मिली साहा

Inspirational

4.6  

मिली साहा

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भव्य भ्रम-एक मानसिक विकार

भव्य भ्रम-एक मानसिक विकार

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वास्तविक किरदार से हटकर, सदैव ही भ्रम की दुनिया में जीना

बदलकर सोचने, देखने का नज़रिया, स्वयं को सर्वश्रेष्ठ समझना

निरंतर होते मूड स्विंग्स से, कम होता जाता है आत्मसम्मान भी

कितना कष्टकारी होता आखिर, दिमागी विकार से ग्रसित होना।

हमारा शरीर एक महामंदिर है। जहांँ स्वस्थ्य शरीर आत्मा का अतिथि भवन और अस्वस्थ शरीर कारागार के समान है। देखा जाए तो हमारा शरीर हमारी आत्मा का सितार है। और यह हमारे ऊपर ही निर्भर करता है कि हम इससे मधुर स्वर झंकृत करें या बेसूरी आवाज़ निकालें। और यह तो दावे के साथ कहा जा सकता है कि बेसुरी आवाज़ किसी के मन को नहीं भाती। तो सोचिए एक आवाज़ से इतना फर्क पड़ता है हमें तो यदि हमारा संपूर्ण शरीर ही अस्वस्थ हो तो ज़िन्दगी का तो सुर ही बिगड़ जाएगा।

हमारे शरीर के कई अंग हैं जिसमें सबसे महत्वपूर्ण अंग "दिमाग" को माना जाता है। और प्रत्येक व्यक्ति के लिए अपने शरीर और उसके महत्वपूर्ण अंग दिमाग और "दिमागी सेहत" को समझना अतिआवश्यक है। क्योंकि तन स्वस्थ होगा तभी तो मन स्वस्थ रहेगा।

तन हो गया रोगी, तो मन कहांँ से चहके,

स्वस्थ हो तन, तो मन भी फूलों सा महके।

हमारा "दिमाग" हमारे शरीर का एक आवश्यक अंग होने के साथ-साथ प्रकृति की एक उत्कृष्ट रचना भी है। तंत्रिका तंत्र के शीर्ष पर स्थित यह अंग सभी शारीरिक क्रियाओं को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से नियंत्रित करता है। संरचनात्मक रूप से इसके तीन मुख्य भाग होते हैं जिसमें से मध्य मस्तिष्क एवं पश्च मस्तिष्क मिल कर "दिमाग के स्तंभ" का निर्माण करते हैं। क्योंकि दिमाग के द्वारा ही हमारा शरीर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से नियंत्रित होता है इसलिए "दिमाग" का स्वस्थ रहना अति आवश्यक है। क्योंकि "दिमाग" स्वस्थ रहेगा तभी हमारा शरीर भी नियंत्रण में रहेगा। क्योंकि हमारा शारीरिक स्वास्थ्य बहुत हद तक हमारी मानसिक स्थितियों पर निर्भर करता है।

"दिमाग" हमारे शरीर का एक ऐसा केंद्र या हिस्सा है। जिसमें कुछ ना कुछ निरंतर चलता रहता है या यूंँ कहें कि यह बिना रुके कार्य करता रहता है। तो ज़ाहिर है इसका स्वस्थ होना भी अनिवार्य है। किंतु कभी-कभी शरीर के प्रति लापरवाही, अत्यधिक तनाव, रिश्तो में कड़वाहट, किसी घटना को घटित होते देखना या किसी अन्य वज़ह से हमारे "दिमाग" में विकार उत्पन्न हो जाता है। जिन्हें "दिमागी बीमारियांँ" भी कहा जाता है जो आज के समय में बेहद आम हो गई है। लेकिन "दिमागी विकारों" को किसी भी तरह से हल्के में लेना बहुत ज़्यादा ख़तरनाक साबित हो सकता है। यहांँ तक कि "दिमागी विकार" के दौरान व्यक्ति खुद की जान भी ले सकता है।

ऐसा ही एक "मानसिक विकार" है "डिल्यूजन ग्रैंड्यूर" यानी "भव्य भ्रम"। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार यह एक भ्रम की स्थिति है जिसमें इस विकार से ग्रसित व्यक्तियों में अलग-अलग लक्षण दिखाई देते हैं और वो वास्तविक ज़िंदगी से अलग हटकर सोचते और देखते हैं। जैसे किसी को लगता है कि वो ऊंँचे ओहदे में है, किसी को अलौकिक शक्तियों का आभास तो किसी को अधिक बुद्धि का भ्रम। किसी को लगता है कि उसके पास जादुई शक्तियांँ हैं, तो किसी को लगता है कि वह कोई धार्मिक गुरु या लीडर हैं। और किसी किसी को तो ऐसा भी भ्रम होने लगता है कि उसे ना तो कभी कोई रोग हो सकता है और ना कभी चोट लग सकती है।

इस मानसिक विकार में मूड स्विंग सबसे बड़ी समस्या बन जाती है। क्योंकि जब कोई दूसरा उनके भ्रम पर विश्वास नहीं करते हैं तो वो इरिटेट हो जाते हैं और कभी-कभी तो आक्रामक भी। ऐसे रोगियों के साथ यदि नरमी से पेश ना आया जाए तो ये खुद को नुकसान पहुंँचाने से भी पीछे नहीं हटते। ऐसे मानसिक रोगियों को स्वयं के लिए या किसी और के लिए निर्णय लेने में बहुत बड़ी समस्या का सामना करना पड़ता है और मूड स्विंग के कारण निरंतर इनका आत्मसम्मान भी कम होता जाता है।

