Sunita Mishra

Tragedy

2.0  

Sunita Mishra

Tragedy

बिटिया

बिटिया

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नीना ने प्यारी सी बिटिया को जन्म दिया। गोल मटोल गोरी चाँद सी खूबसूरत। नीना और नील दोनों की खुशी देखते ही बनती थी। बिटिया की किलकारियां, हँसना, रोना दोनों को वह खिलौने जैसी लगती। बिटिया को देख देख कर उनके दिन रात सोना चाँदी से लगने लगे उनको।

एक दिन नील ने नीना को बताया की दीदी आ रही है आगरा से। सुनकर नीना कोबहुत खुशी हुई। दीदी नीना और नील को बहुत प्यार करती थी। नील से वो दस साल बड़ी थी। माँ की तरह पाला था नील को उन्होंने। नीना उनके स्वागत की तैयारी में लग गई। नील से बोली- दीदी और जीजाजी के लिये कपड़े ले आओ। बिटिया को उसकी बुआ काजल लगाएगी तो सोने की अँगूठी भी दीदी को देँगे। नील को भी अच्छा लग रहा था, नीना का दीदी को लेकर इतना खुश होना।

दीदी और जीजाजी दोनो आये। बिटिया तो उनकी आँखों का तारा हो गई। बिटिया भी अपनी बुआ को पहचानने लगी। उन्हें देखकर हँसती, दोनों बाहें फैलाती की बुआ गोद मे ले ले और बुआ भी बिटिया के सारे काम करती। दस दिनों में बिटिया तो बुआ की हो गई। नीना को कभी-कभी दीदी का बिटिया के प्रति प्रेम अखरने लगता। शंका जन्म लेने लगी मन में। कहीं दीदी बिटिया को गोद तो लेना नहीं चाहती। दीदी निसंतान थी। उनके पहले प्रसव में शिशु मरा पैदा हुआ और डॉक्टरों ने बताया की अब माँ बनने की रिस्क उनके जान के लिये खतरा है।

और वही हुआ, विदा होने से एक दिन पहिले दीदी बोली- नीना बिटिया तो मुझसे बहुत हिल गई है, इसे मुझे दे दे।"

सासू जी बोली- "नीना तेरे तो और बच्चे हो जाएंगे। इसे अपनी ननद की गोद में डाल दे।"

ओह तो ये साजिश थी इन सब लोगों की। नीना एकदम बोल पड़ी- न दीदी मैं बिटिया को नहीं दूँगी। ये तो मेरी जान है।

दीदी और जीजाजी निराश लौट गए। सास नाराज हो अपने बड़े बेटे के पास चली गई। अभी उन्हें गये दो दिन भी नहीं हुए की छत पर कपड़े उठाने गई नीना का पैर ऐसे फिसला की अस्पताल ले जाना पड़ा। दायें पैर में फ्रेक्चर हो गया। दीदी को आना पड़ा। बिटिया की देखभाल के लिये। नीना की बीमारी एक दो दिन की बात नहीं थी। लम्बा इलाज था, चार दिन बाद दीदी बोली- नीना तेरे जीजाजी को वहाँ परेशानी हो रही है, अब मै जाऊंगी।"

बिटिया बहुत छोटी है। सास ने कहा उनकी तबीयत ठीक नहीं, आना मुश्किल है। मायके में भी कोई नहीं। नीना छोटी थी तभी माँ नहीं रही उसकी। फ़ैसला हुआ, बिटिया दीदी के साथ जायेगी, नीना ठीक हो जाये तो उसे ले जायेगी।

नीना रोती रही, बिटिया के लिये यही ठीक था। बिटिया, बुआ के साथ चली गई। जाते समय नीना की ओर हाथ बढ़ाकर रोई।नीना का दिल फटा जा रहा था। मन ही मन बोली- बुआ का घर ही तेरे लिये सुरक्षित है मेरी बच्ची।

नीना के पैर में इन्फेक्शन हो गया। स्वस्थ होने में साल से ऊपर लग गया।

बिटिया बुआ को मम्मा बोलनें लगी। जब नीना वहाँ उसे लेने गई। उसी समय जीजाजी को हार्ट अटेक पड़ गया। फिर स्थिति गंभीर। बिटिया को वापिस लेते तो दीदी का सिन्दूर संकट में। नीना खाली हाथ लौट आई, ठीक वैसे ही जैसे दीदी लौट कर गई थी। बिटिया की उम्र बढ़ती गई।

नीना, बिटिया से दूर होती गई। अब बिटिया के लिये नीना, माँ से मामी हो गई।

सब कहते है नीना ने बहुत बड़ा त्याग किया है पर ये तो नीना का दिल जानता है की उसकी मजबूरी थी त्याग नहीं। कौन माँ अपने ज़िगर के टुकड़े को ऐसे देता है भला।


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