वह तीन बार चुनाव भी लड़ा था और तीनों बार ही उसकी जमानत ज़ब्त हुई थी। मगर मीडिया तो बिका हुआ है। उसका तो एक ही धर्म है और वह है पैसा। यदि कोई पैसा दे तो मीडिया तो पाकिस्तान और चीन को भी भारत का सबसे बड़ा हितैषी घोषित कर दे। मगर जब कोई भी संस्थान मर्यादाओं का पालन नहीं कर रहा हो तो न्यायपालिका और मीडिया से भी उम्मीद नहीं करनी चाहिए और वह भी खैरात पर पलने वाले मीडिया से तो बिल्कुल भी नहीं।
मीडिया को यह गुमान हो गया था कि उसने जिस तरह से "अन्ना आंदोलन" से निकलने वाले एक "गिरगिट" को नेता बना दिया था वह उसी तरह से एक "डकैत" को भी किसानों का मसीहा बना देगा। खैराती चैनलों ने इस योजना के लिए दिन रात एक भी कर दिया। मगर उत्तर प्रदेश की जनता ने ऐसे डकैतों और खैराती चैनलों के प्रोपेगैंडा की पूरी हवा निकाल कर रख दी। डकैत फर्जी आंसू बहाकर थोड़ी-बहुत सुहानुभूति ही हासिल कर सका था इसके अलावा और कुछ हाथ नहीं लगा था उसके। पूरे देश के किसानों का मसीहा बनने का उसका सपना सपना ही रह गया था।
सखी , तुझे पता है कि कल क्या हुआ था ? अरे पता कहां से होगा ? बस शायरी में ही डूबी रहती हो। श्रंगार रस से बाहर निकल कर भी अपने आसपास कभी कभी देख लिया करो। देश दुनिया में क्या क्या हो रहा है , कम से कम इतना पता तो चलेगा।
कल पुराने किसान नेता जिनके दहाड़ने से सरकारें हिल जाया करती थीं, उनकी पुण्य तिथि थी। उन्होंने ही "भारतीय किसान यूनियन" का गठन किया था। हमारे देश में राजशाही इस कदर लोगों के मन में बैठी हुई है कि लोकतंत्र के 75 सालों के बाद भी कुछ लोग "युवराज" बने घूम रहे हैं। जिन्हें देश के बारे में "क से कक्का" भी नहीं पता वे प्रधानमंत्री पद को अपनी जागीर समझते हैं। ऐसे में ये "डकैत" अगर किसान यूनियन को अपनी बपौती समझे तो वह गलत भी नहीं है। यहां तो सरपंच का बेटा भी सरपंची को अपनी बपौती ही समझता है।
तो, डकैत साहब किसान यूनियन को जेब में रखकर चल रहे थे और उसे "बैल" की तरह हांक रहे थे। बीच बीच में कभी पुलिस को तो कभी किसी योगी को "बक्कल" उतारने की धमकी भी दे देते थे। पर कल उनके साथ "खेला" हो गया। डकैत साहब और उनकी "आंटी" बहुत कहते थे "खेला होइबै" तो कल किसानों ने डकैत साहब के साथ खेला कर दिया और उन्हें भारतीय किसान यूनियन से निकाल कर उनकी "बक्कल" उतार दी। सच में, बड़ा मजा आया। झूठ, फरेब, दोगलापन, अराजकता के मसीहाओं के साथ ऐसा ही होना चाहिए।
सखी, ऐसा लग रहा है कि मेरा देश अब सचमुच में बदल रहा है। न तो ऐसे नेता जो सोने का चम्मच मुंह में लेकर पैदा हुए थे , की दाल गल रही है और ना ही खैरातियों का कोई प्रोपोगैडा चल रहा है। अब तो अवार्ड वापसी गैंग भी शायद हिन्द महासागर में डूब गई है और "करांचीवुड" ? शायद वह भी अपने मालिक पाकिस्तान की तरह "कंगाल" हो गया है। ये सब लोग मन ही मन में रो रहे हैं। बेचारे जोर से रो भी नहीं सकते हैं। मजबूरी जो है। जो अब तक सबको रुलाते थे अगर वो जनता के सामने रोते नजर आयेंगे तो उनकी क्या इज्जत रह जायेगी ?
अभी कल परसों ही पता चला कि रणवीर सिंह की मूवी "जयेश भाई" का जनता ने वो हाल किया है कि रोने को मजदूर तक नहीं मिल रहे हैं। दीपिका को तो "जे एन यू कांड" की सजा अभी मिल ही रही है। इस "दाऊद" गैंग को रोते देखकर बड़ा आनंद आ रहा है। अब ना तो "जावेद चिच्चा" कुछ बोल पा रहे हैं और ना ही "नसीर भाई"। इससे अच्छे दिन और क्या होंगे, सखी ?