बीती रात कमल दल फूले
बीती रात कमल दल फूले
आज जब मनीष अपने पैरों पर चलकर अपनी मां के पास पहुंचा तो भावनाये आंसुओं का रूप लेकर अविरल बहने लगी । अपनी मां तक ,अपने पैरों से चलकर पहुंचने की दूरी यूं तो चंद कदमों की थी लेकिन मनीष को ऐसा करने में पूरे 1 वर्ष लग गए । पिछले 1 वर्ष के अथक प्रयास का परिणाम था ,मनीष का अपने पैरों पर दोबारा चलना ।
1 वर्ष पूर्व मनीष को तेज बुखार आया , कई दिनों तक अकेली मां इलाज के लिए इधर-उधर भटकती रही । कई दिनों बाद बुखार तो ठीक हो गया पर मनीष का आधा शरीर लकवा ग्रस्त हो गया ।
22 वर्षीय मनीष निराशा के गहरे अंधकार में डूब कर डिप्रेशन का शिकार हो गया । पर मां ने हार नहीं मानी वह एक योगाचार्य से मिली । उन्होंने मनीष की नाड़ी का निरीक्षण किया तो बोले "मनीष ठीक तो हो सकता है पर समय लगेगा और मेहनत करनी पड़ेगी ,असहनीय पीड़ा भी सहनी पड़ेगी"।
मां ने निश्चय कर लिया कि बेटे को उसके पैरों पर खड़ा करके रहेंगी । उन्होंने योगाचार्य के सानिध्य में मनीष का उपचार शुरू किया उन्होंने बहुत कम दवाएं दी और उसे कुछ योगासन सिखाया ।
मां के निरंतर साथ एवं प्रेरणा से मनीष मे ठीक होने की उम्मीद जाग उठी । उसकी मां व्हील चेयर पर बैठा कर हर रोज योगाभ्यास के लिए सुबह 4:00 बजे पार्क में जाती । योगाचार्य उसे व्यायाम और योग आसन का कठिन अभ्यास कराते, इस दौरान मनीष को असहनीय पीड़ा का सामना करना पड़ता , लोगों के ताने और उपेक्षाओं का भी सामना करना पड़ा । यह संघर्ष का वक्त था नाउम्मीदी की अंधेरी रात थी ।
कभी-कभी तो वह होने लगता तब उसकी मां समझाती की लाचारी के जीवन से यह दर्द कहीं अच्छा है ।
उनकी बातों से उसके मन में उत्साह आ जाता और मनीष फिर से जुट जाता ।
2 महीने के अथक प्रयास नजर आने लगे थे जिस से उत्साहित होकर मनीष ने अभ्यास और बढ़ा दिया । योगाचार्य के उचित मार्गदर्शन, उनकी दवाइयां, मां की प्रेरणा और उसकी कड़ी मेहनत व आत्मविश्वास के चलते वह आज पूरी तरह से ठीक हो कर पहले की तरह सामान्य रूप से अपने पैरों पर खड़ा होकर चलने लगा
उपेक्षा का दौर गुजर गया था खुशियों का सवेरा बाहें फैलाए उसके स्वागत के लिए खड़ा था ।