बिगड़ैल
बिगड़ैल
जैसे ही मेरी स्कूटी की आवाज सुनायी दी, घर में दादी का बड़बड़ाना शुरू हो गया।लो आ गयी हमारे घर की सबसे बिगड़ैल छोरी, अभी तूफान मेल की तरह घर में घुसेगी और पूरा घर अस्त - व्यस्त कर देगी।
मैंने स्कूटी आँगन में एक तरफ लगायी और हँसते हुए चारपाई पर बैठी दादी की तरफ दौड़ कर उन्हें जोर से अपने बाजुओं में भींच लिया| वो हमेशा की तरह
हरे कृष्ण- हरे कृष्ण जपते हुए मुझे धक्का देने लगी और गीता में नजरें गडाती हुई फिर से बड़बड़ाने लगी|
ये छोरी पूरा धर्म भ्रष्ट कर डालेगी कित्ती बार कहा बाहर से आकर पहले हाथ - मुँह धो लिया कर तब कुछ छुआ कर पर कानों पर जो जूँ तक रेंगी हो इसके ऊपर, हे कृष्णा तुझसे मनौती मांगी थी लड़के की और तूने इसे भेज दिया।लड़की दिया तो भी कोई बात नहीं पर कम से कम ल़डकियों वाले लक्षण भी दे देता।कित्ती बार समझाया इसे की घर के थोड़े काम - काज सीख पर ना!, ये महारानी तो बॉब कट बाल में शर्ट - पेंट पहनकर फटफटिया से घर से ऑफिस ऑफिस से घर में मस्त है..।
ये रोज का क्रम था और कभी - कभी मुझे ये बातेँ बहुत चुभती थी खासकर बिगड़ैल शब्द।
मैं कुछ कहने जा ही रही थी कि किसी ने दरवाजा खटखटाया। दरवाज़ा खोलते ही मेरा माथा ठनक गया।बग़ल की खबरिया चाची थी| मैंने हाथ जोड़ कर नमस्ते किया और अंदर कमरे में चली गयी।
खबरिया चाची दादी से बातें कर रही थी कि उनकी बातचीत में मेरा नाम सुनायी दिया, मैंने अपने कान खिड़की से सटा लिए।
सुनो मनीष की माँ,
वो बिगड़ैल नहीं मेरी लाड़ली है।
ख़बरदार जो मेरी लाड़ली के लिए एक शब्द भी कुछ गलत बोला तो, क्या हुआ जो लड़का नहीं हमारे घर उसने लड़कों से बढ़कर सम्भाला हुआ है हमारा घर, कमाती है बाहर के सारे काम संभालती है।समय आने पर गृहस्थी संभालना भी सीख जाएगी।
खबरिया चाची वापस लौट रही थी और मैं कमरे से निकल दौड़कर फिर दादी से लिपट गयी।
दादी आप न मुझे बिगड़ैल ही बोला करो आपका सारा प्यार इस शब्द में ही झलकता है।
