Tanu Srivastava

Abstract Drama

4  

Tanu Srivastava

Abstract Drama

बिजली

बिजली

3 mins
22.9K


रात से ही तेज बारिश जैसे सब कुछ बहा कर ले जाना चाहती थी। बादलों की गड़गड़ाहट के बीच चमकती बिजली मानो संदेश दे रही थी घबराना नहीं है निखर का निकलना है मेरी तरह।

विषम परिस्तिथियों में भी सकारात्मक सोच यही तो खूबी थी उसकी। मुस्कुराकर जूड़ा बना किचन में आ गई ऑफिस तो जाना ही होगा उसे, रेनकोड भी तो नहीं है उसके पास। फिर खस्ताहाल सड़कें घुटनों तक भरा पानी।

एक विकल्प था पर उसमें उसकी मर्जी कहाँ चलती है सरकारी दमाद के गर्व से टकराने से बेहतर है खुद ही रास्ता निकाल ले।

खैर जितनी तेजी से दिमाग हल निकालने पर तुला था हाथ भी उतनी तेजी से कार्य पूर्ण कर रहे थे अबतक बारिश भी बौछारों में तब्दील हो चुकी थी। फिर भी टास्क अभी भी बहुत बड़ा था।छोटे शहरों की यही तो दिक्कत है वह छोटी समस्याओं को भी बहुत बड़ा बना देती है।

नहीं नहीं रिक्शा तो वो करेगी नहीं। पिछली बार बारिश के पानी में छुपे गड्ढे में उसका रिक्शा फंस गया था वह कितना घबरा गई थी कितने लोग इक्क्ठा हो गए थे वहाँ।

पिछली यादों से सबक ले पैदल ही निकल पड़ी थी वह। पानी भरी गलियों में दूर-दूर ईंटे पत्थर रख कर बनाई गई वैकल्पिक व्यवस्था से और घरों के चबूतरों आदि से होते हुए वह सड़क पर तो आ गई थी। चलो अब तो बहुत पास ही है आफिस। पर ये क्या सड़क पर आकर तो उसके होश उड़ गये पिछली बार तो ये सड़क ठीक थी इस बार इसे क्या हो गया इसे। 

 यहाँ का हाल तो और बुरा है कितना पानी भरा है नालियाँ अलग उफ़न रही है। उफ्फ ।खैर विकल्प सोचने तक एक दुकान के छज्जे के नीचे खड़ी हुई ही थी कि देखा एक मोटा ताजा सांड पहले से वहां खड़ा था। घबराकर थोड़ा पीछे हुई कि उसकी बंद दुकान के शटर के कोने में दुबक कर दुबला पतला कुत्ता अंगड़ाई लेकर खुद को छिड़कता हुआ दुम हिलाता हुआ उसके पास आकर खडा हो गया।

 हड़बड़ा कर धत -धत कह उसे भगाने का प्रयास सफल होने पर राहत की सांस की उसने।

 सड़क पर इक्का-दुक्का लोग अपनी साइकिल बाइक से धीरे-धीरे जा रहे थे एक रिक्शेवाले ने भी हसरत भरी निगाहों से देख उससे पूछ ही लिया "मेमसाहब चलेंगीं क्या।"

" अरे कहां ले जाते हो मेमसाहब को थोड़ी देर और खड़े रहने दो "कहते हुए बगल की दुकान से जमीन पर गंदे से चादर में लिपटी भद्दी आकृति को चादर से बाहर निकलते गन्दे इशारे करते देख घबरा कर चीख उठी।

 रुको रिक्शेवाले! पर तब तक जाने क्या हुआ रिक्शावाला आगे बढ़ चुका था।

आने जाने वाले उस पर नजर डालते और आगे बढ़ जाते। किसे पुकारे ,पति को फोन करो बाइक से आ जाएंगे । नवाबी रंग में रंगे नहीं  बाबा नहीं वह नहीं निकलेंगे इस कीचड़ में।ऊपर से ताने और मरेंगे,,"जाओ बहुत शौक़ है कर्मठ बनने का। मेडल मिलेगा मेडल,अवकाश ले लेती तो मेडल ना मिलता।"

 "ईश्वर आप क्यों रूठे है" सोच ही रही थी कि बादलों की गड़गड़ाहट के साथ बिजली कौंध गई।

"अरे ! शीला दी आइए मेरी स्कूटी पर बैठ जाइए परेशान मत होइये, सड़कों से मेरा पुराना परिचय है।"

"हां हांआती हूं।" कह कदम बढ़ाए ही थे कि

 "अरे कहां जाती हो रानी अभी कुछ देर और...।" कहता हुआ चादर छोड़ अंगड़ाई ले खड़ा हो गया वह। उससे बचकर निकल स्कूटी तक पहुंचने का प्रयास कर ही रही थी कि आगंतुका बोल पड़ी,,,,, "नहीं दी! आप इस तरह नहीं आ सकती,, हमारे लिए।" कहते हुएआत्मविश्वास से भरा अंगूठा दिखा मुस्कुरा उठी वह। 

बस बसर क्या था गरजते बदलो के बीच एक झँन्नाटेदार झापड़ के साथ बिजली चमक उठी और तेजी से स्टार्ट स्कूटी की ओर बढ़ गई और दोनों हुरेss कहते हुए अपने गंतव्य की ओर चल पड़ी।

आसमान से बादल भी छंटने लगे थे मानो सहम गए हो धरती की बिजली के इस नए अवतार से।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Abstract