Neeraj pal

Abstract

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भव -रोग

भव -रोग

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एक बहुत पुरानी कथा है कि एक महात्मा ने देखा कि एक मनुष्य एक तीर्थ- स्थल की परिक्रमा करता हुआ यह प्रार्थना कर रहा था- हे ईश्वर, मेरे भाइयों और मित्रों को नेक बंदा बना दो।

 जब उन महात्मा ने उनसे पूछा कि इस पवित्र धर्म स्थल पर पहुँच कर तू अपने लिए प्रार्थना क्यों नहीं करता ?अपने भाइयों और मित्रों ही के लिए प्रार्थना क्यों कर रहा है ? तो उसने उत्तर दिया- मेरे जो भाई हैं ,मेरे जो मित्र हैं, मैं उन्हीं के पास लौटकर जाऊँगा, यदि वह नेक और सच्चरित्र हुए तो मैं भी उनकी संगत में नेक और सच्चरित्र बन जाऊँगा और यदि वह बुरे और चरित्रहीन हुए तो मैं भी वैसा ही हो जाऊँगा।

 इसलिए किसी तीर्थ स्थल पर पहँचकर, क्या हमने भी अपने भाइयों और मित्रों के लिए ऐसी दुआ की है? यदि नहीं तो हम सब "भव- रोग" से पीड़ित हैं।


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