यह रोग किसी भी कारण से हो सकता है जैसे दिमागी चोट लगना, ड्रग्स का सेवन, किसी बात को लेकर स्ट्रेस इत्यादि। इस प्रकार के मानसिक विकार के उपचार की प्रक्रिया काफी लंबे समय तक चलती है। रोगी को धीरे धीरे सच्चाई और भ्रम के बीच फ़र्क समझाया जाता है। क्योंकि मानसिक उपचार में किसी भी प्रकार की ज़ल्दबाज़ी रोगी के लिए घातक सिद्ध हो सकती है। "भव्य भ्रम"का उपचार अगर सही समय पर ना कराया जाए तो यह कई दूसरे मानसिक विकारों को भी जन्म दे सकता है। जिसके कारण इस मानसिक विकास से ग्रसित व्यक्ति समाज से, रिश्तों से तो कट ही जाता है साथ ही साथ उसकी खुद की ज़िंदगी भी उसके लिए एक सजा बन जाती है। मानसिक विकार के पिंजरे में कैद व्यक्ति के जीवन एक सूखे दरख़्त़ की भांँति हो जाता है। जो अपनी ज़िंदगी बस हरियाली की आस में ही काटता है। और सही समय पर एकमात्र उपचार

वो आस है जो मानसिक विकार से ग्रसित व्यक्ति के जीवन को फिर से हरा-भरा और खुशहाल बना सकती है। जिसमें परिवार और समाज का साथ भी बहुत उपयोगी सिद्ध हो सकता है। इस प्रकार के मानसिक विकारों को नजरअंदाज करना सेहत के साथ एक बहुत बड़ा खिलवाड़ है।

इसलिए इन समस्याओं के प्रति हमें तुरंत सजग होने की आवश्यकता है। अपने स्वास्थ्य को बाकी कार्यों से महत्वपूर्ण समझ कर अपने शरीर को स्वस्थ बनाने की प्रक्रिया में खुद को झोंकना अनिवार्य है। कष्टकारी जीवन व्यतीत करने से तो अच्छा है थोड़ा शरीर को कष्ट देकर उसे स्वस्थ बनाया जाए। तभी जीवन सुखी और खुशहाल होगा।

आजकल जिस किसी से भी पूछो वो चिंता मुक्त नहीं है। एक चिंता से मुक्ति मिलती है कि दूसरी सामने हाज़िर हो जाती है। शांत चित्र बैठना हमारी दिनचर्या में शामिल ही नहीं। किंतु हम यह भूल जाते हैं इन सभी के कारण हमारे स्वास्थ्य पर, हमारे मस्तिष्क पर कितना गहरा असर पड़ता है। इस मशीनी युग में हम लगातार इस कदर दौड़ते जा रहे हैं कि ना तो शारीरिक सेहत और ना "दिमागी सेहत" पर ही हमारा ध्यान केंद्रित हो पाता है, जिसके कारण हम अपना स्वास्थ्य तो बिगाड़ ही लेते हैं साथ ही साथ "दिमागी सेहत" के साथ भी खिलवाड़ करते हैं। इस प्रकार की लापरवाही भविष्य में हमारे लिए घातक सिद्ध हो सकती है। क्योंकि एक उम्र के बाद वैसे भी शरीर और दिमाग थक जाता है। और उम्र के इस पड़ाव में गर कोई मानसिक विकार हो तो हमें तो कष्ट उठाना ही पड़ता है साथ ही साथ हमारे परिजन, रिश्तेदार हमारे अपनों को भी इस परिस्थिति का सामना करना पड़ता है। जिसके कारण मन में कड़वाहट, चिड़चिड़ापन यदि उत्पन्न होने में देर नहीं लगता। मानसिक विकास से ग्रसित व्यक्ति के लिए सुकून भरी ज़िंदगी व्यतीत करना एक ख़्वाब बनकर रह जाता है।

जिस प्रकार हमारा शरीर थकने के बाद थोड़ा विश्राम चाहता है उसी प्रकार "दिमाग" को भी विश्राम की आवश्यकता होती है। कुछ देर शांत चित्त बैठकर "दिमाग" को विश्राम की अवस्था में ले जाना अति अनिवार्य है। जिससे हमारा "दिमाग" फिर से कार्य करने के लिए स्वस्थ और ऊर्जावान हो जाए। योग और आसन की कई क्रियाओं के द्वारा भी "दिमाग" को सेहतवान बनाया जा सकता है। "दिमाग" का इस्तेमाल कभी करें जब उसकी वास्तविक में ज़रूरत हो। इससे दिमागी शक्ति बढ़ती है और शरीर भी स्वस्थ रहता है। बेवजह अनुचित चिंतन कर कल्पना करने से दिमाग में अस्थिरता पैदा होती है।

अतः "दिमागी सेहत" को महत्वपूर्ण समझकर इस पर आप अपना पूर्ण ध्यान केंद्रित कीजिए और एक स्वस्थ दिमाग के साथ स्वस्थ जीवन शैली का लुफ़्त उठाइए। क्योंकि स्वास्थ्य से बढ़कर और कुछ नहीं।

दिमाग को रखना है स्वस्थ तो नित करो व्यायाम, कसरत

स्वस्थ दिमाग में ही तो उत्पन्न होते हैं, विचार सकारात्मक।


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